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अहमदाबाद। उत्तराध्ययन सूत्र एक महान सूत्र है। मानव जीवन का परम एवं चरम लक्ष्य महापुरुषों ने एक ही बताया कि आप स्वयं आत्मा में से परमात्मा बनो। आत्मा में से परमात्मा स्वरूप में आने के लिए आत्मा के स्व स्वरूप में आना उसी का नाम मोक्ष है। शास्त्रकार महर्षि मोक्ष की साधना के लिए महान से महान सूत्रों की रचना की है। किसी न किसी तरीके से संसार से कैसे मुक्त होना यही बात हमें हरेक शास्त्रों में बताई है। ये बात जिनके मन में आ गई वह अच्छी तरह से समझकर दृढ़ बन जाता है तथा उसकी हरेक क्रियाएं भी इसी प्रकार से हो जाती है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है मोक्ष के संस्कार जिनमें पड़ गए है वे आत्माएं किसी न किसी कारण से अलग अलग मनुष्य गति में पैदा होते है तथा कुछ लोगों को किसी चीज का अंतराय लगा हो तो वह जैन सिवाय के कुल में भी पैदा होता है जैसे कि आद्रकुमार का जन्म अनार्य देश में हुआ था।
पूज्यश्री फरमाते है ऐसे लोगों का बाहर का वातावरण कैसा भी हो, अंदर का वातावरण मजबूत हो तो वह भक्ति मोक्ष की प्राप्ति जरूर करता है। पर्वके किसी भी भव में कभी अच्छे मार्ग को अपनाया होगा अथवा तो त्याग के मार्ग पर चलने वालों का कभी संग भी हुआ हो तो ये सभी संस्कार दूसरे भव में साथ आते है। शरीर को भले छोड़ दिया और उसका राख भी हो गया, संजोग भी बदल गए किन्तु आत्मा में रहे हुए दृढ़ संस्कार कभी बदलते नहीं। ये संस्कार लगभग तो साथ ही आते है।
मृगावती का पुत्र बलश्री अपनी मस्ती में जीवन जी रहा है। कहते है कोई व्यक्ति यदि संस्कार मजबूत हो यदि कोई सहारा मिल जाए तो वह अवश्य इस संसार से विरक्त बनकर संयम ग्रहण कर सकता है। राजपुत्र बलश्री ने कभी साधु के दर्शन नहीं किए थे। कोईछोटा बच्चा हमारे पास आता है हम मस्ती के मूड़ में उसे पूछे, बेटा! दीक्षा लेनी है? वह बच्चा यदि होशियार, हो तो यही कहेगा बड़ा होकर मैं शादी करूंगा। पूज्यश्री फरमाते है जिनके घर में धर्म के संस्कार नहीं अथवा तो घर से किसी ने दीक्षा नहीं ली तो बच्चे में संस्कार कहां से आएगें?राजपुत्र बलश्री ऋद्धि में पल रहा है कभी साधु के दर्शन भी नहीं किए है कोई भयंकर पापी हो और उसे सद्गुरू के उपदेश मिले हो तो उस पापी के जीवन में भी ह्लह्वह्म्ठ्ठद्बठ्ठद्द श्चशद्बठ्ठह्ल  आ जाता है। ह्लह्वह्म्ठ्ठ आता है तब ह्लह्वह्म्ठ्ठद्बठ्ठद्द श्चशद्बठ्ठह्ल  आता है। हरेक के जीवन में जल्दी ह्लह्वह्म्ठ्ठद्बठ्ठद्द श्चशद्बठ्ठह्ल  नहीं आते है कोई घटना बन जाए तो ह्लह्वह्म्ठ्ठद्बठ्ठद्द श्चशद्बठ्ठह्ल आने की शक्यता है। मृगापुत्र अपनी पत्नीओं के साथ झरोखे में बैठा हुआ क्रीड़ा कर रहा है। एकाएक उसकी दृष्टि मार्ग पर चलते हुए साधु पर पड़ी। वह मन में चिन्तन करने लगा श्वेत वस्त्र, तेज ललाट, चमकते हुए नेत्र, तपस्या से कृश शरीर वाले ऐसे महापुरूष को मैंने कहीं न कहीं पूर्व देखा है? इस व्यक्ति में ऐसी क्या विशेषता है कि मेरा दिल उसकी ओर खींचा चला जा रा है। चिन्तन चला। विचारों में लीन बने और जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। पूर्व भव की सारी घटनाएं प्रत्यक्ष हो गई। उसे याद आया कि पूर्व भव में वह श्रमण था। वैराग्य की उर्मीयां बढऩे लगी।
मां के पास घर गया। मृगावती देखती है आज मेरा लाल कुछ खोया खोया हुआ है कहते है जो ज्ञान ध्यान की मस्ती में रहते है वे इसी तरह खोये खोये रहते है। मां से संयम की बात की। मृगापुत्र मां को समझाने की कोशिश कर रहा है मां! इस विश्व में कितने सुन्दर सुन्दर धर्मों है। जिस धर्म में प्राणी मात्र के कल्याण की बात आती है, जिस धर्म में वैराग्य की बात आती हो क्या वह धर्म अच्छा नहीं? बेटा वह धर्म अच्छा ही है।मृगापुत्र कहता है। मां मुझे संयम के लिए आज्ञा दो ना? पुत्र के प्रति राग होने से मृगावती के आंखोंसे अश्रु बहने लगे। मां विचार में पड़ गई इसमें पूर्वके संस्कार  है ये एक भव का नहीं अनेक भवों का सुर है।एक बात विचारने योग्य है कि कोई भी साधु या सन्यासी, साधु या सन्यासी के रूप में जन्म नहीं लेता है। एक संसारी के रूप में जन्म लेता है। किसी माता पिता का पुत्र बनकर जन्म लेता है। पुत्र के जन्म के साथही मां बाप के मन में अनेक आशाएं घर कर जाती है। मेरा पुत्र बड़ा होगा मेरी सेवा करेगा, व्यापार करेगा तो मैं निवृत्त हो जाऊंगा इस प्रकार की बातें हरेक मां बाप के मन में चलती है इसीलिए मृगावती अपने पुत्र को संयम की परमीशन देने को तैयार नहीं होती है।मृगावती अपने पुत्र को कहती है बेटा! तेरा शरीर कोमल है तुं किस प्रकार से कष्टों को सहन करेगा? मृगापुत्र मां की किसी बात को मानने को तैयार नहीं। वह तो अपने विचारों में दृढ़ है। आखिर मां बाप उसे संयम की अनुमति देते है मृगापुत्र संयम लेकर अच्छी तरह से पालन करके मुक्ति को पाता है। पूज्यश्री फरमाते है हरेक मां बाप को इस अध्ययन का अभ्यास करना चाहिए। बस आप भी अपने पुत्र को कभी अंतराय न करके संयम की अनुमति देकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।