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अहमदाबाद। परमात्मा की अंतिम देशना रूप उत्तराध्ययन सूत्र तो एक रसथाल है। उत्तराध्ययन सूत्र का एक-एक अध्ययन आत्मा को आनंद की ओर ले जाता है। आज का अध्ययन, ब्रम्हचर्य अध्ययन है। एक ओर नजर करे तो ख्याल आएगा लोगों में पालन करने वाले भी है। भ्रम यानि सत्य नहीं झूठा। कितने लोग झूठ के पीछे भटकते रहते है। सत्य के पीछे चलना भी एक प्रकार का भ्रम ही है। अब ब्रम्ह की बात आई। ब्रम्ह याने पवित्र आत्म तत्व है। ब्रम्ह तत्व आकर्षक वाला होता है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है भ्रम में कभी मत जीओं। मानव को होता है आज पांच लाख मिले है तो दस लाख मिला लूं तो जीवन भर शांति हो जाएगी पांच लाख की जगह दस लाख को मिलाने के लिए प्रयत्न करना है जो शांति थी उसे भी खो देता है। मानव के मन के ऐसा विचार आता है कि दस लाख मिलाने के बाद शांति ही है यह उसका भ्रम है क्योंकि दस लाख के बाद 20-20 लाख इस तरह की स्पृहा जागृत होती है। दस लाख मिलाने के बाद भी वह शांति से नहीं बैठेगा अब वह बीस लाख-तीस लाख के लिए दौड़ेगा। दस लाख मिलने के बाद शांति है यह पहला ज्ञान सत्य था मगर सत्यत का ये भ्रम था।
पूज्यश्री फरमाते है हम हरेक चीज भ्रम में जी रहे है। भ्रम में पायमाल बन जाते है। पुत्र बड़ा होकर सेवा करेगा। एक जीवन को बड़ा करो उसका पालन पोषण करो यह बात बराबर है मगर भ्रम में रहने वाला बाप, पुत्र निश्चय ही मेरी सेवा करेगा। यह भ्रम है। यह भ्रम कभी नुकसान तो कभी तकलीफ भी देता है कभी कभा तो आंख में से आंसु भी निकलवाकर रहता है तब मानव को कहना पड़ा है कि अब तक मैंने जो समझा था वह भ्रम झूठा था। आपको यही बात समझानी है कि पांच इन्द्रियों के विषयों में सुख है ऐसी भ्रमणा से आप उसका भोग करते हो। क्या आपका तृििप्त मिली? तृप्ति कभी नहीं मिलेगी। आप इन इन्द्रियों के विषय सुखों का भोग बारंवार करने पर भई अतृप्त ही रहोंगे। इस भ्रम को दूर करके अबहमें ब्रह्म की ओर आगे बढऩा है। ब्रम्ह की ओर आगे बढऩे के लिए हमें दूसरे सभी तत्वों को दूर करके आत्मा से गुणों की ओर ध्यान देना है। जब तक तमाम गुणों आपमें न आए तब तक ब्रम्हचर्य का अच्छी तरह से पालन हो उस प्रकार से रहना चाहिए।
किसी स्त्री का रूप अच्छा देखकर उसमें मोहित नहीं बनना। रूप कितना भी अच्छा भले हो, उसकी चपेट में नहीं आना चाहिए। किसी चिंतक ने कहा, मिट्टी के कटोरे में दूध पीयो या सोने के कटोरो में दूध पीयो मीटा ही लगेगा इससे कोई फरक नहीं पड़ता। यदि दूध ही बराबर नहीं तो मिट्टी के कटोरे में स्वाद नहीं आएगा वैसे ही सोने के कटोरे में भी स्वाद नहीं आएगा बर्तन मिट्टी का हो या सोने का दूध का स्वाद दोनों कटोरे में एक ही आएगा। पूज्यश्री फरमाते है बाहर के शरीर का रूप देखकर चक्कर में नहीं पड़ जाना। हमें ब्रम्ह में आना है आत्मा के गुणों की ओर आगे बढऩा है। किसी भी प्रकार के आकर्षण के पीछे खींच नहीं जाना। कोई कितना भी प्रलोभन दे उसके पीछे मत जाना इसी तरह प्रतिकूलता आए भाग मत जाना। प्रलोभन एवं प्रतिकूलता के बीच रहना उसका नाम ब्रह्मचर्य है।
दशवैकालिक सूत्र में बताया रूप-रस-गंध एवं स्पर्श किसी में अच्छे हो तो खींच मत जाना। जरूरत हो तो इन का उपयोग जरूर करना मगर उसमें फंसना नहीं। पानी के साथ खेलने से दो बनाव बनते है एक तो आदमी तिर जाता है या फिर डूब जाता है। पूज्यश्री फरमाते है इस दुनिया के जितने भोग सुख है यदि आप उसमें फंस गए तो डूब जाओंगे यदि तुम्हारा अधिकार रूप-रस-गंध एवं स्पर्श पर रहा तो भी तुम डूब जाओंगे। इसी तरह तुम्हारा अधिकार यदि पानी पर रहा तो तुम इस संसा से तिर जाओंगे। कभी भी तिर जाना मगर डूबने का साहस मत करना है।एक सामान्य कुटुंब के भाई बहन किसी गांव में रहते थे। किसी दयालु को उन पर दया आई। इसके पास कुछ नहीं है ये खूब तकलीफ में है तो मैं इसकी मदद करूं। आपके पास पैसे नहीं आप अपना गुजारा कैसे करते हो? भाई साहेब बोले मेरा खेत है मैं वहां से अनाज लाकर अपना गुजारा करता हूं दयालु ने पूछा, मानलो खेत में अनाज न उगे तो आप क्या करते हो? मैं वृक्ष के पत्ते खाकर गुजारा कर लेता हूं दयालु ने उस भाई साहेब को पैसों के लिए आग्रह किया मगर वे प्रलोभन में आए नहीं। इसी तरह एक मोची की बात आती है मोची भगवान का भगत ता बुट-चप्पल सीकर अपना गुजारा करता था। एक दिन कोई सज्जन उसके पास आया और उसे कहां, तुम्हारे पास बिल्कुल जैसे नहीं है तो ये सो रूपिये रखो। मोची ने ना कही फिर भी सज्जन जबरदस्ती उसके हाथ में रखकर चला गया। मोची घर आया उसके घर में ना तो अलमारी थी ना ही तिजोरी थी। मोची के घर पर अेलुमीनियम पतरे का छत्त था उस छत्त के नीचे सो रूपिये छूपाकर वह अपने काम में मस्त बनकर भगवान का भजन गाने लगा। कुछ ही देर में चूआ आया और वह आवाज करने लगा। मोची के भजन में खलेल पड़ी। वह चूआ इस सो की नोट कॉट खाएगा यह नोट ही न ली होती तो ये नोबत न आती। जैसे ही सज्जन आएगा उसकी मोट लौट दूंगा। सज्जन एक दिन मोची के पास आया तो उसने सो की नोट देते हुए कहा, तुम्हारी इस मोट के कारण मुझे प्रभु के भजन में खलेल पहुंची है इसे आप ले लो अथवा तो मैं फाड़ डालूंगा। पूज्यश्री फरमाते है इस प्रकार से जो व्यक्ति प्रलोभन में नहीं आता है वह तिर जाता है। संसार से तिरना है तो भ्रम में न रहो, न ही रूप-रस-गंध-स्पर्श में फंसना है। भ्रम में जीवन खत्म हो जाएगा। परमात्मा की कृपा से ब्रम्हचर्य का पालन करके शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें। किसी भी संयोग में तिरना सीखो डूबना नहीं।