अहमदाबाद। झरना को देखकर किसे आनंद नहीं आता? शास्त्रकार महर्षि फरमाते है उत्तराध्ययन सूत्र आनंद से झरना तुल्य है। आपको कोई चीज मनपसंद मिले तो आपको आनंद आता है। आनंद की व्याख्या यही है कि जो चीज, जब मिले जहां मिले वह हमारी मन पसंद बन जाती है, वहीं आनंद है। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है संसार के हरेक व्यक्ति तालीम यही है कि वह संसार के हरेक पदार्थ, संसार के हरेक व्यक्ति तथा संसार के हरेक प्रसंगो को अपना व्यक्ति कोई भी प्रसंग खराब नहीं है। जो कुछ घटना मेरे कर्म के मुताबिक बनती है वह सुयोग्य है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है। साधु कभी भी जगत के वर्तन में परिवर्तन नहीं करते है मानलो, उन्हें ऐसा कुछ करना भी पड़े तो वें पहले अपने में परिवर्तन लाते है। साथु अपने जीवन का परिवर्तन करने के बाद वें अपने में मस्त बन जाते है दुनिया के लोगों को परिवर्तन की उन्हें चिन्ता नहीं रहती है।
एक भाई को कम सुनाई देता था किसी युवान को उस पर दया आई। उसने उसे चार बार जोर से कान में बोला। युवान को लगा शायद वह जोर से बोले तो उसे ठीक तरह से सुनाई दे। युवान ने उस कम सुनाई देने वाले भाई से पूछा भैया। मैं जोर से बोल रहा हूं आपको खराब तो नहीं लगता है ना? युवान। खराब मुझे किस बात के लिए लगे। आपको मुझे सुनाने का उमंग है। जोर से आपको बोलना पड़ रहा है मुझे इस बात का दु:ख हो रहा है।
पूज्यश्री फरमाते है भाई साहेब को कम सुनाई दे रहा है फिर भई वे अपने में मस्त है। जो व्यक्ति अपने में मस्त रहता है वह फकीर है साधु है। फीकर की फाकी करे उसका नाम फकीर। साधु कभी किसी की फीकर चिन्ता नहीं करता है वे तो अपनी आराधना साधना की मस्ती में ही रहते है।
ाज उत्तराध्ययन सूत्र के पंद्रवहवां अध्ययन सभिक्षुक पर प्रकाश डालते हुए पूज्यश्री फरमाते है साधु कभी किसी प्रसंग से डिस्टर्ब नहीं होते, न ही अत्यंत आनन्दित होते है। वे कभी अपना विवेक नहीं भूलते है। दुख में धीरज रखते है और सुख में विवेकी होते है। इच्छित चीज मिले तो भी प्रसंन, और इच्छित चीज न मिलने पर भई प्रसन्न रहने वाले साधु है। कोई दाता देता है और कोई नहीं भी देता है इन दोनों स्थितिओं में जो सम्मान रहते है वे साधु है।
किसी रेलवे स्टेशन के पुल पर एक व्यक्ति भीख मांग रहा था। जो भी लोग वहां से पसार होते वह उनको कहता था देगा उनका भी भला होगा और नहीं देने वालों का भी भला हो। किसी यात्री को उसकी मजाक करने की सूझी। उस यात्री ने उस भिखारी को कहां देने वाले का भला हो यह बात मेरी समझ में आ गई परंतु नहीं देने वालों का भला किस तरह हो यह बात मेरे गले नहीं उतरी तब भिखारी ने कहा, जो नहीं देता है उसे पहले दान का महत्व समझाना पड़ता है फिर दान किस तरह से करना चाहिए उस, नहीं देने वालों की डबल सर्विस करनी पड़ी इसलिए उसका भी भला हो। बात एकदम सच्ची है उस यात्री ने अपने कान पकड़े ओर वहां से रफुचक्ककर हो गया। पूज्यश्री फरमाते है यह बात हरेक को सोचने जैसी है यदि हमारे मन में अमुक प्रकार की वृत्ति आ जाए वो वृत्ति यदि दृढ़ बन जाए तो दुनिया का कोई भी व्यक्ति हमें दुखी नहीं कर सकता है। किसी भी परिस्थिति में मस्त रह शके ऐसा हमारा जीवन होना चाहिए। हरेक परिस्थिति में मस्त रहने वाले ऐसे साधु का जीवन देखो और समझो। आपको भी कभी न कभी इस साधु के पथ पर आना ही है। इसी पथ से आप मोक्ष की प्राप्ति कर सकोंगे। कोरोना महामारी के इस वाईरस को आज कोई भी दूर नहीं कर पा रहा है। इतने बड़े-बड़े वैज्ञानिक हो गए, अटमबोम बनाया, सूर्य की शक्ति से गाड़ी चलने लगी इतना कुछ संशोधन होने के बावजूद एक छोटे से वाईरस को दूर करने के लिए कोई कुछ कर न सके? साधु-संत अपनी मस्ती में मस्त बनकर जो कुछ होता है उसे सहज तरीके से स्वीकार कर लेते है। किसी के पास ताकात नहीं कि वे मृत्यु को अटका सके। हरेक को मृत्यु का स्वीकार हंसते हुए या रोते हुए करना ही पड़ता है। मृत्यु हरेक को आएगी ही। उत्तराध्ययन सूत्र में बताया, कभी राग-द्वेष करना नहीं। स्द्बद्वश्चद्यद्ग एवं अच्छे भाव से जीवन जीना। इस प्रकार के जीवन की प्राप्ति के लिए हमें महापुरूषों के जीवन चारित्र को देखना है।
संगम ने भगवान महावीर के ऊपर प्रतिकूल उपसर्ग किए। परमात्मा को उठाकर उछाल फिर जमीन में गाढ़ दिया मिट्टी की बारिश-बिच्छु का डंक-चीटियों का उपसर्ग विगेरे अनेक उपसर्ग किए परंतु परमात्मा महावीर अपने का उसग्ग में स्थिर रहे। समता से ये सभी उपसर्ग सहन किए। पूज्यश्री फरमाते है आपके जीवन में कोई शारीरिक दुख आ पड़े तो तुरंत विचार आता है पर जाऊं तो अच्छा है
शास्त्रकार महर्षि फरमाते है मृत्यु पाए बिना कभी किसी चीज से छुटकारा मिलेगा? नहीं। मृत्यु हरेक को आएगी ही बस मन में एक विचार करना है किसी के ऊपर राग, किसी के ऊपर द्वेष, किसी के ऊपर अरूचि नहीं रखोंगे तो जीवन शांति से, आनंद से पसार होगा।
मनुष्य जन्म मिला है तो संयम की भावना जरूर रखना तधा साधुओं की तरह किसी भी जीव की हिंसा नहीं करना, किसी से हिंसा नहीं करवाना, जो हिंसा कर रहा हो उनकी अनुमोदना नहीं करना, किसी से जीव को दु:ख नहीं देना बस साधु की तरह निर्ममत्व, अपरिग्रही, ज्ञान ध्यान में मस्त बनाकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।