
अहमदाबाद। आज फागुन सुद तेरस है। आज के दिन सैंकड़ों लोग पालीताणा जाते हैं तथा शत्रुंजय पर्वत की परिक्रमा करते हैं। आज के दिन ही भाड़वा पर्वत पर साढ़े आठ करोड़ मुनियों मुक्ति को पाए। किसी चीज की प्राप्ति करनी हो तो उसके लिए तीव्र इच्छा होती है। कभी मोक्ष की प्राप्ति करने के लिए इच्छा हुई?
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, शक्तिनाथ मंदिर प्रतिष्ठाचार्य प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयश सूरीश्वरजी म.सा. श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है एक भाई हमारे पास आए। महाराज साहेब रक्षा पोटली दो ना?हमने उसको रक्षा पोटली दी। तभी दूसरे भाई आए साहेब मुझे भी दो ना हमने कहा, भाई! खतम हो गई। बस, बोलने लगे उसे दी, जब मैंने मांगा, तो कहते खतम हो गई। मन में तुरंत दुख हुआ मुझे नहीं मली पडोसी के पास चार गाड़ी है मेरे पास नहीं है। वाल्केश्वर में बड़े भाई की दो दो बिल्डिंगे है मेरी एक भी नहीं है ये सोचते सोचते तुरंत दुखी होते है। कभी ये भी विचार आया कि उसका मोक्ष हो गया है मेरा क्यों नहीं होता? आठ-आठ करोड़ मुनियों का मोक्ष हुआ मेरा कब नम्बर लगेगा? इस बात के लिए कभी दुख हुआ? जैन धर्म को पाकर एक जैन की तरह जीवन जीया करो। आत्मा के अंदर अनंत शक्ति है उस शक्ति को विकसित करो।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है इतने इतने मुनिओं मोक्ष में गए है तो मन में दुख होगा चाहिए के मैं कैसा दुर्भागी हूं। मुझे रात्रि भोजन करना पड़ रहा है। जैन आत्यारों को चुस्तता से पालन करना चाहिए। देश के किसी भी कोणे में क्यों न को ही जैन आचार को कभी वहीं छोडऩा चाहिए। जैन आचारों का पालन चुस्तता से करता हो उस व्यक्ति को शर्म किस बात की? चाहे तुम अमेरीका में हो या हिन्दुस्थान में। आचारों का पालन करने में शर्म नहीं रखनी चाहिए। पांच व्यक्ति किसी स्थल पर घूमने गए हो चार व्यक्ति रात्रि भोजन करते है उसमें एक नहीं करता तो मन में तुरंत लज्जा आती है चार-चार व्यक्ति खा रहे है मैं एक नहीं खाऊंगा तो अच्छा नहीं आराधक बनाकर आराधना में आगे बढऩा है।
ऐसे शुभ दिनों में किया हुआ संकल्प अवश्य रूलीभूत होता है। धूलीया चातुर्मास था तब चयन्तसूरि म.सा. के साथ हम पट के दर्शन करने गए। जो लोग प्रतिकृति करके पट के आगे आराधना करते है हमने भी संकल्प किया जब तक दादा के दर्शन नहीं होंगे तब तक पेड की सौगंधनी। सौगंध तो ले ली। तीन चार चातुर्मास हो भी हुए फिर परमात्मा की कृपा कहो ऐसा अवसर शीघ्र नजदीक आया। विक्रससूरि मं.सा. की निश्रा में कलकत्ता से पालीताणा का दो सौ अग्यारह दिन का छरी पालितसंघ निकला। विक्रमसूरि म.सा. का जबरदस्त साहस करो, हिम्मत बटोरकर आखिर में इतनी लम्बी यात्रा पूर्ण करवाई हमारी संकल्प भी पूर्ण हुआ। आपमें धन खर्च ने की शक् ित है यदि आपसे धर्म का कार्य नहीं होता है तो परमात्मा के चरणों में अपना कार्य सौंप दो। कार्य अवश्य परिपूर्ण होगा। शुभ संकल्प करके अपने जीवन में धर्म के कार्य करके शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।