केके पाठक
संपूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति अपनी गहरी और अमिट छाप छोड़ती है, जिसका संपूर्ण विश्व में कोई सानी नहीं है,जीवन के उत्कृष्ट सिद्धांतों से भरी व उच्चतम,अपने देश के साथ- साथ विश्व मानवता के, विश्व जीवों के उत्थान और कल्याण के लिए मूल मंत्र देने वाली हमारे देश की भारतीय संस्कृति को जीवित रखना ही हमारे लिए सबसे बड़ी- हमारे देश की सेवा है, हमारे देश की उच्चतम संस्कृति को वही जीवित रख पाएगा, जिसने हमारे देश की संस्कृति को और उसके इतिहास को भोगा है, जिया है, महसूस किया है और उस पर होने वाले 800 से1000 वर्षों तक के अत्याचारों को करीब से महसूस किया और उसे पढा है, अपने जेहन में उतारा और दर्द को महसूस किया हो, आज हमारा देश प्रत्यारोपित स्वतंत्रता के साथ अंग्रेजों के दिए गए, संविधान के माध्यम से अंग्रेजों द्वारा दी गई शिक्षा पद्धति के माध्यम से और अंग्रेजों द्वारा दी गई न्याय व्यवस्था के आधार पर कहने का तात्पर्य हमने अपना सब कुछ मिटाकर या हमसे अंग्रेजों ने सब कुछ छीन कर, हमें आपस में जातियों में धर्मों में मजहबो में पंथो में बांटकर जो दिया है, हम उसी अंग्रेजों की राह पर चलते- चलते मानसिक रूप से और संस्कृति सभ्यता के रूप से जीवन जीने की शैली के रूप से आज हम कितने पिछड़ गये है, यह हमारा मन ही जानता है।
हमारे देश में शासन की प्रणाली, जो अंग्रेजों ने हम पर प्रत्यारोपित की उसी को हम आज 1947 से लगातार आगे बढ़ा रहे हैं, जिसका परिणाम यह हुआ कि- हमारा देश पूरे वर्ष इन राजनीतिक पार्टियों के कारण हमारे देश में राजनीतिक अव्यवस्था के कारण पूरे साल के 365 दिन अपने ही देश की समस्याओं में उलझा रहता है, यह अंग्रेजों की दी हुई लोकतांत्रिक व्यवस्था है, जिसमें देश और देशवासी आपस में जातिवाद धर्म वाद और पंथवाद, जैसी समस्याओं में ही उलझा रहता है, उसे भारतीय संस्कृति, भारतीय शिक्षा, भारतीय कानून और न्याय प्रणाली पुरातन भारतीय संस्कृति और उसकी वैभवशाली व्यवस्था से कोई लेना देना नहीं है। वह तो अंग्रेजों के नियम कानून कायदे उनकी संस्कृति उनके नियम कानून कायदे पर चलकर अपना अस्तित्व खोती जा रही है,अंग्रेजी शिक्षा के दाता व हमारे देश की पुरातन शैक्षणिक पद्धति को समाप्त करने वाले अंग्रेज मैकौले ठीक ही कहा करता था कि- मैंने भारतवर्ष की शिक्षा प्रणाली को तोड़ मरोड़ कर उसे बर्बाद कर, अपनी शिक्षा प्रणाली लागू की है, जो भविष्य में भारत में भी आगे जाकर हमारे ही जैसे विचारधारा वाले इंसानों को पैदा करेगी, ऐसे भारतीयों को पैदा करेगी जो रहन-सहन अर्थात तन से तो भारतीय होंगे, लेकिन उनकी सोच बिल्कुल अंग्रेजों जैसी होगी, यह बात आज हमारे देश में पूर्णता सत- प्रतिशत सत्य दिखाई दे रही है।
तभी तो हमारे देश के वर्तमान जितने भी महान विद्वान और शिक्षित वर्ग हैं, उनमें से अधिकांश को अपने हमारे देश के पुरातन संस्कृति और पुरातन शिक्षा से कोई लेना देना नहीं है, वह सिर्फ वर्तमान में जी रहे हैं, उन्हें अपने देश के भविष्य से भी कोई मतलब नहीं है, उन्हे जीवन की उच्चतम शैली से भी कुछ लेना देना नहीं है, तभी तो उन्होंने हमारे देश की पुरातन संस्कृति को वापस लाने के लिए हमारे देश की पुरातन विरासत को वापस लाने के लिए स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद भी कोई खास बड़े कदम नहीं उठाए हैं, जिससे कि हमारी शिक्षा में परिवर्तन हो सके हमारे देश में पुरातन संस्कृति की शिक्षा लागू हो सके, हमारे देश में विश्व की भाषाओं को जन्म देने वाली जननी भाषा संस्कृत का उत्थान हो सके, हमारे देश में पुराने सांस्कृतिक नाम वाले शहरों को पुनर्जीवित किया जाए, हमारे देश की भाषा शैली और खानपान में मूलभूत परिवर्तन की आवश्यकता है, हमारे