ललित गर्ग
ईक्कीसवीं सदी ने मनुष्य जाति को बहुत कुछ दिया हैद्ब्रअच्छा भी, बुरा भी। इनमें से उसकी एक देन हैद्ब्रकोविड-19, मानव इतिहास से इस सबसे बड़ी एवं भयावह महामारी ने मनुष्य जीवन को संकट में डाल दिया है, न केवल मनुष्य जीवन बल्कि आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक सभी क्षेत्र इससे प्रभावित हुए हैं। विशेषत: मनुष्य का तन-मन-धन चैपट हुआ, बड़ा संकट से घिरा है। कोरोना वायरस से उपजी कोविड-19 महामारी को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण बनी है। क्योंकि डब्ल्यूएचओ विश्व के देशों के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर आपसी सहयोग एवं मानक विकसित करने वाली संस्था है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के 193 सदस्य देश तथा दो संबद्ध सदस्य हैं। यह संयुक्त राष्ट्र संघ की एक अनुषांगिक इकाई है। इस संस्था की स्थापना 7 अप्रैल 1948 को की गयी थी। इसीलिए प्रत्येक साल 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में मनाया जाता हैं। इस वर्ष कोरोना महामारी से जुझते एवं उसके बढ़ते प्रकोप पर नियंत्रण पाने की दृष्टि से इस दिवस की विशेष उपयोगिता एवं प्रासंगिकता है।
कोरोना महामारी की त्रासदी एवं संकट से जूझ रहे विश्व-मानव का स्वास्थ्य की ओर ध्यान आकृष्ट करने के लिये विश्व स्वास्थ्य दिवस का विशेष महत्व है। डबल्यूएचओ के द्वारा जेनेवा में वर्ष 1948 में पहली बार विश्व स्वास्थ्य सभा रखी गयी जहाँ 7 अप्रैल को वार्षिक तौर पर यह दिवस मनाने के लिये फैसला किया गया था। वर्ष 1950 में पूरे विश्व में इसे पहली बार मनाया गया था। कोरोना महामारी से मुक्ति की दिशा में सार्थक पहल एवं इस महामारी की गंभीरता एवं घातकता के प्रति जागरूकता का स्तर बढ़ाना सर्वाधिक महत्वपूर्ण पहलू हैं। वैश्विक आधार पर स्वास्थ्य से जुड़े सभी मुद्दे को विश्व स्वास्थ्य दिवस लक्ष्य बनाता है जिसके लिये विभिन्न देशों की सरकारों के साथ मिलकर व्यापक प्रभावी उपक्रम किये जाते हैं, विभिन्न जगहों जैसे स्कूलों, कॉलेजों, सार्वजनिक संस्थानों और दूसरे भीड़ वाले जगहों पर दूसरे संबंधित स्वास्थ्य संगठनों के साथ मिलकर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। विश्व में मुख्य स्वास्थ्य मुद्दों की ओर लोगों का ध्यान दिलाने के साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना को स्मरण करने के लिये इस दिवस को मनाया जाता है। वैश्विक आधार पर स्वास्थ्य मुद्दों को बताने के लिये यूएन के तहत काम करने वाली डबल्यूएचओ एक बड़ी स्वास्थ्य संगठन है। विभिन्न विकसित देशों से अपने स्थापना के समय से इसने कुष्ठरोग, टीबी, पोलियो, चेचक और छोटी माता आदि सहित कई गंभीर स्वास्थ्य मुद्दे को उठाया है। एक स्वस्थ विश्व बनाने के लक्ष्य के लिये इसने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1970 में परिवार नियोजन, बच्चों की रोगरोधी क्षमता बढ़ाने के लिए, 1974 में टीकाकरण कार्यक्रम, 1987 में प्रसूता मृत्यु दर को कम करने के लिए, 1988 में पोलिया उन्मूलन और 1990 में जीवनशैली से होने वाली बीमारी को रोकने के लिए अभियान चलाये गये हैं। 1992 में डब्ल्यूएचओ ने पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए पहल की। 1993 में एचआईवी-एड्स को लेकर संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर कार्यक्रम शुरू किया। उस प्रोग्राम ने एड्स पर डब्ल्यूएचओ के चल रहे वैश्विक प्रोग्राम की जगह ले ली। वर्ष 1960 में नीग्रो जाति में होने वाले संक्रामक रोग यॉज, स्थानीय महामारी सिफलिस, कुष्ठ और आंख से संबंधित रोग ट्रेकोमा को जड़ से खत्म करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाया। इसने एशिया में कॉलरा जैसी महामारी को नियंत्रित करने में मदद की। इसने अफ्रीका में पीत ज्वर जैसी स्थानीय महामारी को नियंत्रित करने में भी अहम भूमिका निभाई। इसका मुख्य उद्देश्य दुनिया भर के लोगों के स्वास्थ्य के स्तर को ऊंचा उठाना है। हर इंसान का स्वास्थ्य अच्छा हो और बीमार होने पर हर व्यक्ति को अच्छे प्रकार के इलाज की अच्छी सुविधा मिल सके। दुनिया भर में पोलियो, रक्ताल्पता, नेत्रहीनता, कुष्ठ, टी.बी., मलेरिया और एड्स जैसी भयानक बीमारियों की रोकथाम हो सके और मरीजों को समुचित इलाज की सुविधा मिल सके, और इन समाज को बीमारियों के प्रति जागरूक बनाया जाए और उनको स्वस्थ वातावरण बना कर स्वस्थ रहना सिखाया जाए। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्ण स्वस्थ होना ही मानव-स्वास्थ्य की परिभाषा है।
इन उल्लेखनीय स्वास्थ्य जिम्मेदारियों का निर्वाह करने के बावजूद कोरोना वायरस से उपजी कोविड-19 महामारी को लेकर डब्ल्यूएचओ की भूमिका भी संदेह के दायरे में आ गई है। तत्कालिन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने तो उसकी खुली आलोचना कर डाली है। सवाल उठते रहे हैं कि क्या कोरोना महामारी के संदर्भ में डब्ल्यूएचओ ने गंभीरता दिखाते हुए पर्याप्त कदम उठाए? क्या उसने चीन से सही सवाल पूछे ताकि इस बीमारी के संभावित खतरे को लेकर कुछ भनक लगती? क्या इस बीमारी को लेकर विश्व को समय से सलाह न दे पाने में नाकाम रहने के लिए उसे जिम्मेदार माना जाना चाहिए?
