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अहमदाबाद। आज का दिन बड़ा ही मंगलकारी एवं आनंदकारी दिन था। पूज्यश्री की गच्छाधिपति पद निमित्ते विविध स्थलों से उग्र विहार करके अनेक आचार्य भगवंतों तथा पन्यास मुनिवरों उपस्थित हुए। तपागच्छाधिपति प.पू. मनोहर कीर्ति सूरीश्वरजी महाराजा के शुभ सांनिध्य तथा पूज्यश्री की शुभ निश्रा में भव्य गुणों का मान किया गया।
कहते हैं शून्य में से सर्जन के पीछे किसी न किसी का हाथ जरूर होता है। पूज्यश्री दीक्षा दिन से लेकर पू. गुरुदेव विक्रम सूरीश्वरजी महाराजा जब तक इस दुनिया में उपस्थित थे तब तक पूज्यश्री ने गुरूदेव की सेवा-भक्ति-गुरू आज्ञा तहत्ति की। कभी किसी भी कार्य के लिए पूज्यश्री ने अपने मुख से ना नहीं कहीं। आज उन्हीं की सेवा तथा आज्ञा के फलस्वरूप पूज्यश्री को लब्धि समुदाय के गच्छाधिपति बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
आज हमारे उपकारी पूज्यश्री के गुणों का गान करते हुए प.पू. यशोवर्य सूरीश्वरजी महाराजा के पट्टधर शिष्य पू.भाग्ययश सूरीश्वरजी महाराजा सभा को संबोधित करते हुए फरमाते है पू.गुरूदेव विक्रय सूरीश्वरजी महाराजा प्रतिदिन पूज्यश्री को प्यार से राजा के नाम से ही पुकारते है। कहते है महापुरूषों का वचन हमेशा सिद्ध होता है उनके मुख से निकला हुआ शब्द भविष्य में शुभ को सूचन करने वाला होता है।
पूज्यश्री जब मां के गर्भ में थे तब उनकी माता ने स्वप्न में सफेद हाथी को देखा था। माना ने अपने इस स्वप्न का फल किसी ज्योतिष से पूछा तब उन्होंने कहां था तुम्हारा पुत्र भविष्य में राजा बनेगा। पू.आ. भाग्ययश सूरीश्वरजी महाराजा फरमाते है पू. गुरूदेव तो प्यार से राजा बुलाते थे परंतु भविष्य के राजा बनेंगे थे उनके वचन आज सत्य हो रहे है वाकई में महापुरूष ज्ञानी है तभी उन्हें पूर्व से यह संकेत हो जाता है।
पूज्यश्री के गुरूभ्राता प.आ.श्री वीरेशयश सूरीश्वरजी महाराजा ने फरमाया पूज्यश्री ज्ञान के महासागर है। जब भी कोई साधु अथवा साध्वी भगवंत उन्हें किसी भी विषय में जबभी कोई साथु अथवा साध्वी भगवंत उन्हें किसी भी विषय में प्रश्न पूछते है तो वे हाजिर जवाब देते है। हर एक विषय में उनका दीप ज्ञान है। पूज्यश्री सात-सात भाषा के जानकार। जिस जगह पर जैसे लोग होते है उस भाषा में पूज्यश्री प्रवचन करते है।
पू.उपा.विश्रुतयश विजयजी महाराजा ने फरमाया पूज्यश्री खूब ही सत्वशाली एवं समता के धनी है। कोरोना महामारी के दौरान जब पूज्यश्री के अनेक साधु-साध्वी भगवंतों को कोरोना हुआ तब पूज्यश्री ने सत्व के साथ सभी साधु-साध्वीजी भगवंतो को हिम्मत-हौसला देकर सभी को शाता पहुंचाई। स्वयं भी इस महामारी से घिरे थे परंतु खूब ही समता पूर्वक सहन करके वे इस महामारी से बाहर आए।
नूतनमुनि श्री त्रिलोकयश वि.महाराजा ने फरमाया पूज्यश्री की साधना का समर्पण तथा समर्पण की साधना भी अजब गजब की थी करके साधना का समर्पण तो किया ही था लेकिन समर्पण की साधना भी अजब गजब की थी।पूज्यश्री का चातुर्मास प्रेरणा तीर्थ तय हो गया था तब गच्छाधिपति पू. जयघोष सूरीश्वरजी महाराजा का आदेश आया कि आपको शासन की प्रभावना करते हेतु मुंबई ही चातुर्मास के लिए पधारना है तब पूज्यश्री ने आगे पीछे का कुछ न सोचकर गच्छाधिपति का आदेश सहर्ष स्वीकार किया ये उनके समर्पण गच्छाधिपति का आदेश सहर्ष स्वीकार किया ये उनके समर्पण की झलक थी।
तगागच्छाधिपति पू.मनोहर कीर्ति सूरीश्वरजी महाराजा ने फरमाया कितने व्यक्ति की शोभा पद से होती है किंतु पूज्यश्री में अनंत गुण है जिनके गुणों का गान अनेक आचार्यों तथा मुनिवरों ने किया। ऐसे देखा जाय तो पूज्यश्री का व्यक्तित्व ही इतना अच्छा है कि कल उन्हें जो गच्छाधिपति पद मिलेगा वे इसके लायक है। आप और हम सब कल के दिन का ईंतजार कर रहे है व दिन अब नजदीक है। बस, आप सभी की प्रार्थना एवं प्रभु पाश्र्व एवं माता पझा की कृपा से पूज्यश्री इस गच्छाधिपति पद से अलंकृत होकर शासन की प्रभावना करते हुए शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।