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अहमदाबाद। उत्तराध्ययन सूत्र के एक एक अध्ययन खूब ही सुन्दर है। आज के अध्ययन का नाम सुनकर हरेक को दचका लगे वैसा नाम है पाप श्रमण। विचार करने जैसा है कि श्रमण यानी साधु भगवंत कितना पवित्र नाम है। फिर भी इसी श्रमण के आगे पाप ऐसा विशेषण लगाकर इस अध्ययन का नाम पाप श्रमण दिया है। शास्त्र की दृष्टि महान है, क्योंकि वह हरेक की प्रगति का ख्याल करता है। कोई महान साधक हो तो उसका भी ख्याल करता है। कोई विध्नों में से पसार हो रहे हैं तो उसका भी ख्याल रखता है तथा साधक की करूणा का भी ख्याल रखता है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते हैं कि अक्सर ऐसा बनता है कि मानव अपने ही आत्मबल से उत्थान पाता है, साधना करता है, अच्छे मार्ग पर चलता है, कर्मो का क्षय करने का प्रयत्न करता है। वर्तमान में खराब विचारों का प्रवाह, खराब संग से मानव का पतन होता है। जैसा संग वैसा रंग यह कहावत अनुभवों का खजाना है। संग बदलने के साथ व्यक्ति का रंग-ढंग दोनों बदलत जाते है। जीवन में जिसे आगे बढऩा है उन्हें अपना संग तय कर लेना है। आपके जीवन में शास्त्र के प्रति लगाव होना चाहिए। नई नई वैराग्य की बातें गुंजि तहोनी चाहिए।
पूज्यश्री फरमाते है कितने साधना में आगे बढ़ते है परंतु जो साधना में आगे बढ़ गए उन आत्मा को कितने परिबलों नीचे खींच लाते है। श्रमण होने के बावजूद संग बदल गया तो पूरा वातावरण ही बदल जाता है चौबीस घंटों तक मित्र आपके साथ रहे अे बात शक्य नहीं है क्योंकि उनके पास समय नहीं, उनके अपने कार्य भी होते है। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है यदि आपको निरंतर आगे बढऩा हो तो शास्त्र संग करो। शास्त्र का संग आत्मा में नई नई भावनाओं पैदा करता है। साधु के जीवन से बहुत कुछ जानने को मिलता है। गुरू को पूछने से हमें शास्त्र के पाथ के साथ अर्थ भी जानने को मिलता है तो उस सूत्र एवं अर्थ का पुनरावर्तन करो। मात्र सूत्र एवं गाथा ही नहीं करना है आत्मस्पर्शी बनने के लिए अर्थ का भी विचार करना होगा शास्त्रकार फरमाते है सूत्र सूई की तरह है तो अर्थ वह धागा है महान कार्य करने के लिए अर्थ का चिंतन करना ही पड़ेगा साधु का चित्त वाचना पृच्छता परावर्तन में हमेशा लगा रहता है। साधु जब खड़ा होता है तो शास्त्र के शब्दों उनके कान में गुंजते है। दशवैकालिक सूत्र में साधु को किस तरह से उठना-बैठना उसका वर्णन बताते हुए फरमातेहै जयणा पूर्वक चलना-यतना पूर्वक बैठक-यतना पूर्वक बोलना चाहिए।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है सुन्दर भावना जिस श्रमण में जागृत हो जाए वह पुण्यश्रमण बन जाता है। स्वाध्याय की मस्ती में मस्त बनकर आगे बढ़कर संवर श्रमण उसके बाद निर्जरा श्रवण बन जाता है। पूज्यश्री फरमाते है आपके मन में शास्त्र का संग, गुरूजनों का संग परमात्मा के वचनों का संग रखों। प्रतिक्षण कोई न कोई अनुप्रेक्षा मिलेगी।ध्यान के बाद जो विचार आया वह अनुप्रेक्षा है।स्वाध्याय किया स्वाध्याय का रंग लगा अनुप्रेक्षा है। जिस तरह आपने कल खड़ी खाई थी उसका स्वाद रह गया जीभ पर द्रव्य नहीं है फिर भी मन में उस खड़ी का स्वाद आता है बस इसी तरह स्वाध्याय किया आत्मा से उसका स्वाद रह गया। स्वाध्याय के बाद आनंद एवं मस्ती जागृत हुई वह एक अनुप्रेक्षा हुई ऐसी महान अनुप्रेक्षा के बाद दोषित श्रमण में से पुण्य श्रमण बनता है।
दोषित श्रमण में से संवर श्रमण और पापा श्रवण में से निर्जरा श्रमण बनता है। पुण्य श्रमण हमें वैराग्य प्रकट हो ऐसी कथा कहते है वह धर्मकथा रूप स्वाध्याय ही है। कभी कभार कर्म हमें नीचे गिराने की कोशिश करता है छोटा सा अभियान भी हमें पतन की ओर ले जाता है भगवान महावीर के पूर्वभव की बात है सोलवें भव में वे तपस्वी का जीवन जी रहे थे। एक बार वें चलते चलते लडख़ड़ाये तब उनका चचेरा भाई विशाखानंदि हंसते हुए बोले, तुम तो राजा थे। तुम्हारे में तो अटूट बल था वह बल-पराक्रम कहां गया? बस इस शब्द को सुनते ही भगवान महावीर का जीवन तपस्वी को गुस्सा आया अपने बल को दिखाने के लिए गाय के सींग को पड़कर उस गाय आकाश में उछाला। पूज्यश्री फरमाते है परमात्मा के सिवाय किसी के वचन काम नहीं आते है। आपको जब भी राग द्वेष के भयंकर विचार आए परमात्मा को याद करना। कान में यदि कोई खीला अथवा तो शूल लगा जाए तो वह किसी भी तरह से निकल जाएगा मगर किसी को खराब शब्द सुनाओंगे तो वह शब्द रूपी शूल कभी नहीं निकलेगा भवांतर में दु:खी होना पड़ेगा ऐसे सुन्दर विचार करके शास्त्र के संग में रहो। जो भी आए उन्हें महावीर के रंग में, जिनशासन के रंग में, संवर के रंग में, तप के रंग में, तथा निर्जरा के रंग में रंग लो। हरेक आत्मा के शुभ की प्रार्थना करो। जिनमें जो दोष है वे इस विश्व से दूर हो जाय और शीघ्र सभी आत्मा से परमात्मा बनें। यही शुभाशीष।