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अहमदाबाद। जीवन के क्षेत्र में किसी व्यक्ति को आगे बढ़ाना हो तो उसकी प्रशंसा करो। प्रशंसा हमेशा अच्छे कार्यों की होती है, खराब कार्यों की नहीं। एक बात का ख्याल अवश्य करे, जब कभी आप किसी की प्रशंसा करो आजु बाजु के वातावरण को ध्यान में रखकर ही करे। आप के द्वारा की गई प्रशंसा किसी अन्य व्यक्ति को द्वेष अथवा ईष्र्या का कारण न बनें।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, प्राचीन तीर्थ जीर्णोद्धारक प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है कोई व्यक्ति अच्छा कार्य करता हो तो उसकी प्रशंसा अवश्य करना। कहते है सत्कार्यों का प्रोत्साहन सद्गुणों को मजबूत बनाता है किसी व्यक्ति का उत्साह बढ़ाना हो तो उसकी प्रशंसा जरूर करो यदि प्रशंसा करते  वक्त आपको लगता हो यहां द्वेष का वातावरण खड़ा, होगा तुरंत प्रशंसा करने से अटक जाओं। 
प्रथम तीर्थंकर ऋणभदेव भगवान का पूर्व के तीसरे भव में वे वज्रनाभ चक्रवर्ती थे। उन्होंने बाहु-सुबाह, पीठ महापीठ इन चार छोटे भाईओं के साथ दीक्षा ली थी। स्वयं चौद पूर्वधर बनें। तथा वे बाहु विगेरे के गुरू बनें। बाहु मुनि ने साधुओं की गोचरी-आहार की व्यवस्था का भार स्वयं ने संभाला तथा सुबाहु मुनि ने 500 साधुों की वैयावच्च का भार संभाला। 
एक बार वज्रनाभ सूरि ने उन दोनों के दुष्कर कार्य की प्रशंसा सहज तरीके से सबके सामने की। उस वक्त सूरि के मन में किसी का अच्छा एवं विकसी का बूरा इस तरह का भाव नहीं था फिरभी, पीठ एवं महापीठ जो हमेशा स्वाध्याय में आगे हुआ करते थे। उन्हें खराब लग गया। वे ईष्र्या से भर गए। उनके मन में विचार आया, दुनिया में काम करने वालों की ही कीमत है। हमारे जैसे स्वाध्याय करने वालों की कहीं पर कीमत नहीं है।
प्रवचन की धाराको आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है जो समझदार व्यक्ति होगा वो अपने पूज्यों के भाव को समझकर मन में खराब विचार नहीं लाएगा। कहते है जिसकी कुशलता जिस क्षेत्र में है उस क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन एवं तारीफ करनी ही पड़ेगी लेकिन ऐसा भी देखा है प्रशंसा करने वाला व्यक्ति अभियान के टोच तक पहुंच जाता है। वह प्रशंसा नुकसानकारी है क्योंकि जो पाया है उसको वह पचा नहीं पाया है।
एक बार गुरू भगवंत के आदेश के मुताबिक अहिंसा की सिद्धि मिलाने के लिए एक मुनि सिंह की गुफा के पास चातुर्मास जाने हेतु निर्णय किया। दूसरे मुनि ने क्रोध पर विजय मिलाने के लिए सांप के बिल के पास काउसग्ग ध्यानमें रहकर चातुर्मास करने की अनुमति मांगी अप्रमत्त भाव से एक साधक मुनिराजय ने कुएं के किनारे रहकर चातुर्मास की परमीशन मांगी जबकि ब्रह्रचर्य की सिद्धि मिलाने स्थूलभद्र जी ने कोशा वैश्या के यहां चातुर्मास करने की अनुमति मांगी। चारों मुनिराज गुरू की आज्ञा लेकर अपने अपने स्थान गए। चातुर्मास करके जब वे मुनिराज वापिस लौटे तब गुरूदेव ने तीन मुनिवरों को अपनी अपनी सफलता पर बधाई देते हुए कहा, आप लोगों ने दुष्करकारक कार्य किया। जब स्थूलभद्रजी अपने पराक्रम की जीत मिलाकर लौटे तब गुरूदेवने उन्हें दुष्कर-दुष्करकारक कार्य किया इस प्रकार की बधाई दी।
जब सिंह गुफावासी मुनिराज ने अपने गुरू के मुख से स्थूलभद्रजी की प्रशंसा सुनी तो उन्हें भी अपने गुरू पर द्वेष हुआ। वे भी कोशा वैश्या के यहां चातुर्मास करने गए परंतु कोशा वेश्या के चुगल में फंस गए। वेश्या के चुगल से निकलकर पश्चाताप हेतु के पास आकर क्षमा मांगी और कहा, सही मायने में स्थूलभद्रजी ही प्रशंसा के योग्य है। आप यदि प्रशंसा मिलाने के लिए किसी की होड़ करने जाएगें आप में यदि सही योग्यता रहेगी तभी आप सिद्धि मिला सकोंगे। प्रशंसा मिलाने के लिए कोई भी कार्य करोंगे निष्सफल बनोंगे।योग्यता मिलाकर प्रशंसा की आशा रखें बगैर आप अपने कार्य में आगे बढ़ोंगे सिद्धि आपके चरण छूएंगी। सफलता पाकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।