अहमदाबाद। हरेक व्यक्ति को विचार शक्ति मिली है। आपकी प्रवृत्ति जिस प्रकार की हो उस प्रकार के रंग में वह मानवी रंग जाता है। आपके आसपास में जिस प्रकार का वातावरण हो उस प्रकार के ध्यान में मानवी लग जाता है। आपके आज बाजु सांसारिक प्रवृत्तियों का वातावरण सर्जा हो तो मानवी में संसार का रंग लग जाता है ठीक इसी तरह हमारी आत्मा में मन से तथा व्यवहार से धार्मिक प्रवृत्तिओं का वातावरण सर्जा हो तो आत्मा अध्यात्ममय बनती है। जिस व्यक्ति में अध्यात्म की अनुप्रेज्ञा तता अध्यात्म के बिंदु रमण करते है उनमें ध्यान का प्रगटीकरण होता है। वह ध्यान भी कैसा है? तो पूज्यश्री फरमाते है वह ध्यान शुद्ध एकाग्रता पूर्वक वाला ध्यान है। इस प्रकार की एकाग्रता में जिस रमण करना है उन्हें सुंदर भावनाओं से लग जाना है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है संसार के स्वरूप को जिन्होंने ठीक तरह से समझ लिया उन्हीं में अध्यात्म पैदा होता है। पूज्य लब्धि सूरि महाराजा अपनी काव्य कृति में संसार के स्वरूप का एक दृष्टांत बताते हुए फरमाते है,
खील्या जे फुलडा आजे, जरूर ते काले करमाशे एक युवान बगीचे में गया है वहां रंग बिरंगी फूलों से मीठी सुवास आ रही है। उस सुवास से वह खूब खुश है लेकिन ये क्या शाम हुई और जिस डाली पर फूल खीला-खीला सा था वहीं फूल मूरझाकर नीचे गिर पड़ा इसी तरह आज जोरदार की बारिश हुई और आकाश में जैसे चित्रकार ने अपनी कला से रंग बिरंगी मेघ धनुष बनाया हो वैसे सुन्दर दृश्य को देखकर बालक नाच उठता है और अपने साथीओं को इकट्ठा करके मेघ धनुष दिखाता है मगर ये क्या? जो रंग अब तक दिख रहे थे वे विलय हो गए।
पूज्यश्री फरमाते है रूप-रस-गंध एवं स्पर्श से मानव का मन खींच चला जाता है और मानव उनमें सुख का अनुभव करता है मगर ये सुख तो क्षणिक है। कहते है जिस मानवी को सुख वह क्षणिक है इस चीज का बोध हो जाता है उसमें अध्यात्म प्रगट होता है। इस अध्यात्म दशा में आने वालों का मन कभी --- की तरह फूलता नहीं न ही उनका मन कांच के बर्तन की तरह कभी टूटता है अध्यात्म में मस्त रहने वाली आत्मा को संपत्ति आए तो कभी खुश होकर फूलते नहीं, न ही कभी विपत्ति आए तो दु:खी होते है।
आपने कई बार देखा होगा, सूर्योदय के समय उषा खीली सी बहती है और आकाश में चारों ओर लाल रंग छा जाता है और कुछ ही समय में वह विलोप हो जाता है इसी तरह जब संध्या खीलती है तब भी आकाश में चारों और लाल-लाल दिखता है मगर ये सभी क्षणिक है आ का खीलना एवं संध्या का खीलना क्षणिक के लिए ही आनंददायक है बस इसी तरह महापुरूष संपत्ति मिले या उनके जीवन में कभी आपत्ति आए कभी वर्ष या शोक नहीं करते है।
शास्त्रकार महर्षि फरमाते है जो व्यक्ति जन्म लेता है वह व्यक्ति मृत्यु को अवश्य पाएगा ही इसमें कोई फेरफार नहीं होने वाला है। महापुरूषों, यदि कोई जन्म लेता है तो उसी खुशी से बेसुध नहीं हो जाते और यदि मृत्यु भी आ जाए तो उसका प्रतिकार नहीं करते है। कुमारपाल राजा जैन धर्म को पाने के बाद अपने मनोभाव को व्यक्ति करते हुए बताया जीवन जब तक जीऊंगा तब तक परमात्मा शासन की आराधना करता रहूंगा ओर तो ओर, मरते दम तक भी आराधना करते हुए ही मरूंगा। महापुरूषों को जीने की स्पृहा नहीं रहती और मृत्यु से भी डर नहीं रहता है।
पूज्यश्री फरमाते है कोई हमारी बात माने या ना माने ये हमारे पुष्य का खेल है इसी तरह संपत्ति आए या हाथ से चली जाय वह भी हमारे पुष्य का ही खेल है। बारह भावना में संसार भावना में संसार के स्वरूप को समझकर जन्म हो या मरण, आपत्ति हो या संपत्ति की प्राप्ति हरेक में प्रसन्न बहना है। बैंक के केशियर के पास लोगों के पैसे जमा भी होते है और खाली भी होते है उसे पता है ये पैसे मेरे नहीं है तो हर्ष या शोक कभी नहीं करते है। बस इसी तरह हरेक मानवी को संसार का स्वरूप जानकर हरेक परिस्थिति में समभाव पूर्वक एवं प्रसन्न रहना है। प्रसन्न रहना वह अध्यात्म है। आपकी प्रसन्नता लाखों-करोड़ों-अरबो की संपत्ति तुल्य है फालतु उसे गंवाना नहीं है प्रसन्न रहकर अध्यात्म जीवन जीकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।
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