देश को शराबखानो वा क़त्लखानों से पूर्णता मुक्त कराया जाए, जो हमारे देश की संस्कृति और सभ्यता में एक मील का पत्थर साबित होगा, जिसके कारण हमारे देश के लोगों की मानसिकता और सोच समझ में अमूलभूत परिवर्तन होगा, हमारे देश के लोगों की बुद्धि शुद्ध होगी सोच शुद्ध होगी बल्कि इसका असर सारे विश्व पर पड़ेगा,व हमारे देश की एक अलग पहचान विश्व पटल पर दिखाई देगी, हमें अच्छाई से और अच्छाई की ओर बढऩा है, और समस्त बुराइयों का त्याग करना है, हमारे देश में झूठ धोखेबाजी,दगाबाजी, दिखावापन छलावा जैसी गतिविधियों को छोड़कर जो अंदर वही बाहर, ज्यों की त्यों, अर्थात पूर्णता सत्य- सत्यता पर आधारित संस्कृति को बढ़ावा देने की सोच बढ़ेगी। व हमारा देश पुराने ऋषि- मुनि साधु- संतों की सभ्यता का देश होगा। जिसमें विश्व मानवता के प्रति घृणा नहीं, प्रेम सिखाया जाएगा। प्रेम का पाठ पढ़ाया जाएगा। जो कि हमारी मूल भारतीय संस्कृति है, धर्म वही जो मानवता से मानवता को प्रेम करना सिखाए, विश्व के समस्त जीव-जंतुओं से प्रेम करना सिखाए जियो और जीने दो की अवधारणा पर चले, वरना वह धर्म,धर्म नहीं है अधर्म है। और ऐसे धर्म का नष्ट हो जाना ही, विश्व मानवता के लिए श्रेष्ठ है, जो विश्व के मानव में भेदभाव करना सिखाए यह सिखाये कि हम ही महान हैं,और दूसरे को मार देना चाहिए? दूसरे मानव से घृणा करना चाहिए, ऐसा धर्म कदापि धर्म नहीं हो सकता, यह विश्व का सबसे बड़ा अधर्म है, इन्हें अपनी सोच में समझ में बदलाव लाने की जरूरत है। और अपनी सोच को वहद बनाने की जरूरत है।
हमारे देश में अब तक विरले ही ऐसे महान व्यक्तित्व वाले मानव हुए हैं जिन्होंने हमारे देश की संस्कृति की रक्षा के लिए कदम उठाए हैं, उन्होंने कुछ स्थानों को भी वापस अपनी पुरातन स्थिति में लाने की कोशिश की है, उन्होंने हमारी शिक्षा और सभ्यता को भी पुनर्जीवित करने की कोशिश की है। हमारे देश के कुछ लोगों की मानसिकता अंग्रेजों जैसी हो गई है, जिसके कारण हमारे देश में नियम कानून कायदे और सभ्यताओं में सुधार करने पर भी चिल्ल-पौ करने लगते हैं, व वे अपने संख्या बल का दुरुपयोग देश की संस्कृति और महानता देश की सुख शांति को भंग करने में लगा देते हैं, जिसके कारण देश अस्त व्यस्त होने लगता है। अत: देश के भविष्य के लिए अच्छे कदम उठाना भी आज अपने ही देश में एक गुनाह सा हो गया है। यह सब अंग्रेजों की देन है हमारे देशवासियों को मानवीय दृष्टि कोण रखते हुए हमारे देश की पुरातन संस्कृति व सभ्यता पर चिंतन मनन करते हुए एक सुर मैं अपने देश की पुरातन शैक्षणिक सभ्यता अपने देश की पुरातन कानून सभ्यता वह अपने देश की पुरातन खानपान की सभ्यता वापस लाने के लिए एकजुट होकर अंग्रेजों के दिए हुए- शराब खानों को नष्ट करने, बंद करने- हमारे देश में फैले हुए, क़त्ल खानों को बंद करने। हमारे देश में पुरातन शैक्षणिक सभ्यता लागू करने मैं एकजुट होकर कदम उठाकर कार्य करने की जरूरत है। तभी हम सारी विश्व की मानवता का भला कर पाएंगे तभी हम सारे विश्व को- सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया एवं वसुदेव कुटुंबकम जैसी पुरातन भारतीय सोच का फायदा हम अपने देश की मानवता के साथ साथ संपूर्ण विश्व की मानवता के लिए कर पाएंगे, संस्कृत भाषा विश्व की समस्त भाषाओं की जननी है इसका पुनर्जीवित होना बहुत जरूरी है और यह काम हमारा देश ही कर सकता है, विश्व में हमारा देश ही इतना सक्षम है कि वह संस्कृत भाषा को विश्व कल्याण के लिए पुन: पुनर्जीवित कर सकता है।
हिंदी हमारे देश की राष्ट्रभाषा है- हमें हमारे देश का अधिक से अधिक कार्य हिंदी में करना चाहिए ना कि हम जिसके वर्षों तक गुलाम रहे।उसकी भाषा में - जय हिंद जय भारत।
प्रस्तुति.....के. के. पाठक डगनिया रायपुर