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अहमदाबाद। परम मंगलकारी अरिहंतो ंका ध्यान करते हुए अरिहंत में रहे हुए अरिहंतो के गुणों को ग्रहण करना है। सबसे महत्व का गुण परोपकार है मानलो, किसी व्यक्ति को उठने में तकलीफ है उसको उठाने में सहाय करो, किसी को सामायिक लेनी नहीं आती है तो उसे सामायिक कराने में मदद करो, कोई व्यक्ति नया पाठ मुख पाठ करके सुनाना चाहता है तो उसे सुनो। इस तरह से भी उपकार किया जाता है। अंग्रेजी में कहावत है 'प्रैक्टिस मैक्स द मैन परफेक्टÓ अभ्यास व्यक्ति को पूर्णता बनाता है। आप इस तीर्थ भूमि में आराधना करके पुण्य का वध करने आए हो। एकासणा बियासणा करने बैठे हो जितना चाहिए उतना ही आहार थाली में लेना चाहिए। झूठा छोडऩा वह भी एक महापाप है।
कहते है जब चैन्नई में प्रतिष्ठा का कार्यक्रम चल रहा था तब स्वयं सेवकों ने पूरी तैयारी के साथ खड़े थे जो भी झूठा छोड़ते थे स्वयं सेवक खूद खाने तैयारी रखते थे।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है कि हमारा जीवन किसी की सहायता करने के लिए ही होना चाहिए। ईश्वरचंद विद्यासागर बंगाल के प्रसिद्ध लेखक थे एक बार एक व्यक्ति उनसे मिलने मुंबई से कलकत्ता गए। कलकत्ता स्टेशन पर खड़े कूली वाले भाई को खोज रहे थे। उन्हें कोई दिखाई नहीं दिया। जोर जोर से बोलने लगे कैसा शहेर है यहां एक भी कूली वाला नहीं मिलता है। तभी वहा से पसार हो रहे लेखक ने यह बात सुनी भाई साहेब! आपको कहां जाना है? ईश्वरचंद विद्यासागर के यहां। उनका घर तुम्हें पता है? जी साहेब पता है उस मुसाफिर ने लेखक को वह सूटकेश पकड़ा दिया सीधे ईश्वर चंद के घर पहुंचे। सेवक सामने आया। ईश्वरचंद्र कहां है? आपके पास खड़े है वे ही ईश्वरचंद है। वह मुसाफिर देखते ही रह गए। अरे जिस व्यक्ति को कूली वाला समझकर सामने पकड़ाया वे ही ईश्वरचंद है? उस मुसाफिर की हालत ऐसी कि कांटो तो भी खून न निकले। अरे इतना बड़ा व्यक्ति होते हुए भी छोटा बनकर परोपकार का काम किया। इनसे सिखने जैसा है। जग भी अभियान नहीं है। लघुता में प्रभुता है।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमातेहै आप बड़ी पोस्ट पर हो तो अभिमान करने जैसा नहीं है आप अरबोपति हो तो क्या? परमात्मा के समक्ष तुम कुछ भी नहीं हो। अभिमान करोंगे एक न एक दिन जरूर गिरोंगे। जंबूकुमारअपनी बात को आगे बढ़ाते हुए प्रभव से कहता है रानी एवं महावत भागते भागते किसी मंदिर में घुसे। इधर चोर भी लोगों से बचने के लिए मंदिर में घुसा था।  अंधेरा था। चोर ने हाथ लगाकर देखा बाजू में कौन है। उसका हाथ रानी को लगा। रानी को चोर का स्पर्श अच्छा लगा। रानी के मन में आया आज तक महावत के साथ जितना आनंद नहीं आया वह आनंद इस चोर के स्पर्श से हुआ।
शास्त्रकार महर्षि फरमाते है कामवासना इतनी भयंकर है एक दिन में स्पर्श के आनंद से जिंदगी भर जिसने स्पर्श  किया उस व्यक्ति से सुख कम लगता है। रानी ने चोर को कहा, तुम्हारे लिए मैं इस महावत को छोडऩे के लिए तैयार हूं। सुबह हुई लोग चोर को पकडऩे आए रानी ने महावत की ओर ईशारा करके पकड़वा दिया। संसार की लीला देखो। संसार देखने जैसा है लेकिन इसमें फंसने जैसा नहीं है।
राजा ने महावत को शूली पर चढ़ाया है। महावत विचारा रानी की चुगल में आकर फंस गया है। महावत को जोरों की प्यास लगी है। शूली पर चढ़े हुए महावत पानी-पानी करता है तभी वहां से जिनदास श्रावक पसार होते है उन्होंने चोर को आश्वासन देकर कहां जब तक मैं पानी लेकर व आऊं, तब तक इस नमस्कार महामंत्र का स्मरण करना। कहते है जो इस नवकार का स्मरण करता है उसका बेड़ा पार हो जाता है किसी भी मांगलिक प्रसंग में अथवा विध्न के समय में जो भी इस नमस्कार महामंत्र का स्मरण करता है उसका मंगल होता है। जिनदास श्रावक के कहे मुताबिक महावत ने नवकार यंत्र गिना, पानी आया तब तक तो प्राण पखेरू उड़ गए। मरकर व्यंतर देव बनें। नवकार का प्रभाव जानने के बाद हमें भी इस पर श्रद्धा करके शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनना है।