अहमदाबाद। पूज्यश्री फरमाते हंै बचपन में पढ़ी हुई एक कहानी याद आती है। नगर में भयंकर आग लगी है। इन आग की लपेटों से बचने के लिए लोग इधर से उधर भाग रहे हंै। एक आदमी लंगड़ा है बेचारा सोच रहा है इस आग की लपेटों से कैसे बचूं। आग नजदीक आ रही है, कैसे दौडूं। मैं तो दौड़ नहीं सकता हूं। इस विचार में इधर-उधर जा रहा है, तभी उसकी नजर सामने चलते हुए आई पर पड़ी, जिनकी दोनों आंखें नहीं हैं। आग की लपेटें नजदीक आ रही हैं, मगर कुछ दिखता नहीं इसलिए खड़ा है। अरे! सूरदासजी आप क्या कर रहे हो? क्या करूं भाई। मेरी आंखें नहीं है इसलिए दौड़ नहीं सकता हूं? भाई! मैं देख सकता हूं मगर दौड़ नहीं सकता। ठीक है सूरदासजी बोले, मैं तुम्हें कंधे पर ले लेता हूं तुम रास्ता दिखा देना। दोनों एक-दूसरे की मदद से भयंकर आग की लपेटों से बाहर निकले।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते हंै गांव के लोगों ने देखा ये अंधा एवं लंगड़ा कैसे बच गए। एक दूसरे के सहारे हम बच सकते हैं। कितने लोगों में ज्ञान है परंतु क्रिया नहीं है। आंख है तो लंगड़ा है। शास्त्रकार महर्षि फरमाते हंै ज्ञान-क्रियाभ्यां मोक्ष: ज्ञान के साथ क्रिया का होना जरूरी है तभी मोक्ष की प्राप्ति होगी।
एक पंडित यजमान के यहां मेहमान बनकर गए। यजमान ने कहा, पंडित जी स्नान कर लो। जी मैं तो ज्ञान गंगा में स्नान कर चूंका हूं। ठीक है। यजमान ने सोचा ये पंडित खूब समझकार है इसे पाठ पढ़ाना ही पड़ेगा। ज्ञान है मगर इसकी क्रिया में गड़बड़ है। यजमान ने उस पंडित को पेट भरकर गरम गरम भोजन करवाया। पंडित भोजन करके आराम करने चले गए। यजमान ने बाहर से दरवाजा बंद कर दिया। कुछ देर के बाद पंडित को शंका हुई। पानी के बिगैर कैसे जाना। दरवाजा खटखटाया। जल्दी खोला अर्जेंट है। यजमान ने कहा, आपको पानी की क्या जरूरत है? आपके पास तो ज्ञान गंगा है। माफ करो भूल हो गए। पंडित ने मन में सोचा ये तो मेरा गुरू निकला। सिर्फ ज्ञान से नहीं चलेगा। ज्ञान के साथ क्रिया भी जरूरी है। खाना बनाने का ज्ञान है खाना बनाओंगे तभी खाने को मिलेगा। क्रिया बिना का ज्ञान मोक्ष में नहीं ले जा सकता है। इसी तरह ज्ञान बिना की क्रिया भी मोक्ष नहीं दिला सकता है।
बनारश की गंगा नहीं में कुछ लोग नाव में बैठकर बल्ला चला रहे है। अभी तक नाव में बैठकर बल्ला चला रहे है। अभी तक नशा उतरा नहीं है। हाथ थक गए थे। आंख खोलकर देखा तो अभी भी वहीं थे जहां से शुरूआत की थी। लंगर छोडऩा भूल गए थे। लंगर छोड़े बिगैर आप कितना भी बल्ला मारकर नदी के उस किनारे पहुंचना चाहोंगे पहुंच नहीं पाओंगे ज्ञान के साथ क्रिया भी होगी तभी आप अपनी निश्चित स्थान पर पहुंच पाओंगे। संसार सागर को छोडऩा है तो पत्नी का राग, पुत्र का मोह, धन-संपत्ति का मोह छोडऩा पड़ेगा। तभी आप मोक्ष को प्राप्तकर सकोंगे। सम्यग् ज्ञान के साथ सम्यग् दर्शन तथा सम्यग् चारित्र रूप क्रिया होगी तभी मोक्ष मिलेगा। सामायिक करनी है पूजा करना है ज्ञान चाहिए। खाते है तो खाने का ज्ञान जरूरी है। ज्ञान से जागृति एवं विवेक आता है। विवेक होगा तो कोई भी प्रवृत्ति अच्छी चलेगी। मोक्ष सबसे बड़ी कार्य की सिद्धि है। ज्ञान एवं क्रिया इन दोनों का जहां समागम होगा वहां कार्य की सिद्धि अवश्य मिलेगी है। सम्यग् ज्ञान-क्रिया जहां नहीं है वे व्यक्ति हमेशा निराश हताश होते है। हमें निराश हुई बिगैर ही अच्छी तरह से प्रयत्न करके सफलता मिलाकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनना है।
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