अहमदाबाद। मंगलमय प्रभात के सुन्दर वातावरण में आत्मा को सुन्दर विचारों से तरबतर करना है। ध्यान को सहज तरीके से सिद्ध करना है। कितने का स्वभाव गुस्से वाला होता है तो कितने कहते है। का स्वभाव किसी न किसी की निंदा करने का भी होता है। हमें हमारे स्वभाव को इस तरह से बनाना है कि सहज तरीके से अध्यात्म ध्यान की सिद्धि हो जाए इसीलिए कितने साधना योगी तो कितने हठ योगी भी है। जो सहज योगी है वे स्वभाविक सिद्धि को प्राप्त करते है। ध्यान वह जीवन की एक बहुत ही बड़ी उपलब्धि है। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है दो घडी का ध्यान भी एकाग्रता पूर्वक हो तो सर्व कर्म का क्षय करने की उसमें ताकात है। सर्व कर्म का क्षय हो जाए तो सिद्धि सहज तरीके से उत्पन्न हो जाती है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है ध्यान वह बहुत बड़ी समझने की चीज है। ध्यान को उत्पन्न करने के लिए वातावरण अच्छा होना चाहिए। आप कभी अेरोडाम पर गए होंगे। प्लेन को देखा होगा, प्लेन को देखकर आप यही समझे होंगे कि प्लेन तो हवा में उड़ता है। जब आप प्लेन में बैठे तभी आपको मालूम पड़ा प्लेन पहले दौडऩे की गति करता है फिर वह धीरे धीरे गति करते हुए आकाश में उड़ता है।
शास्त्रकार महर्षि फरमाते है ध्यान वह रन-की तरह है। जिस तर स्वयं सिद्ध विमान ऊंचा उड़ता है उसी प्रकार ध्यान करने से भावना ऊंची होती है। ध्यान के लिए तीन चीज जरूरी है मध्यस्थ रहना, कु:शीलों का त्याग करना, प्रमाद का त्याग करना। दुनिया का हरेक व्यक्ति अपनी बात को सच्ची करने में तत्पर होते है। अज्ञानता के कारण मानव ज्यादा कुछ समझा नहीं परंतु आग्रह पूर्वक कहता है मैं सब कुछ समझ गया। यही आग्रह जीवन में विषमता का सर्जन करता है।
पूज्यश्री फरमाते है आपको कोई भी बात कितनी भी अच्छी तरह से समझ में भले आ गई, परंतु जब तक केवल ज्ञान नहीं हुआ तब तक पूर्णता का दावा करना नहीं। केवलज्ञान पाने के बाद भी दावा नहीं करना क्योंकि आपका अभियान-अहंकार तो नाश हो ही गया है। इसीलिए मैं सब कुछ अच्छी तरह से समझता हूं और मेरी समझी हुई बात सच्ची है ऐसा आग्रह कभी नहीं रखना चाहिए। ये तत्वज्ञान जैन धर्म समझाता है। जैन धर्म का अनेकांतवाद कहता है, मुझे यह चीज समझ में आ गई परंतु इस प्रकार भी हो सकता है ऐसा बोलना चाहिए। कितने लोग खूब आग्रही होते है कि ऐसा ही है, यह भी इस प्रकार ही हो सकता है। ऐसा ही एवं इस प्रकार ही, दो बात है। ऐसा ही शक्यताओं को बताता है इस प्रकार ही वह आग्रह है।
पूज्यश्री फरमाते है जीवन में आग्रह कम करके माध्यस्थ बनना है। एक व्यक्ति एक व्यकित की बात सुनता है और अपना अभिप्राय देकर आग्रह बांध लेता है। न्यायतंत्र हमें सिखाता है। यदि किसी ने किसी को गुन्हा करते देखा है तो उस गुन्हेगार को भी अपनी बात कहने का तथा अपना बचाव करने का मौका देना चाहिए। उस गुन्हेगार की भी बात सुननी चाहिए। बिना देखे, बिना समझे, गहराई में उतेर बिगैर यह बात गलत है ऐसा कहना नहीं। तुं जो कहता है वह मेरी समझ में नहीं आया परंतु तेरी बात गलत है ऐसा भी वह कहने की जल्दबादी नहीं करता है। न्यायमंत्र जजमेंट देते वक्त दोनों पक्षों की बात सुनता है। न्यायालय में दो पक्ष होता है वैसेही विश्व तंत्र में अनेक पक्षों है, अनेक धर्मो है एवं अनेक मान्यताएं है हमें इन सभी में मध्यस्थ बनकर रहना चाहिए।
जिनका चारित्र अच्छा नहीं है, जिनका मोरल ठीक नहीं है ऐसे लोगों के संसर्ग से दूर रहना चाहिए। कृतध्नता भी एक महादोष है। वैसे ही चोरी दुराचार भी कु:शील है इस प्रकार के लोगों के संसर्ग में जो भी आता है उसका पतन अवश्य होता है। कुछ लोगों का कहना है ऐसे लोगों के संसर्ग से कुछ नहीं होगा। मगर से शक्य नहीं है पूज्यश्री फरमाते है कु:शीलता दुराचारिता-झूणें के तथा विश्वासघातियों के संसर्ग से अपनी प्रेस्टीज नीचे स्तर तक पहुंच जाती है जिससे उन लोगों में अध्यात्मता नहीं आती है।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमातेहै आलस्य हि मनुष्याणां शरीरस्थो महारिपु:। आलस मनुष्यों के शरीर में रहा हुआ महादुश्मन है। हमेशा स्फूर्ति में रहना आलस कभी करना नहीं। मानलो, आपकी आंख सुबह जल्दी खुल गई आप आलस करके बिस्तर में पड़े रहे हो उस समय आलस का त्याग करके नींद नहीं आती हो तो नवकार मंत्र का जाप कर लेना। आपके नवकार गिनने की स्पीड हो तो एक माला ही गिन लेना चाहिए। अब तक आप बिना प्रयोजन समय बिगाड़ते रहे, अब उस समय को आपको धर्म आराधना में निवेश करना है। गुजराती में कहावत है टीपे टीपे सरोवर भराय एक एक बूंद से सरोवर बनता है।
एक भाई हमारे पास आए। साहेब दो प्रतिक्रमण मुख पाठ करना है लेकिन समय नहीं मिलता है हमने उनसे पूछा, आपकी ऑफिस कितनी दूर है साहेब! गाड़ी में आधा घंटा लगता है। आधा घंटा गाडी में बैठकर क्या करते हो? साहेब कुछ नहीं। हमने कहा, एक काम करो किसी से सूत्र लेकर उस सूत्र को गाडी में बैठकर मुखपाठ किया करो आपका काम हो जाएगा। भाई साहेब नेदो प्रतिक्रमण के सूत्र रेकोर्ड करवाकर गाड़ी में बैठे-बैठे मुखपाठ किया। पाठ हो गया अंग्रेजों में कहावत है,
'मैनेजमेंट ऑफ टाइम इन वैरी इम्पॉर्टेंट थिंग्स इन योर लाइफÓ जीवन में समय का अच्छी तरह से सदुपयोग कर लो आपका काम बन जाएगा। ये भी एक प्रकार के ध्यान की ही एक कला है बस, ध्यान की इस कला को प्राप्त करके सहज योगी बनो अच्छे विचार करो और अच्छे लोगों का संग करके शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनों।
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