अहमदाबाद। परम मंगलमय परमात्मा का शासन मिला तो हमें महापुरुषों के द्वारा परमात्मा का संदेश जानने को मिला। किसी की इच्छा होती है कि प्रमाद करे या कोई आलस भी करे तो भी महापुरुषों ने ऐसे ऐसे आयोजन बनाये है कि कोई भी मंदिर जब बनता है उसकी प्रतिष्ठा एक ही बार होती है लेकिन उस मंदिर की ध्वजा हर वर्ष तो चढ़ती है ही। वैसे तो शत्रुंजय तीर्थ की ध्वजा वर्ष में दो बार चढ़ती ही है। कल श्री विक्रम तीर्थ संस्कृति भवन की ध्वजारोहण है। बड़े ही ठाठ से सत्तरभेदी पूजा पढ़ाई जाएगी और ध्वजारोहण होगा।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, प्राचीन तीर्थ जीर्णोद्धारक प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है आप कितने ही व्यस्त क्यों न हो जो कार्य है वो तो होता ही रहेगा। आपका आपना प्रमाद त्याग करके इसमें जुडऩा है। कुमारपाल राजा अपने कार्यकाज में कितने ही व्यस्त क्यों न होते रथ यात्रा तो निकालते ही थे। इसी के साथ समय निकालकर प्रतिदिन 32 अष्टक का पाठ भी करते ही थे। इन अष्टकों के अर्थ समझ में जाए के नहीं अपनी आत्मा की शुद्धि हेतु रोज नियमानुसार इन अष्टकों का पाठ तो करते थे।
किसी ने हमें प्रश्न किया साहेब! हम शरीर की शुद्धि के लिए तो स्नान करते ही है। हमने कहां भैया! स्नान के अधिकारी वे ही है जो परमात्मा की रोज पूजा करता हो। जो पूजा नहीं करता है उ्न्हें तो स्नान ही नहीं करना चाहिए।
पूज्यश्री फरमाते है कुमारपाल राजा का राज्य वृद्धावस्था मे मिला। वृद्धावस्था के पूर्व जीवन में उन्होंने खूब तकलीफे देखी। रहने का तो ठिकाना नहीं था, खाने के लिए भी सांस पड़े फिर भी उन्होंने इन दु:ख की घडिय़ों को समभाव से सहन आपके जीवन में कैसा भी दु:ख क्यों न आए पूरी तैयारी से उसका स्वागत करना दु:ख, दु:ख रूप नहीं लगेगा।
मानलो, आपने पूरे परिवार के साथ शंखेश्वर तीर्थ जाने की तैयारी की हो, अचानक आपके घर आपके जमाई राज आ गए जो कभी वर्षों से आते नहीं थे उस समय आप क्या करोंगे? तीर्थ यात्रा की पूरी तैयारी है सिर्फ गाड़ी में सामान रखना बाकी है, बोलों क्या करोंगे? साहेब! जमाईराज है तीर्थ यात्रा जाने का सवाल ही नहीं, संपर्क करना ही पड़ता है।
पूज्यश्री फरमाते है जमाईराज अचानक आए दु:ख हुआ। उस दु:ख को सहन करने की आपकी पूरी तैयारी हुई रही बस, इसी तरह आपके जीवन मेंम चाहे किसी भी प्रकार का दु:ख का पहाड़ टूट पड़े तो सहनशीलता रखना हंसी खुशी उसका स्वागत करना। कुमारपाल राजा ने भी अपने जीवन के दु:खों को धीरज रखकर सहन किया तो उन्हें सिद्धि मिली।
एक युवान रास्ते से चल रहे थे अचानक किसी पत्थर की ठोकर से वे गिर पड़े। युवान ने उस पत्थर को गाली गलौच देना प्रारंभ कर दिया उसका मित्र जो युवान के साथ चल रहा था उसने युवान से कहा, तुं भी कैसा मूर्ख है। पत्थर को गाली क्यों देता है? दोप. उस पत्थर का नहीं तुम्हारे कर्मो का दोष है।
ठीक ऐसे ही, आपने किसी के पास उधारी के पैसा लिए हो लौटाते समय आपको दु:खी होने की जरूरत नहीं क्योंकि वे पैसा आपके नहीं हैव वे तो उसके है। एक ओर दृष्टांत से समझाता हूं। बस का ऐक्सीडेंट हुआ। उस बस में आपके परिवार के साथ अन्य 30 पैसेंजर भी बैठे थे आपके जीवन में आया। उसे किसी भी हालत में भुगतना ही पड़ेगा इसीलिए शास्त्रकार महर्षियों ने बताया बंध समय चित्त चेतीये, उदये सो संतापजब भी कर्म का बंध करो सोच समझकर करो क्योंकि आपका कम आपको ही भुगतना पड़ेगा। जब कर्म उदय में आए और आप उस कर्म को लेकर दु:खी हो ये बात ठीक नहीं इससे बेहतर है पूर्व से ही चेत जाओ। परमात्मा से प्रार्थना करके कहो, मुझमें वो शक्ति दे कि मैं मेरे ही किए हुए कर्मों को मजबूताई से भुगत शकुं।
एक भाई मेरे पास आए। साहेब! मेरे घर पधारना। हमने पूछा भैया, आपके घर में कौन कौन रहता है? साहेब! मेरे चार बेटे है। क्या, वे आपके साथ रहते है? नहीं साहेब! वे चारों विदेश में है। मैं और मेरी पत्नी ही है। साहेब! मैं चला जाऊंगा तो मेरी पत्नी का कौन?
बस, इस बात को लेकर दु:खी हो। शास्त्रकार महर्षि ने पहले से ही आपको सावधान कर दिया है एगोडहं नथी में कोई आप इस दुनिया में अकेले आए हो और अकेले ही जाओंगे कोई आपके साथ नहीं आएगा पूज्यश्री फरमाते है इस सत्य को जानकर आपको जेत जाना है आपको दु:खी नहीं होना है।
मेरी पत्नी, मेरा लड़का, मेरा पौत्र, मेरा प्रपौत्र येसभी तो नाटक के पात्रह ये संसार है वहां तक तक ही ये तुम्हारे है इनमें से एक चला गया तो सम्यग्रदृष्टि दु:खी नहीं होगा क्योंकि उसे पता है ये तो नाटक के पात्र थे।
बस, आपके जीवन में जब भी दु:ख के पल आए उसका हंसते हुए स्वागत करो, सहनशील बनकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।
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