अहमदाबाद।आज नवपदजी की आराधना का सातवां दिन ज्ञान पद की आराधना का दिन है। ज्ञान पदयाने ज्ञान का विषय। ज्ञान के साथ दो चीज जुड़ी हुई है। ज्ञान आने से कभई कूतुहल पैदा होताहै तो दूसरे नम्बर में ज्ञान आने से कत्र्तव्य करने की समझ भी आती है। पूज्यश्री फरमाते है इन दो चीज को बराबर समझोंगे तो पता चलेगा ज्ञान में कूतुहल आने से सर्वनाश हो सकता है ऐसे हजारों दृष्टांत देखने को मिले है। अेटमबॉम्बा जिसने बनाया था उस व्यक्ति को भी कुतूहल हुआ कि द्ग3श्चद्यशह्यद्बशठ्ठ होगा के नहीं मगर इस कूतुहल का परिणाम लाखों हजारों लोगों का सर्वनाश हुआ। यदि यह कूतुहल न किया होता तो ऐसी भयंकर दशा न आती।
इसी तरह एक त्यागी महात्मा की बात इतिहास में पढ़ा है। गुरू ने ज्ञान सिखाया। उस ज्ञान में इतनी ताकात थी कि सिंह का रूप भी बना सकते है। मगर गुरू ने खास बताया था कि इस ज्ञान का उपयोग सिर्फ कत्र्तव्य के लिए ही करना। एक बार स्थुलिभद्र को पता चला कि उनकी बहनें उन्हें मिलने के लिए आ रही है कूतुहल जगा और वें अपनी बहनों को बताने, सिंह का रूप करके बैठ गए। दोनों बहनें उपाश्रय में आई सिंह को देखकर वे डर गई और वें सीधे स्थूलिभद्रजी के गुरू के पास जाकर कहां, मेरे भाई महाराज कहां है? उपाश्रय में वे कहीं भी नहीं दिखा रहे है। तब गुरू समझ गए कि उन्हें ज्ञान का अपचा हुआ है। इसीलिए कुतुहल से सिंह का रूप धारण किया है। गुरू महाराजा ने बहनों से कहा, आप जाओ आपके भाई महाराज आपको वहीं पर बैठे मिलेंगे।
कुछ समय के बाद स्थूलिभद्र खुद गुरू के पास पाठ लेने गए। गुरू ने कहा, ज्ञान से जिनमें कूतुहल आ जाता है उन्हें कभी नया पाठ नहीं दिया जाता है। पूज्यश्री फरमाते है जितना पाचन हो सके उतना ही खाना खाया जाता है। कहते है जिसे खाना दिया उसे यदि पचा नहीं तो उस अपचे से दुर्गन्ध आती है। ऐसो को तो खाना पीरसना ही नहीं चाहिए। प्राचीन परंपरा में ज्ञान के साथ कूतुहल को नहीं कत्र्तव्य की मुख्यता थी।पूज्यश्री ने हाल में एक पुस्तक पढ़ी जिसाक नाम ्रह्म्ह्लद्बद्भद्बष्द्बड्डद्यद्य4 द्बठ्ठह्लद्गद्यद्यद्बद्दद्गठ्ठष्द्ग था। ये ्रह्म्ह्लद्बद्भद्बष्द्बड्डद्यद्य4 द्बठ्ठह्लद्गद्यद्यद्बद्दद्गठ्ठष्द्ग मनुष्य से भी ज्यादा यजि आगे बढ़ गया अथवा तो मनुष्य से भी ज्यादा ष्शद्वश्चह्वह्लद्गह्म् आगे बढ़ जाएगा तो समझ लेना सर्वविनाश नजदीक है। कहते है कूतुहली वैज्ञानिक कभी नहीं अटकते नहीं, ना ही वे कत्र्तव्य को कभी देखते है। ज्ञान कैसा भी हो नहीं कर सकता, दुनिया को सुखी नहीं कर सकता, मानव जात को सुखी नहीं कर सकता, प्राणी मात्र को सुखी नहीं कर सकता उस ज्ञान की कोई कीमत नहीं है। ज्ञान का कभी कूतुहल नहीं करना, ना ही उस ज्ञान का कभी दुरूपयोग करना चाहिए।
ज्ञान को मिलाना है तो गुरू से ही मिलाना चाहिए। आज आप सभी को तय करना है ज्ञान मिलाएगें एक लौकिक दृष्टांत पढ़ा। गुरू ने खूब साधना की। इस साधना के बल से वर्ष में एक बार सुवर्ण की वृद्धि होती थी। इस बात को उन्होंने अपने शिष्यों से कहा। तब ज्ञान के साथ कत्र्तव्य को समझने वाले शिष्यों ने गुरू से कहा, आपने तो इस संसार को छोड़ दिया है फिर इस सोने से आपको क्या लेना देना गुरू ने शिष्यों की बात न सुनी और एक दिन सुवर्ण की वृष्टि हुई। उसी समय किसी संजोग से चोर वहां आए। उन्होंने उस संत को धमकाकर सभी सोना महोर चूरा कर ले गए। रास्ते में दूसरी टोली के चोर मिले। उन चोरों ने उस सुवर्ण को उनसे मांगा तब पहले वाले चोर ने कहां, यदि आपको सुवर्ण की जरूर है तो आप उस संत के पास चले जाईए आपको सुवर्ण मिल जाएगें। चोरों की टोली संत के पास जाकर सुवर्ण की वृष्टि करने को कहां। संत के पास लिमिटेड शक्ति भी दुबारा वृष्टि करना अशक्य था क्योंकि उस वक्त योग नहीं था चोरों ने खूब धमकाया। जब संत ने साफ ईंकार कर तब चोरों ने उन्हें मौत के मुंह धकेल दिया। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है ज्ञान को पाकर करोंगे सर्व विनाश होगा ज्ञान को पाकर कत्र्तव्य करोंगे विकास को पाओंगे। ज्ञान को विकास के साथ जोड़ों आत्मा का विकास होगा। वर्षों से पूजा करने के बाद भी आपकी आत्मा प्रसंन नहीं रह सकती इसी तरह वर्षों से पूजा करने के बाद भी आपके मुख से खराब शब्द नहीं अटकते हरेक के प्रति धिक्कार एवं तिरस्कार की भावना रखते हो तो ऐसे ज्ञान से क्या मतलब? आपने जो ज्ञान पाया है उस ज्ञान से सभी को सुखी कर शकुं और स्वयं भी सुख को पाऊं ऐसी भावना आपमें होनी चाहिए। आज परमात्मा महावीर का जन्म कल्याणक खूब ही अच्छी तरह से मनाया गया। पूज्यश्री ने शठ्ठद्यद्बठ्ठद्ग पर लोगों को परमात्मा महावीर के जीन चरित्र पर जो प्रश्न थे उन प्रश्नों का उत्तर खूब ही सुंदर रूपसे प्रस्तुत किया। आ. वीतराग यश सूरि महाराजा ने भी परमात्मा के उपसर्गों का वर्णन भावुकता से लोगों को बताया। पूज्यश्री ने फरमाया आज परमात्मा के जन्म कल्याणक पर सभी को भानी है कि जो दीन है दु:खी है असहाय है ऐसे लोगों को तन-मन-धन से सहाय करके जन्म कल्याणक का आनंद मिलाएगें।
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