कोरोना महामारी को लेकर इसका मकसद मानवीय स्वास्थ्य के सभी पहलुओं को सुधारने और महामारी की रोकथाम में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना था। इसे एक निष्पक्ष तकनीकी संगठन के रूप में काम करना चाहिए, लेकिन कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों की तरह यह भी अमीर और ताकतवर देशों के दबावों से प्रभावित दिखाई दिया है, इसकी निष्पक्षता एवं पारदर्शिता संदेह के घेरे में आ गयी। किसी भी किस्म की स्वास्थ्य आपदा में डब्ल्यूएचओ से यह अपेक्षा होती है कि वह बिना किसी पक्षपात समय रहते कारगर कदम उठाए। इसमें महानिदेशक की भूमिका बेहद अहम होती है। उसे इससे फर्क नहीं पडऩा चाहिए कि उसकी निजी पसंद क्या है या उसके मूल देश का इस पर क्या रुख है? मौजूदा महानिदेशक टेड्रोस गेब्रेयसस की भूमिका विवादास्पद बनी क्योंकि जब 7 जनवरी को चीन ने कोरोना वायरस के फैलने की सूचना दी। इससे एक हफ्ते पहले चीन ने डब्ल्यूएचओ को बताया था कि वुहान शहर में हो रही मौतों की वजह उसे पता नहीं लग पा रही।
गेब्रेयसस तब भी सावधान नहीं हुए। क्या वह चीन के प्रभाव में थे जिसने उनके चुने जाने का जबरदस्त समर्थन किया था? टेड्रोस का रुख भी किसी अंतरराष्ट्रीय संस्था के मुखिया जैसा नहीं था। उनका रवैया तब और संदिग्ध हो गया जब उन्होंने डब्ल्यूएचओ-चीन की संयुक्त टीम पर सहमति जताई, जबकि डब्ल्यूएचओ की टीम को स्वतंत्र रूप से काम करना चाहिए था। आखिरकार 30 जनवरी को डब्ल्यूएचओ ने कोविड-19 को अंतरराष्ट्रीय चिंता वाली स्वास्थ्य आपदा करार दिया। यह एलान पहले ही हो जाना चाहिए था। लापरवाही का सिलसिला यहीं खत्म नहीं हुआ। 4 से 8 फरवरी के बीच डब्ल्यूएचओ के कार्यकारी बोर्ड की बैठक हुई।
वहां 52 सूत्रीय एजेंडे में कोविड-19 को शामिल तक नहीं किया गया। कोविड-19 का प्रकोप बढ़ाता रहा, फिर भी डब्ल्यूएचओ उसे वैश्विक महामारी घोषित करने से कतराता रहा। उसने 11 मार्च को यह एलान किया। कुल मिलाकर इस मामले में डब्ल्यूएचओ का रुख उसके उद्देश्यों के उलट रहा। डब्ल्यूएचओ को प्रहरी की भूमिका निभानी थी वह उसमें नाकाम रहा। इन स्थितियों में उसके द्वारा विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाने के उद्देश्यों पर भी धुंधलाना छाया है, जरूरत है इस दिवस को मनाते हुए डब्ल्यूएचओ की प्रतिष्ठा एवं पारदर्शिता को सिापित करने के निष्पक्ष उपक्रम करने की, तभी इस दिवस को मनाने की सार्थकता होगी। किसी एक दिन नहीं, बल्कि हर रोज, हर घड़ी हमें स्वास्थ्य को पैदा करना पड़ता है, ऐसी जागृति एवं क्रांति ही कोरोना महामारी से हमें निजात दिला सकती है। आइए अब हम स्वास्थ्य-निर्माण के सिर्फ सपने न देखें, उन्हें सच करने का संकल्प करें। प्रस्थान का यही क्षण हमारी विश्व स्वस्थता की सफलता का विश्वास होगा।