अहमदाबाद। कोई व्यक्ति अच्छा कार्य कर रहा हो तो उसकी अवश्य प्रशंसा करो। सत्कार्य की प्रशंसा मानवी को सत्कार्य करने की प्रेरणा देता है इसी तरह कोई व्यक्ति खराब कार्य कर रहा हो तो उसकी कभी भी प्रशंसा नहीं करना। दुष्कार्य की प्रशंसा मानवी को दुष्कार्य करने की प्रेरणा देता है। प्रशंसा सभी को खूब प्रिय है। छोटा बालकर जब पहली बार तोतली भाषा अथवा तूटीफूटी भाषा में जब बोलने का शुरू करता है तब सभी उसे देखकर खुश होते है। शब्द एक ही बोलता है फिर भी उस बालक के मुख से सुनने के लिए सब उतवाले होते है। उस बालक को जैसे-जैसे प्रोत्साहन मिलता है जैसे जैसे उसके कार्य की प्रशंसा करते है वैसे वैसे बालक आगे बढ़ता है।
संगीतकार भी गाते गाते बीच बीच में अपने साथीदारों की प्रशंसा करता जाता है जिससे बजाने में उनका भी उत्साह बढ़े। इसी तरह कोई व्यक्ति दान करता है उसकी हम प्रशंसा करते है, तो उसको भी दान ओर भी ज्यादा करने को मन करता है। तपश्चर्या करने वाले तपस्वी की यदि हम प्रशंसा करते है तो वह व्यक्ति भी तप में ओर भी आगे बढ़ता है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य, प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरताते है चोरी जैसे दुष्कार्य की यदि कोई प्रशंसा करेगा तो वह व्यक्ति चोरी करने में ओर भी माहिर बन जाता है।कोई व्यक्ति खून करता हो तो आप यदि उसकी भी प्रशंसा करेंगे तो वह व्यक्ति आगे जाकर बड़ा खूनी बनेगा। पाप की प्रवृत्ति से ज्यादा पाप की प्रशंसा खूब खतरनाकतें क्योंकि पाप की प्रवृत्ति से बड़ा समय नुकसान होता है जबकि पाप की प्रशंसा के द्वारा लम्बा समय नुकसान होता है। क्योंकि पाप की प्रशंसा चीकने कर्म का बंध कराती है।
सम्यक्त्व की प्राप्ति पूर्व श्रेणिक राजा एक बार शिकार करने जंगल में गए। गर्भवती हिरणी को देखकर श्रेणिक राजा ने तीर चलाया। तीर सीधे हिरणी के पेट पर लगा। तड़पती हुई हिरणी गिर पड़ी एवं मृत्यु को पाई उसी के साथ हिरणी का बच्चा जिसने अब तक दुनिया नहीं देखी वह भी अपने मां के साथ मृत्यु को पाया। श्रेणिक राजा हिरणी के पास आए। दो-दो की मृत्यु देखकर खुश हुए मन ही मन कहने लगे, मेरा जैसा शुरवीर कोई नहीं है एक तीर दो शिान। पाप करने के बाद पाप की प्रशंसा की। वहीं आयुष्य का बंध हुआ। नरक का आयुष्य बांधा। एक दिन प्रभु वीर के मुख से यह बात सुनकर श्रेणिक राजा ने नरक टालने का उपाय प्रभु से पूछा।
प्रवचनकी धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है प्रभुवीर ने कहा तुमने निकाचित कर्म बांधा है उसे भोगना ही पड़ेगा। फिर भी प्रभुवीर ने तीन रस्ते दिखाए पुणिया श्रावक की सामयिक खरीदकर ला, कपिला दासी यदि मुनिभगवंत को सुपात्रदान दे तो। कालसौरिक कसाई एक दिन के लिए 500 पाड़ाओं की हत्या करता है यदि वह इसे बंध करे तो नरक टल सकती है राजा ने तीनों उपाय किए। सफलता नहीं मिली। कर्म के आगे किसी का नहीं चलता है चाहे वह भिखारी हो या वह मगध देश के सम्राट महाराजा श्रेणिक हो। भविष्य में जो पझनाभ नाम के प्रथम तीर्थंकर बनेंगे हाल में वे नरक की भयंकर नाम के सहन कर रहे है। सिर्फ एक भूल के कारण उन्होंने शिकार करने के बाद पाप की प्रशंसा की थी।
आप भी दिन भर अनेक प्रकार की पाप प्रवृत्तियों करते हो। जितना हो सके उतना पाप से बचने की कोशिश जरूर करना। पाप की प्रशंसा तो भूलकर भी मत करना। हमारी एक भी प्रवृत्ति ऐसी नहीं होनी जिससे हमें दुर्गति में जाना पड़े। कितनी बार ऐसा भी बनता है हम पाप नहीं करते है लेकिन दूसरों के पाप की प्रशंसा करके हम कर्म का बोझा अपने सिर पर लेते है। उसकी प्रशंसा करके पाप का बंध करते है पड़ोसी का बंगला खूब मस्त है क्या फर्नीचर है क्या शोकेस है? पाप हमने नहीं किया बल्कि प्रशंसा करके कर्म बंध किया। ध्यान देना है पाप नहीं करते है तो पाप की प्रवृत्ति की प्रशंसा कभी नहीं करनी चाहिए। पापमय वृत्ति से बचकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।
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