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गजेंद्र सिंह शेखावत, केंद्रीय जल शक्ति मंत्री
पिछले कुछ दिनों से, राजनीति के दोनों पक्ष के लोगों के बीच एक मुहावरा चर्चा का विषय है, वह है – 'वी-आकार की रिकवरीÓ। मेरी याद में पिछली बार 'वीÓ अक्षर लोगों के बीच चर्चा में तब आया था, जब कलात्मक ब्रिटिश फिल्म 'वी फॉर वेंडेटाÓ रिलीज़ हुई थी। वित्त मंत्री के भाषण से पहले, विपक्षी दलों के कई बुद्धिजीवियों / नेताओं ने बदला लेने का बजट (वी फॉर वेंडेटा) की वकालत की थी – आय कर में वृद्धि करें, कॉरपोरेट्स पर भारी टैक्स लगाएं, सरकारी खर्च में कमी करें, आदि। लेकिन यदि मुझे इस बजट का कोई शीर्षक देना हो, तो मैं इसे प्रमाण देने वाला वी बजट (वी फॉर विंडीकेशन) कहूंगा। यह बजट आर्थिक पुनरुद्धार की दिशा में सरकार के दृष्टिकोण का एक व्यापक प्रमाण है। सरकार ने इस बजट के माध्यम से जो हासिल करने का लक्ष्य रखा है, वह वास्तव में साहसिक है और इसने निश्चित रूप से छोटे उद्धेश्यों की प्राप्ति के लिए बड़े लक्ष्य का त्याग नहीं किया है। 
हमारी सामूहिक स्मृति के सबसे बड़े संकट के बीच यह बजट आया है–वैश्विक महामारी, जिसने पिछले साल के अधिकांश समय को बर्बाद कर दिया। भारतीय अर्थव्यवस्था लगभग 7 प्रतिशत तक संकुचित हो गयी, राजस्व संग्रह निम्न स्तर पर चला गया और व्यय में तेज वृद्धि हुई, मांग में बहुत कमी आयी, निर्यात घट गया तथा व्यापार निवेश में विराम लग गया। राजस्व में कमी के बावजूद अर्थव्यवस्था की गति को बनाए रखने का एकमात्र उपाय था – सरकारी खर्च।
इसलिए सरकारी खर्च, 2020 में आसमान छू गया। इसका अधिकांश हिस्सा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 80 करोड़ लोगों को किफायती खाद्यान्न उपलब्ध कराने में खर्च हुआ। इस तरह की राजकोषीय चुनौती के सामने, कोई भी अन्य सरकार अपने घुटनों के बल बैठी होती, जिसके ऊपर अपने घटकों को प्रसन्न करने के लिए दबाव होता या जो आर्थिक विकास के लिए छोटे-मोटे निर्णय कर रही होती। लेकिन सरकार ने समस्या का मुकाबला किया और उत्पादक-विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए 9.5 प्रतिशत के राजकोषीय घाटे की चुनौती को स्वीकार किया।
 सरकार अपने राजकोषीय अनुशासन में असाधारण रूप से विवेकपूर्ण रही है, लेकिन मुश्किल समय ने सरकार को अगले पांच वर्षों में राजकोषीय घाटे को सही करने के लिए इसे दोगुना करने पर बाध्य किया। सरकार ने समझदारी से यह किया है – पूंजीगत व्यय को बढ़ाया गया है, अर्थात उत्पादक परिसंपत्तियों के निर्माण में 26 प्रतिशत की वृद्धि के साथ कुल 5.5 लाख करोड़ रुपये की धनराशि का आवंटन। गैर-उत्पादक राजस्व व्यय को काफी कम किया गया है। उत्पादक परिसंपत्तियों के निर्माण में वृद्धि का नौकरियों और खर्च पर गुणात्मक प्रभाव पड़ता है।
