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अहमदाबाद। परम मंगलकारी परम पुण्योदय से हमें यह परमात्मा का शासन मिला है। परमात्मा के शासन के साथ मनुष्य का अवतार मिलना पुण्योदय की बात है। एक ओर मनुष्य का भव, एक ओर देवलोक है इन दोनों में से आप किस भव में जाना पसंद करेंगे? साहेब! मनुष्य भव में। आपकी बात बराबर है। कारण देवलोक में सुख है। देवों परमात्मा की भक्ति कर सकते हैं।  परमात्मा का अभिषेक भी कर सकते है तथा नंदिश्वर द्वीप में जाकर देवों, परमात्मा का महोत्सव भी भी का पच्चक्खाण नहीं कर सकते है जबकि मनुष्य की बात ही कुछ अलग है जैसे ही सूर्योदय हुआ, संपूर्ण जगत अंधकार से प्रकाश में आया, सूक्ष्म जीवों की विदाई हुई, आकाश में पक्षी कलरव करने लगे और और योग्य समय पर मनुष्य नवकारशी अथवी बीयासणा का प्रच्चक्खाण करते है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है देव भव की लोकास्थिति है देवों में खूब ताकात है वे चाहे तो वैक्रिय शरीर से अनेक रूप बनाकर कहीं भी जा सकते है मगर ये ताकात किस काम की? जब वे मन से संकल्प करके भी नवकारशी का पच्चक्खाण नहीं कर सकते है। पूज्यश्री फरमाते है आप आपकी आत्मा को मानो कि आपको यह तक मिली है तो आप संकल्प करे नवकारशी जैसा तप तो जरूर करें। मगर मनुष्य को सूझता नहीं है वह मनुष्य जीवन की कीमत को सही अंदाज से नहीं समझा है। परमात्मा महावीर की अंतिम देशना रूप यह उत्तराध्ययन सूत्र वैराग्यमय सूत्र है तत्वमय सूत्र है। इस अध्ययन में छह महानुभावों का जीवन चरित्र है। ये चारों पात्र इषुकार नगर में रहते थे। दो ग्वाल पुत्र देवलोक में थे। एक बार उन्होंने अवधि ज्ञान से जाना कि वे इषुकार नगर में भृगु पुरोहित के यहां पुत्र के रूप में उत्पन्न होंगे। मनुष्य भव में जन्म लेने के बाद संयम मिलेगा कि नहीं? नये मां बापउन्हें परजीशन देंगे कि नहीं ये सोचकर दोनों देवों ने साधु का वे करके देवलोक से मनुष्य भव में जहां उनका अवतार होगा उस घर में आए। साधु के प्रति अहोभाव होने से उन्होंने खूब भक्ति से उन साधुओं को बहोराया। देवो ने पूछा, आपके परिवार से यदि कोई व्यक्ति संसार का त्याग करे तो क्या आप उन्हें खुशी खुशी परमीशन दोंगे? पुरोहित ने कहा, शादी करके वर्षों बीत गए ेक भी संतति नहीं है। 
देवों ने कहां आपकी इस सुंदर भक्ति से पुत्र जरूर होंगे। वे सुंदर विनयी एवं धर्म के रूचि वाले होंगे एक बात का ख्याल रखना संसार से विरक्त होकर वें दीक्षा जरूर लेंगे। पुरोहित विचार में पड़ गया। मेरे होते, वे दीक्षा कैसे लेंगे तब श्रमण रूप देवों ने कहा, आपके यहां जन्म लेने वाले पुत्रों को आप संयम की परमीशन दोंगे? इस प्रकार कहकर देव चले गए। 
दीक्षा के भय से पुरोहित ने गांव ही बदल दिया। पुरोहित के यहां पुत्रों का जन्म हुआ। साधु के संपर्क में न जाए इसलिए पहले से ही साधुओं से दूर रखा। एक बार दोनों बच्चे खेल रहे थे उन्हें साधु दिखाई दिए। जातिस्मरण ज्ञान हुआ। दीक्षा के लिए उतावले हुए। मां बाप से अनुमति लेने गए।पूज्यश्री फरमाते है पूर्व जन्म की आराधना लेकर जो आता है उसे उपदेश की जरूरत नहीं पड़ती है। सुखों में आनंद लेने जैसा नहीं है। हमारे कारण कितने जीवों को दु:ख सहना पड़ता है पृथ्वीकाय से लेकर वनस्पतिकाय के जीवों को भी पीड़ा सहन करनी पड़ती है। मनुष्य जीवन में भी दु:ख ही दु:ख है। पैसों के लिए लड़कों मां मारती है। पिता के पास हिस्सा न मिले तो पुत्र अपने पिता को मार देता है। इतिहास के पन्नों पर नजर करके देखो चुलनी ने अपने प्रेमी को मिलाने के लिए सगे पुत्र को मार डाला इसी तरह कोणिक ने राज्य के लिए अपने पिता श्रेणिक को मार डाला। कहते है संसार की लीला ही कुछ ऐसी है कौन कब और किसे तथा किसलिए किसी को मार डाले कुछ वह नहीं सकते? एक भाई मुंबई से अहमदाबाद आए। मित्र ने पूछा भैया। मुंबई को क्यों छोड़ दिया? आपके पास तो बंगला-गाड़ी सब कुछ था फिर मुंबई क्यों छोडऩा पड़ा। बात दरअसल ऐसी थी कि मुंबई में मेरे पास सब कुछ व्यवस्था भी बस एक बात की तकलीफ थी कि वहां का वोतावरण भेज वाला था जो मुझे सूच नहीं हो रहा था यहां पर सूखी हवा है इस कारण मैं अहमदाबाद आ गया बस वैरागी की भी यही हालत है सुख सामग्री हर तरह की  द्घड्डष्द्यद्गह्ल4 संसार में है नगर संसार का वातावरण वैरागी को सूट नहीं होता इसीलिए वें इस संसार से जल्दी निकालकर संयमको अंगीकार कर लेते है वैरागी संसार की इस लीला एवं प्रपंच को पसंद नहीं करता है। वैरागी संसार की इस लीला एवं प्रपंच को पसंद नहीं करता है।
 पूज्यश्री फरमाते हैं कि परिवार  में सब साथ रहते हैं। फिर भी पिता पुत्र साथ रहने के बावजूद भी एक दूसरे से दूर है। पत्नी पति के साथ एकात्मा बनके नहीं रहती है। स्वार्थ आए, झगड़ा हुए बिना नहीं रहता है। ज्यादा से ज्यादा परमार्थ हो उसके लिए प्रयत्नशील बनना है। पुरोहित पुत्रों ने किसी भी प्रकार से मां बाप को समझाकर संयम को अंगीकार किया। सुन्दर रूप से संयम जीवन का पालन करके मोक्ष में गए। पूज्यश्री फरमाते हैं कि इस संसार की लीला-प्रपंच से बचना है तो संयम का मार्ग अच्छा है। बस इस मार्ग को अपनाकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।