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अहमदाबाद। इमारत को बरसों तक टिकाने के लिए नींव महत्व का काम करती है। नींव यदि मजबूत होगी तो इमारत ऊंचाई तक आराम से टिकेगी। यदि यहीं नींव कमजोर होगी तो उसके ऊपर चोटी सी इमारत भी नहीं टिक सकेगी। कहते है यदि नींव मजबूत होगी दचका लग भी जाए तो इमारत जैसी की तैसी ही रहेगी, लेकिन यदि नींव कमजोर हो तो छोटा सा भूकंप का उसे दचका लगे तो वह इमारत कड़ककर रह जाएगी।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए पूज्यश्री फरमाते है इमारत कितनी भी ऊंची क्यों न हो? चाहे वह इमारत आकाश से बातें करती होगी और उस इमारत में नींव नहीं तो उस ईमारत का कोई मतलब नहीं। जिस तरह ईमारत में नींव जरूरी है उसी तरह मानवी के जीवन में नींव के रूप में संस्कार जरूरी है। ईमारत को खड़ी करने के लिए जिस तरह नींव में सीमेंट, कंक्रीट का महत्व है उसी तरह जीवन की नींव में संस्कार-सदाचार का महत्व है। उसी तरह जीवन की नींव में संस्कार सदाचार का महत्व है।
पूज्यश्री फरमाते हैं बड़े अफसोस की बात है कि मानवी इमारत के क्षेत्र में सबसे पहले नींव को मजबूत बनाने का ख्याल रखता है जबकि जीवन के क्षेत्र में नींव रूपी संस्कार के महत्व का ख्याल ही नहीं रखता है। घर-घर में आज इस संस्कारों की कमी है। बच्चा जब जन्म लेता है तभी से बालक में संस्कारों का सिंचन करना चाहिए। मां बाप का कत्र्तव्य बनता है। अपने बच्चे में अच्छे संस्कार डालने हेतु उसे अच्छी स्कूल में धर्म के संस्कार उसमें पड़े इस हेतु उसे पाठशाला भेजकर, कुसंस्कार उसमें न आए इस हेतु अच्छे वातावरण में रखना चाहिए। बालक के आसपास का माहौल जैसा होगा वैसे संस्कार उस बालक में आएंगे।
प्रवचनकी धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है मां बाप को पहलेसे ही कड़क रहना चाहिए। बच्चा यदि स्कूल से किसी की चीज चुराकर लाए के उसे कड़काई को सजा करनी चाहिए यदि उस बालक को सजा न की तो उसमें पूरे संस्कार घुस जाने का भय जरूर है।
एक बार पांच वर्ष का नमन अपनी मां के साथ सब्जी के बाजार में गया। मां एक बाजु खड़ी रहकर सब्जी ले रही थी इस ओर नम के चुपके से सब्जी वाले की नजर छूपाकर चार-पांच नींबू उटाकर अपने जेब में डाल दिए। घर आकर उसने अपने जेब से नींबु निकालकर अपनी मां को दिखाया। देख मां! ये नींबू चुराकर लाया हूं। मां ने नम की पीठ थपथपाकर कहा, वाह, बेटा, कह, तुमने खूब अच्छा काम किया। ये लोग सब्जी के डबल भाव बोलकर हमें ठगाते ही है। नमन की मां के साथ उनकी पडोसन भी सब्जीलेने आई थी। उसने अपनी पडोसन रमा को कहा, देखा , मेरा बेटा कितना होशियार है उसने अपनी चालाकी से सब्जी वाले की नजर में धूल डालकर ये नींबू ले आया। रमा ने भी नमम को साबासी देते हुए उसकी पीठ थपथपाई।
कहते है किसी भी कार्य के लिए जब एकसे दो का प्रोत्साहन मिले तो व्यक्ति का उत्साह बढ़ जाता है एवं वह कार्य आगे बढ़ता है चाहे वह कार्य बूरा हो या अच्छा। नमन का उत्साह बढ़ता गया। अब चोरी का सिलसिला रोज का बढ़ते गया। कभी टमाटर तो कभी आमला तो कभी आम। इस तरह सब्जी वाले की आंख में धूल झोंककर कुछ  न कुछ चीज वह चोरी करके घर लाने लगा। एक दिन नमन के पप्पा भोजन के लिए डाईनींग टेबल पर बैठे है यकायकी नमन की मम्मी ने आम का आचार शीशी से निकालकर उनकी थाली में पीरसा। अरे। ये आम का आचार कहां से आया। नमन की कृपा से। मतलब क्या है सीधी तरह से बोल?
दरअसल बात ऐसी है जब मैं सब्जी खरीदने जाती हूं, तो नमन मेरे साथ रोज आता है तथा कुछ न कुछ चीज वह उठाकर लाता है। अभी आम के सीरान नहीं। अपने पास इतने पैसे भी कहा है कि आम खरीद सके? ये तो नमन कल दो आम चुराकर लाया था उसी का आचार बनाया है। नमन के पिता थाली से उठकर सीधे नमन के मुंह पर तमाचा लगा दिया। अरे! नमन को क्यों मार रहे हो? आज तो सिर्फ एक तमाचा ही मारा है कल मैं चौविहार उपवास करूंगा। ऐसा तो मेरे बेटे ने क्या बड़ा पाप किया जो आप उसे सजा दे रहे है? नमन की मां! आज उसने छोटी चोरी की है कल बड़ा होकर वह लूटेरा भी बन सकता है। क्या तेरे पास इसकी गेरंटी है कि व बड़ा होकर चोर-लूटेरा नहीं बनेगा? छोटी उम्र में उसे इस प्रकार के कुसंस्कार सिखाने में तुझे शर्म नहीं आई?
पूज्यश्री फरमाते हैं कि जहां अपराध है वहां सजा है ही। बच्चों को सुधारने के लिए सजा देनी ही पड़ती है। आज शाम को उसने खाना मत देना भले वह भूखा सो जाए। यहीं नमन बड़ा होकर बैंक का केशियर बना। वह कहता है पिताजी का आज मुझ पर बड़ा उपकार है। बैंक में पैसों को हेराफेरी होती रहती है लेकिन कभी पैसों की गड़बड़ी करने का मन नहीं हुआ।
घटना स्पष्ट है बच्चे तो कोरी स्लेट है। उस स्लेट में आप जो लिखेंगे वहीं उसका भविष्य बनेगा। यदि उसमें अच्छे संस्कार डालोंगे तो वह आगे जाकर कोई महापुरू बनेगा, यदि उसमें बूरे संस्कारों का सिंचन करोंगे तो वह आगे जाकर डाकू-लूटेरा अथवा तो गुंडा भी बन सकता है। बस, बच्चों में कुसंस्कार न आ जाए उसकी सावधानी रखकर सुसंस्कारों का बीज बोकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।