संयम जीवन दुर्लभ है, स्वयं के लिए नहीं दूसरे के कल्याण के लिए जीना चाहिए
अहमदाबाद। सरदारजी टिकट काउंटर वाले के पास जा टिकिट मांगी। अरे सरदारजी! आपको कौन से गांव की टिकिट दूं? भैया! किसी अच्छे गांव की टिकट दे दो ना।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए पूज्यश्री फरमाते है कि जैन धर्म को पाकर भी आपको यदि आपका निश्चित स्थल पता नहीं तो आपका मानव जन्म पाना व्यर्थ है। आपने जन्म लिया है इसी के साथ आपको ये भी पता है आपकी मृत्यु होने वाली है आप लोगों को इन सब की बराबर जानकारी है, मगर मृत्यु के बाद यहां से कहां जाना है वह निश्चित स्थल आपको पता नहीं है।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है आप किसी के पास कोई नई चीज देखते हो तो तुरंत उसे मिलाने की ईंतजारी होती है। किस तरह से उसे पाना उसमें लगे रहते हो। कोई व्यक्ति वकील बना हो तो हमें भी वकील बनने की तमन्ना जागृत होती है। कोई ऑफिसर बना हो तो कितने को ऑफिसर, कोई डॉक्टर बना हो तो कितने को डॉक्टर बनने की भावना होती है मगर आपने कभी किसी साधु को देखा हो तो आपको भी साधु बनने की तमन्ना हुई? कभी मन में भावना जागृत हुई कि मैं भी उस साधु की तरह संयम ग्रहण करूं आपको यदि ऐसी भावना हो जाय तो आपका जन्म सफल हो गया ही समझो।
जिसे जन्म मरण के चक्कर नहीं कांटने है उनके लिए शास्त्रकार महर्षि ने मोक्ष का स्थान बतााय है। जिसे मोक्ष को मिलाना है उन्हें तो युवान अवस्था में ही संयम ग्रहण कर लेना चाहिए ताकि अच्छी तरह से आराधना करके मोक्ष को पा सके। कहते है जिस तरह पति-पत्नी शादी के समय फेरा खाते हुए ये तय करते है कि जीअेंगे या मरेंगे दोनों साथ साथ ही करेंगे इसी तरह का विचार आपको लक्ष्य के समय आया कि मोक्ष को पाने के लिए दोनों आराधना साथ मिलकर ही करेंगे तथा मोक्ष में एक साथ ही जाएगें। सवि जीवन करन शासन इसि, ऐसी भावना दया मन मां वरनी पूज्यश्री फरमाते है जो व्यक्ति तीर्थंकर की आत्मा है उसी के मन में विचार आता है मैं सभी की भलाई करूं। मोक्ष के लिए ईंतजारी भी ऐसी आत्मा को ही होती है।
कितने लोग प्रश्न करते है साहेब! आप कहते हो दीक्षा ले लो लेकिन भावना होती ही नहीं तो कैसे ले? पूज्यश्री उस प्रश्नार्थी को जवाब देते हुए फरमाते है दीक्षा की भावना के लिए आपको शास्त्रों का वाचन करना होगा महात्माओं के मुख से प्रवचन सुनना होगा। निमित्त से ही विचार बदलते है। कितने श्रावक तो इस प्रकार से धर्म का माहौल पाने के लिए जिनालय के नजदीक में अपना घर लेते है हो उस गांव शहर में रहते है। जहां साधु-साध्वीओं का विचारण होगा वहां जिनवाणी का श्रवण सुलभ है। बस इस तरह से जिनवाणी के श्रवण से जीवन में परिवर्तन लाकर शीघ्र संयम के पथ को स्वीकारता है। ऐसे व्यक्ति ही अपने लक्ष्य तक पहुंचने में कामयाब होता है।
पूज्यश्री फरमाते है कितने श्रावक श्राविकाओं के लिए ये चीज कठिन है कहते है साहेब! संयम ग्रहण करना कोई सरल नहीं। हम घर पर रहकर आप जिस प्रकार से कहोंगे उस प्रकार से आराधना करेंगे। संयम जीवन दुर्लभ है, उन लोगों को स्वयं के आत्मा के कल्याण के लिए नहीं बल्कि अन्य आत्मा का कल्याण किस प्रकार का हो उस प्रकार का जीवन जीना चाहिए। आज तक हम जन्म से लेकर अब तक स्वयं का भला ही चाहते रहे अब हमें मृत्यु न आए तब तक के लिए दूसरों की भलाई करके जीवन जीना है। पूज्यश्री ने कहा, एक अच्छा विचार जीवन का सर्जन करता है। एक अच्छा विचार मानव को बदल देता है बस, आप सभी को इन छकाय के जीवों की रक्षा के लिए संयम ग्रहण करना है यदि संयम ग्रहण न कर सको तो स्वार्थ से नहीं बल्कि परमार्थ का जीवन जीकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनाएंगा।
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