अहमदाबाद। परमात्मा का शासन कैसा अद्भुत है। जिन्होंने इस शासन को पाया वे धन्यता का अनुभव कर रहे हंै। आज नवपद जी की ओली पूर्ण हुई कितने भाविकों ने नवपदजी के नौ दिन आयंबिल किए तो कितने को वर्धमान तप की ओली भी थी। आज इन तपस्वीयों को प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है कि कोरोना महामारी के भयंकर वातावरण में उनकी ओली देव-गुरु कृपा से सुखपूर्वक पूर्ण हुई।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते हैं जिन प्रशासन जिनके रग-रग में बसा है उन लोगों को किसी भी चीज पर आसक्ति नहीं रहती है। आयंबिल का खाना लूखा-सूखा है जिसमें कोई टेस्ट नहीं मात्र अनाज को सीझते हंै उस आहार को रस के साथ खाकर आयंबिल करते है। जिन शासन की बलिहारी है कि लोग लूखा-सूखा खाकर भी आनंदित रहते है।
मुंबई के अजैन भाई किसी जैन भाई के परिचय में आए। आयंबिल की महिमा जानी। आयंबिल करने का दिल हुआ। एक दिन आयबिल किया। वहां की व्यवस्था देखकर खुश हो गए। उनके मन में एक प्रश्न आया, इतने लोग यहां आयंबिल करने आते है तो कुछ तो चार्ज लगता होगा? तब जैन भाई ने जवाब दिया, हिन्दुस्तान के किसी भी आयंबिल खाते में एक भी चार्ज नहीं है अपितु जो व्यक्ति आयंबिल करते है उनका हम भक्ति पूर्वक सम्मान करते है। उस अजैन भाई को जैन धर्म पर अहो भाव प्रकट हुआ। आयंबिल की विशेष महिमा जानकर कभी-कभार आयंबिल करने लगे। अन्य मित्रों को भी आयंबिल की महिमा बताकर उनको भी जोड़ा। जो इस सिद्धचक्र की महिमा को जानते है उन लोगों ने तप के साथ जाप भी किया। लोकडाउन में जो द्रव्य पूजा नहीं कर सके वे लोग भाव पूजा रूप चैत्यवंदन करके आराधना का लाभ उठाया।प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है श्रीपाल का सत्त्व एवं मयणा का तत्व हरेक को अपने जीवन में अपनाना है। कोई व्यक्ति कितना भी अपकार करे हमें उनका उपकार ही करना है। किसी ने हमारा खराब किया कोई हमें किसी बाबत में फंसा देता है अथवा कोई हमारा अपकार करता है या फिर कोई हमें पीड़ा देता है तो ऐसे व्यक्ति का भी हमें भला ही चाहना है। मौका आए तो उनका उपकार ही करना। धवलसेठ श्रीपाल की ईष्र्या करता था हर हमेशा श्रीपाल का बूरा ही बोलता था फिर भी श्रीपाल ने कभी अपकारी समझकर बदला नहीं लिया अपितु उस पर प्रेम एवं स्नेह भाव रखकर हर हमेशा अपने ही साथ रखा।
पूज्यश्री फरमाते है कोई हमारा कितना भी बिगाड़े, हमेशा उनका भला ही चाहना है और भला ही करना है। एक बिच्छू तालाब में गिरा पड़ा था। किसी दयालु को उस पर दया आई। उसने बिच्छु को जैसे ही हाथ में पकड़ा बिच्छु उस दयालु को डंक मारकर पानी में गिर पड़ा। दूसरी बार-तीसरी बार इसी तरह का सिलसिला जारी रहा इस ओर बिच्छु ने डंकने का स्वभाव न छोड़ा और वह दयालु भी उसे हर बार बचाने की कोशिश करना रहा। किसी सज्जन को उस पर दया आई। उसने दयालु को कहा, छोड़ दे इसे. फोगट तुं क्यों परेशान हो रहा है? तब इस दयालु ने कहा, बिच्छु डंकने का स्वभाव नहीं छोड़ता है तो मैं किस लिए उसे बचाने का स्वभाव छोडुं। मैं तो उसे बचाकर ही रहूंगा।अच्छे विचारों का अमल होना मानो अपने घर दीवाली है अच्छे विचारों का अमल होता हो तो समजना साक्षात् परमात्मा के दर्शन हुए। अच्छे विचारों का अमल हुआ मानो सारे तीर्थ की यात्रा हो गई। श्रीपाल के चरित्र को पढ़कर एक बात का तय करना अब हमारी जितनी जिंदगी बची है उस जीवन के दरम्यान मैं दूसरो को सन्मार्ग में ले जाऊंगा, मैं दूसरों को सहायक बनकर रहूंगा, मेरे पास जितनी संपत्ति है उसमें से 20 प्रतिशत दूसरो की सेवा में खर्च करूंगा बस, श्रीपाल राजा की तरह सत्त्व बढ़ाना हैमयणा कर्म के सिद्धांत को अच्छी तरह से जानती थी। एक बार राजा ने अपनी दोनों पुत्रीओं को सभा में बुलाकर प्रश्न पूछा कि पुण्य से किस चीज की प्राप्ति होती है? तब सुर सुंदरी ने जवाब दिया, धन, यौवन-सुन्दर देह एवं इच्छित पति। राजा सुरसुंदरी के जवाब से प्रसन्न होकर उसकी शादी किसी अच्छे राजा के साथ करवा दी। अब मयणा की बारी थी। उसने जवाब दिया, सभी अपने अपने पुण्य से वस्तु की प्राप्ति करते है। राजा क्रोधित हुए तब मयणा ने कहा, पिताजी, आपके प्रपात से ये धन, यौवन की प्राप्ति नहीं होती आप फालतु में अभियान मत करो। मयणा की यह बात सुनकर राजा ने कहा, तेरी शादी किसी कोढ़ी के साथ कर दूं ताकि तुम्हारा अभियान दूर हो जाएगा। तब मयणा ने कहा, पिताजी! मैं आपने चरण धोकर पीने को तैयार हूं, मगर ये बात कभी नहीं मानूंगी कि कोई किसी के सुखी करने से सुखी होता है। हर कोई व्यक्ति अपने अपने कर्म के मुताबिक सुख-दुख को पाते है।मयणा सुन्दरी का तत्व पर श्रद्धा ये बताता है कि वह परमात्मा की आज्ञानुसार जीवन जीती थी कर्मग्रंथ तो हर कोई पड़ता है मगर अपने रोय रोम में जिसने कर्मग्रंथ को बिठाया ऐसी मयणा की ताकत अद्भुत थी।
पूज्यश्री फरमाते है आपके जीवन में यदि दु:ख मत होना। बस, श्रीपाल का सत्त्व, मयणा का तत्व अपने जीवन में प्रगटाकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।