इस प्रकार, इस बजट को बारीकी से समझने की जरूरत है। जब समय ने कदम बढ़ाने और पुनरुद्धार की जिम्मेदारी लेने का आह्वान किया, तो सरकार ने ठोस निर्णय लिए और अपने स्वयं के खर्च पर अन्य क्षेत्रों को फिर से पटरी पर आने के लिए उत्साह प्रदान किया। यह जोखिम, वास्तव में विश्वास और प्रशंसा का प्रमाण है, जिसके द्वारा सरकार ने अपने लोगों की उद्यमशीलता की भावना को रेखांकित किया है। महामारी की शुरुआत में, भारत शायद ही किसी मास्क या पीपीई व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण) का निर्माण कर रहा था। सरकार ने उद्यमियों को मास्क व पीपीई के सबसे बड़े निर्माता के रूप में देश को परिवर्तित करने की जिम्मेदारी सौपी और उद्योग जगत ने इस कार्य को बखूबी अंजाम दिया। 
जब कोविड-19 ने सब कुछ बाधित कर दिया, तो कई देशों ने संकट और भय के दबाव में खर्च किया, जबकि भारत ने अपने व्यय में वृद्धि की। सरकार की दूरदर्शिता से जुड़े इस सतर्क लेकिन व्यावहारिक दृष्टिकोण ने भारत को कोविड के बाद के युग में एक अकेला उज्ज्वल स्थान के रूप में स्थापित किया। केवल एक चीज है, जो भारत में निवेशकों के विश्वास को और बढ़ा सकती है, वह है –एक सपनों का बजट। बजट घोषणा के बाद से शेयर बाजार में लगातार तेजी का रुख जारी है। एक तार्किक सवाल यह है कि यदि सरकार टैक्स नहीं बढ़ा रही है तो वह इस पूंजीगत व्यय को कैसे पूरा कर पाएगी? इसका जवाब है विनिवेश, आईपीओ और सरकार के पास मौजूद परिसंपत्तियों की क्षमता का बेहतर इस्तेमाल। इस प्रकार, इस बजट में 1.75 लाख करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य, सरकार और राज्य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की संपत्ति का विमुद्रीकरण, 2 सार्वजनिक बैंकों का निजीकरण और एलआईसी का आगामी आईपीओ आदि निर्धारित किये गए हैं। इस वर्ष का बजट 6 सिद्धांतों – स्वास्थ्य एवं देखभाल; भौतिक व वित्तीय पूंजी एवं बुनियादी ढांचा; महत्वाकांक्षी भारत के लिए समावेशी विकास; मानव पूंजी (श्रम शक्ति) की मजबूती; नवाचार एवं अनुसंधान तथा विकास; और न्यूनतम सरकारी हस्तक्षेप एवं अधिकतम शासन – पर आधारित है। इस महामारी से हमारे स्वास्थ्य संबंधी ढांचे की अपर्याप्तता सामने आयी। पूरी दुनिया अस्पतालों में अत्यधिक भीड़, बिस्तरों एवं वेंटिलेटरों की कमी और अफरातफरी के माहौल से ग्रसित थी। इस महामारी से पूरी निपुणता के साथ निपटकर सरकार ने कई वैश्विक विचारकों को अवाक कर दिया। पश्चिमी दुनिया के उलट, भारत अपने स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की भावना के साथ एक विजेता बनकर उभरा है। 
माननीय प्रधानमंत्री ने कहा था – "जान है तो जहान है"। इस बजट में स्वास्थ्य के क्षेत्र में आवंटन को 137त्न की जबरदस्त बढ़ोतरी करते हुए 2.23 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है, जिसमें 'प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजनाÓ नाम की एक नई योजना को साथ जोड़ते हुए कोरोना टीकाकरण के लिए 35,000 करोड़ रुपये का एकमुश्त आवंटन भी शामिल है। कुल 6,46,180 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ, यह बजट देश की स्वास्थ्य प्रणाली में बदलाव का एक नया प्रतिमान गढ़ेगा। समावेशी विकास के एजेंडे के तहत, सभी 4,378 शहरी स्थानीय निकायों में सार्वभौमिक जलापूर्ति के उद्देश्य से 