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केके पाठक
ईश्वर सर्व व्याप्त है, कण- कण में है भगवान। जब तक हम ईश्वर से नहीं जुड़ते उनसे अपना नाता नहीं जोड़ते, उन पर अपना सबकुछ समर्पित नहीं करते, तब तक हमें यह ज्ञान नहीं प्राप्त होगा, कि ईश्वर सर्व व्याप्त है और हम अपनी मनमानी करते रहेंगे। हम अपने शरीर के बल का दुरुपयोग, शिक्षा का दुरुपयोग, धन का दुरुपयोग, ज्ञान का दुरुपयोग करते रहते हैं। हम यह नहीं समझ पाते कि हमारे पास जो कुछ भी है, वह सब ईश्वर की ही कृपा से है, जिस दिन उनकी कृपा हटी- और उस दिन सब कुछ यहीं पर रखा रह जाएगा- चार लोग कंधों पर उठाकर बोलेंगे राम नाम सत्य है। इसीलिए हमें हमेशा ईश्वर को ध्यान में रखकर कार्य करना चाहिए, ईश्वर सर्व व्याप्त हैं। और हमारे एक- एक पल की एक-एक कदम की एक-एक सोच की जानकारी उनके पास है। अभी भौतिकवादी युग में जगह-जगह आपकी असामाजिक गतिविधियों को देखने के लिए कैमरे लगाए गए हैं, और वहां लिखा होता है कि सावधान आप कैमरे की नजर में हैं। तो आप अपने कर्मों को बदल देते हैं, और आप सावधान हो जाते हैं। लेकिन यह तो एक छोटी सी चीज है। और एक छोटी सी जगह को कवर करती है। ईश्वर तो सारे विश्व में सारे ब्रह्मांड में जड़ और चेतन में कब क्या होगा कौन क्या कर रहा है, कौन कैसे कर्म कर रहा है, सदैव देखते रहते हैं। जब हमें यह ज्ञान हो जाएगा कि ईश्वर सर्व व्याप्त हैं। तो हमारे विचारों और कर्मों में अपने आप परिवर्तन आ जाएगा।
 हमारे विचार और कर्म हमेशा सकारात्मक होंगे। हमारे मन में ईश्वर का डर होना अति आवश्यक है, तभी हमारे कर्मों में सुधार होगा। यदि हमारे कर्मों में सुधार होगा तो हमें उसका प्रतिफल भी सकारात्मक प्राप्त होगा। जिससे हमारा जीवन सुखमय हो जाएगा। एक गुरुदेव ने अपने शिष्य को शिक्षा दीक्षा दी और सारे सद्गुणों से शिक्षित कर दिया ईश्वर के विषय में भी जानकारी दी कि ईश्वर सर्व व्याप्त हैं। और वे तुम्हारे पल पल के कर्मों को देखते रहते हैं उसी के अनुसार तुमको उन कर्मों के फल प्राप्त होते हैं। गुरुदेव एक दिन अपने उसी शिष्य को लेकर घूमने निकले, घूमते- घूमते गुरुदेव और शिष्य काफी लंबी दूरी पर चले गए, वहां पर हरे भरे चने के खेत थे।  खेतों में चने लगे हुए थे।गुरुदेव ने अपने शिष्य से कहा कि शिष्य मेरी इच्छा  हरे भरे चने खाने की हो रही है, तुम जाओ और खेत से 7- 8 चने के पेड़ उखाड़ लाओ। लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि तुम्हें कोई देखे ना नहीं तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी, शिष्य गुरु का आदेश मानकर खेत की ओर चला गया और वहां पर खड़े होकर उसने चारों तरफ नजर दौड़ाई उसे कहीं भी कोई भी नजर नहीं। आया फिर उसे गुरुदेव की शिक्षा याद आई, कि ईश्वर सर्व व्याप्त है और वे तुम्हारे प्रत्येक कर्मों को देख रहे हैं। शिष्य वापस लौट कर आ गया और उसने गुरुदेव से कहा गुरुदेव में आपके लिए चने के पेड़ नहीं ला सकता- तब गुरुदेव ने कहा क्यों- तो उसने जवाब दिया कि  गुरुदेव आपने ही तो शिक्षा दी है, कि ईश्वर सर्व व्याप्त हैं। और वे तुम्हारे कर्मों को पल-पल के कर्मों को देख रहे हैं। गुरुदेव ने शिष्य की पीठ थपथपाई और कहा कि अब तुम मेरे एक अच्छे शिष्य बन गए हो, सतकर्मों में निपुण हो गए हो। मैंने तुम्हारी परीक्षा ली थी और तुम उसमें सफल हो गए हो शिष्य ने गुरु के चरण पकड़ लिए, गुरुदेव ने शिष्य को आशीर्वाद दिया, और दोनों वापस अपने आश्रम की ओर चल दिए। यदि हम हमेशा याद रखें कि ईश्वर सर्व व्याप्त है, और सब कुछ देख रहे हैं- तो हम  सुनसान में भी, बंद कमरे में भी, और अंधेरे में भी बुरे कर्मों की सोच अपने मन में नहीं लाएंगे। तभी  हमारे कर्मों में परिवर्तन अपने आप आ जाएगा और हमारा सुधार होगा। कहा गया है कि अपना सुधार ही दुनिया का संसार का सबसे बड़ा सुधार है, और पुण्य का कार्य है।