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मुकुल श्रीवास्तव
पिछली सदी के आखिरी दशक में कंप्यूटर शिक्षा को स्कूल की शिक्षा का अंग बनाया गया। परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में इस सदी के आरंभिक दौर में ही भारतीय परचम लहराने लगा। इससे मध्यवर्गीय सफलता की कई कहानियां बनीं। पर सफलता की ये कहानियां लंबे समय तक जारी नहीं रह सकीं। इन दिनों भारत की एप इकोनॉमी बहुत तेजी से बढ़ रही है, जबकि चीन राजस्व और उपभोग के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा बाजार बना हुआ है। वहीं अमेरिकी कंपनियां एप निर्माण के मामले में शायद सबसे ज्यादा इनोवेटिव (नवोन्मेषी) हैं। भारत सबसे ज्यादा प्रति माह एप इंस्टॉल करने और उसका प्रयोग करने के मामले में अव्वल है। भारतीय एप परिदृश्य का नेतृत्व दो दिग्गज टेलीकॉम करती हैं।
यद्यपि स्ट्रीमिंग कंपनियां जैसे नोवी डिजिटल व जिओ सावन समेत पेटीएम, फोन पे और फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स वेबसाइट्स ने स्वयं को वैश्विक परिदृश्य पर भी स्थापित किया है। फोर्टी टू मैटर्स डॉट कॉम के मुताबिक गूगल प्ले स्टोर पर करीब 8,82,939 एप पब्लिशर्स में से 24,359 भारतीय हैं। कुछ बड़े भारतीय एप पब्लिशर्स में गेमेशन टेक्नोलॉजी, वर्डस मोबाइल, मूटोन, मिलीयन गेम्स, एआइ फैक्ट्री जैसे नाम शामिल हैं। गूगल प्ले स्टोर्स में उपलब्ध सभी एप पब्लिशर्स में से मात्र तीन प्रतिशत ही भारतीय हैं। वहीं गूगल प्ले स्टोर पर लगभग 29.4 लाख एप हैं जिसमें भारतीय एप की संख्या 1.22 लाख है जो प्ले स्टोर पर कुल उपलब्ध एप्स का मात्र चार प्रतिशत है। 
आंकड़ों के नजरिये से देश में उपभोक्ताओं की उपलब्धता के हिसाब से भारतीय एप की संख्या बहुत कम है। वैश्विक परिदृश्य में आंकड़ों के विश्लेषण से कई रोचक तथ्य सामने आते हैं जैसे प्ले स्टोर्स पर उपलब्ध कुल भारतीय एप पब्लिशर्स की औसत रेटिंग पांच में से 3.65 है जो प्ले स्टोर पर सभी पब्लिशर्स की औसत रेटिंग 3.22 से बेहतर है। उसी तरह प्ले स्टोर पर भारतीय एप की औसत रेटिंग 1,874 है जबकि प्ले स्टोर पर उपलब्ध सभी एप की औसत रेटिंग 1,112 से ज्यादा है। आंकड़ों की दुनिया से दूर आखिर भारतीय एप वैश्विक स्तर पर सफल क्यों नहीं हैं? 
भारत में सूचना प्रौद्योगिकी का बाजार करीब 150 अरब डॉलर का है जो भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद का 9.5 प्रतिशत है। अर्थव्यवस्था को इतना महत्वपूर्ण योगदान देने वाला क्षेत्र आज उत्पादकता के लिहाज से इसलिए पिछड़ रहा है, क्योंकि भारत की कंप्यूटर शिक्षा में नवोन्मेष की भारी कमी है और यह बाजार की मांग के हिसाब से खासी पिछड़ी हुई है। तकनीक पर बढ़ती इस निर्भरता को अनवरत और लाभ उठाने वाला तभी बनाया जा सकता है, जब सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षा का अभ्यास कॉलेज और स्कूली स्तर पर ज्यादा अद्यतन तरीके से कराया जाए। स्कूल स्तर पर कंप्यूटर शिक्षा दो तरह की समस्याओं का शिकार है। पहला, स्कूलों में अभी भी फोकस एमएस वर्ड, एक्सेल, पावर प्वाइंट आदि पर है। 
दूसरा, कंप्यूटर की प्राथमिक भाषाओं को सिखाने में सारा जोर बेसिक और लोगो पर है। एक समय की अग्रणी कंप्यूटर भाषाएं जैसे सी, लोगो, पास्कल, कोबोल, बेसिक, जावा अब चलन से बाहर हैं, पर अभी भी पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं, जबकि कंप्यूटर प्रौद्योगिकी में अग्रणी देश ओपेन सोर्स सोफ्टवेयर और ओपन सोर्स लैंग्वेज को अपना चुके हैं जैसे आर, पायथॉन, रूबी ऑन रेल, लिस्प, टाइप स्क्रिप्ट, कोटलिन, स्विफ्ट और रस्ट इत्यादि। ये भाषाएं सी, लोगो, पास्कल, कोबोल बेसिक, जावा के मुकाबले ज्यादा संक्षिप्त, सहज और सरल हैं। इन भाषाओं के प्रयोग से किसी भी काम को कल्पना से व्यवहार में बड़ी आसानी से लाया जा सकता है। ये भाषाएं ही हैं जिनसे एक कोड का निर्माण कर किसी भी काम को करने के लिए सॉफ्टवेयर का निर्माण किया जाता है। ये भाषाएं उन क्षेत्रों में ज्यादा काम की हैं जो आजकल बहुत मांग में हैं जैसे आििर्टफशयल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स आदि। भविष्य की दुनिया तकनीक और ऑटोमेशन की है जहां सभी प्रकार के उद्योग धंधे और व्यवसाय सॉफ्टवेयर आधारित होंगे। आज हर उद्योग किसी न किसी रूप में आइटी की सहायता से चल रहा है। वह चाहे निर्माण, परिचालन या लेखा हो, सभी कंप्यूटरीकृत हो रहे हैं। अब कंप्यूटर कौशल और उसकी भाषाएं आधारभूत जरूरतें हैं। कंप्यूटर की उच्च शिक्षा का और भी बुरा हाल है। शिक्षण संस्थान प्रायोगिक कार्य और वास्तविक कोड निर्माण नहीं करवा पा रहे हैं, इसलिए जब कोई कंप्यूटर स्नातक किसी नौकरी में आता है तो उसे अपनी कंपनी में इन कार्यो को सीखना पड़ता है। 
वर्ष 2011 में आई नैसकॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार देश के 25 प्रतिशत आइटी स्नातक ही रोजगार के लायक थे, पर छह साल बाद स्थिति और खराब हुई। एस्पायरिंग माइंड स्टडी की एक रिपोर्ट स्थिति की गंभीरता की ओर इशारा करती है। रिपोर्ट के अनुसार भारत के पांच प्रतिशत कंप्यूटर इंजीनियर ही उच्च स्तर की प्रोग्रामिंग के लिए उपयुक्त हैं। यह रिपोर्ट तब आई है जब ग्राहकों की मांग लगातार बढ़ रही है। तेजी से डिजिटल होते भारत में रोजगार के नए क्षेत्र तेजी से ऑनलाइन दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं। नई-नई तकनीक और तकनीकी नवोन्मेष को भारतीय कौशल की विचार शक्ति में लाने के लिए ज्यादा मुक्त और उन्नत कंप्यूटर शिक्षा की तरफ बढऩा ही एकमात्र समाधान है अन्यथा एक वक्त में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अगुआ बनकर उभरे भारत के लिए प्रतिस्पर्धा के बाजार में टिकना संभव नहीं होगा।