2.86 करोड़ घरेलू नल कनेक्शन प्रदान करने के लिए जल जीवन मिशन (शहरी) को 2,87,000 करोड़ रुपये का एक बड़ा आवंटन किया गया है। यह कदम महामारी के बावजूद 3.3 करोड़ घरों में नल कनेक्शन, जो पिछले 70 वर्षों में प्रदान किए गए कुल नल कनेक्शनों से अधिक है, प्रदान करने के जल शक्ति मंत्रालय के अदभुत काम पर अनुमोदन की एक मोहर है। मल एवं अपशिष्ट के संपूर्ण प्रबंधन के उद्देश्य से स्वच्छ भारत 2.0 के लिए 1.41 लाख करोड़ रुपये की राशि का आवंटन भारत को समग्र स्वच्छता की ओर अग्रसर करेगा। हर घर को सामाजिक कल्याण का लाभ प्रदान करने के दायरे को विस्तार देते हुए, उज्ज्वला योजना को और 1 करोड़ घरों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। कृषि ऋण के लिए 16.5 लाख करोड़ रुपये का आवंटन, ग्रामीण बुनियादी ढांचा कोष के लिए 40,000 करोड़ रुपये का आवंटन, लघु सिंचाई के लिए दोगुनी धनराशि प्रदान करना और 1,000 से अधिक मंडियों को ई-एनएएम प्रणाली के दायरे में लाना हमारे अन्नदाताओं (किसानों) के प्रति वचनबद्धता का परिचायक है।  स्वैच्छिक वाहन स्क्रेपिंग नीति (वोलंटरी व्हिकुलर स्क्रेपिंग पालिसी) एक ऐसी शक्ति है, जिसकी जरूरत ऑटोमोबाइल क्षेत्र में लंबे समय से महसूस की जा रही थी। अनफिट वाहनों को हटाने से ऑटोमोबाइल उद्योग में नई मांग उत्पन्न होगी, जो संपूर्ण मूल्य श्रृंखला को बड़े पैमाने पर लाभान्वित करेगी। 
कुल 1.97 लाख करोड़ रुपये की लागत वाली पीएलआई (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव) योजना को 13 क्षेत्रों में विस्तारित किया गया है। वर्ष 2020 में पीएलआई योजना के माध्यम से निर्माताओं पर जताये गये भरोसे का अच्छा पुरस्कार मिला है। इस प्रकार, इस वर्ष का बजट भारत को एक विश्वस्तरीय विनिर्माण केंद्र के रूप में विकसित करने की परिकल्पना करता है।

रेलवे को सबसे अधिक 1.1 लाख करोड़ रुपये का आवंटन दिया गया है। रेलवे ने महामारी की चरम स्थिति में प्रवासी ट्रेनों को चलाने का चुनौतीपूर्ण कार्य किया। इसने यह सुनिश्चित किया कि संकट की परिस्थिति में माल का परिवहन बिना किसी बाधा के जारी रहे। भारतीय रेलवे की यह सहनीयता हर किसी के सामने स्पष्ट थी और यह उम्मीद की जा रही है कि रेलवे वर्ष 2021 में भारत को प्रगति की राह पर और आगे ले जायेगा।

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विकासोन्मुखी बजट व पुनरुत्थान के बजट का विकल्प

इस वर्ष के बजट में भारतीय अर्थव्यवस्था के सुदृढीकरण के लिए बहुत सारे कदम उठाए गए हैं। प्रत्येक फायदे की विस्तार से व्याख्या करना यहाँ संभव नहीं है। लेकिन एक बात निश्चित है कि यह सरकार, एक अस्तित्व बचाने वाला बजट, एक उबरने वाला बजट या अल्पकालिक उपायों वाला बजट का विकल्प चुन सकती थी। लेकिन इसने दीर्घकालिक उपायों के बारे में सोचने का साहस और हौसला दिखाया और एक विकासोन्मुखी बजट व पुनरुत्थान के बजट का विकल्प चुना। भारत ने आखिरकार विकास को अपना लिया है और यह बजट एक आत्मनिर्भर भारत का सपने को साकार करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।