हृदयनारायण दीक्षित
जीवनशैली जड़ नहीं होती। इस पर वैज्ञानिक शोध, संस्कृति व दर्शन के प्रभाव पड़ते रहते हैं। युद्ध और दीर्घकालिक सत्ता भी जीवनशैली पर प्रभाव डालते हैं। महामारियों के प्रभाव भी व्यापक होते हैं। दार्शनिक दृष्टिकोण वाले चीन की जीवनशैली पर कम्युनिस्ट सत्ता का बुरा प्रभाव पड़ा है। भारत की जीवनशैली पर मुगल सत्ता का भी गहरा असर पड़ा। स्वाधीनता आंदोलन ने भारत की जीवनपद्धति, कला-साहित्य और रहन-सहन को भी राष्ट्रवादी बनाया था। भारत की जीवनशैली गतिशील और परिवर्तनशील है। इस जीवनपद्धति में गजब की आत्म रूपांतरण शक्ति है। प्लेग, फ्लू जैसी विश्वव्यापी महामारियों से जूझते हुए भारत ने विषम परिस्थितियों का धैर्यपूर्वक सामना किया। अकाल की परिस्थिति भी भयानक थी, लेकिन भारत के लोगों ने धीरज नहीं खोया। संप्रति कोविड-19 की जानलेवा चुनौती है। हम अपने 2.38 लाख से ज्यादा लोगों को खो चुके हैं। अस्पतालों में बेड नहीं। आक्सीजन आपूर्ति तंग है। जरूरी दवाओं की किल्लत है। सरकारें युद्धरत हैं, लेकिन हम सारी जिम्मेदारी सरकार पर डालकर अपने नागरिक कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ सकते। भयावह परिस्थिति का सामना जीवनशैली में बदलाव लाकर ही संभव है।
भारत में कोरोना का हमला जनवरी 2020 में हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्काल सक्रियता दिखाई। उन्होंने लॉकडाउन किया। जनजागरण के हरसंभव प्रयास किए गए। कोरोना से थोड़ी राहत मिली। संयम टूटा। यह संयम जीवनशैली का भाग नहीं था। अन्यथा ऐसी क्षति न होती। दूसरी लहर पहले से ज्यादा प्राणलेवा है। केंद्र पूरी ताकत के साथ जूझ रहा है। वैक्सीन का बड़ी मात्रा में उत्पादन होने लगा। शनिवार को ही रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन द्वारा पेश की गई एक दवा उम्मीद की नई किरण बनकर उभरी है। यहां दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चल रहा है। आक्सीजन आपूर्ति के तमाम उपाय जारी हैं। भारत का स्वास्थ्य ढांचा पहले से ही बहुत कमजोर है। भारत में प्रति 10 हजार व्यक्तियों पर अनुमानित 8.6 चिकित्सक हैं। प्रति 10 हजार पर लगभग 6 बेड हैं। वेंटिलेटर वाले बेड तो और भी कम हैं। स्पष्ट है कि पूर्ववर्ती सरकारों ने जनस्वास्थ्य की घोर उपेक्षा की।
जीवनशैली में यथापरिस्थिति परिवर्तन भारत की प्रकृति है। शीत ऋतु आती है। हम परिधान बदल लेते हैं। गर्मी में लू के थपेड़ों से बचने के लिए घर से जरूरी काम के लिए ही निकलते हैं। वर्षा में भी घर को वरीयता देते हैं। परिस्थिति के अनुसार सार्वजनिक कार्यक्रम करते हैं। कोहरे के समय रात्रि में आवाजाही घट जाती है। भोजन भी ऋतु और परिस्थिति के अनुसार बदलते हैं। जीवनशैली में बदलाव के लिए कोई सरकारी आदेश जारी नहीं होते। सभी मनुष्य प्रकृति और परिस्थिति के अनुसार जीवन शैली में परिवर्तन लाते हैं। कोरोना से बचाव के लिए शारीरिक दूरी अपेक्षित थी। शिष्टाचार में हाथ मिलाने से भी बचने का आग्रह किया गया। भारतीय जीवनशैली में इसका विकल्प नमस्कार है। सभी संक्रामक रोगों में दूरी बनाए रखने के फायदे हैं। मास्क लगाने पर लगातार बल दिया जा रहा है। अपनी और अपनों की सुरक्षा के लिए इनका अनुपालन जरूरी है। अनेक लोगों ने कोरोना प्रोटोकॉल को जीवनशैली का हिस्सा बनाया है तो तमाम ऐसे भी रहे जो असाधारण परिणाम देने वाले इन साधारण उपायों को भी नहीं स्वीकार करते। पुलिस जीवनशैली नहीं बदल सकती। इसके लिए स्वयं का प्रयास ही फलदायी है।
कोरोना पर अनेक शोध हो रहे हैं। वे उपयोगी हैं। मानवता की आशा हैं, लेकिन आमजनों को भयाक्रांत भी करते हैं। देश के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार विजय राघवन ने गत बुधवार को चेताया था कि कोरोना की तीसरी लहर का आना तय है। हालांकि अगले ही दिन उन्होंने कहा कि आवश्यक उपाय कर उसे टाला भी जा सकता है। यानी हमें इस महामारी से अनिश्चितकाल तक जूझना पड़ सकता है। ऐसे में जीवनशैली में बदलाव अपरिहार्य हो गया है। कोरोना बचाव के नियमों को जीवन अनुशासन का भाग बनाना होगा। इनका स्वत: स्फूर्त अनुपालन दूसरों के लिए प्रेरक भी बनेगा। कोरोना से उपजे भय से मुक्ति के लिए नकारात्मक विचारों की जगह आस्तिक भावना की वृद्धि सनातन भारतीय जीवनशैली है। जीवनशैली किसी भी समाज की मुख्य प्रेरणा है। कोरोना की परिस्थिति और चुनौती के अनुसार जीवनशैली में परिवर्तन हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है। यह परिवर्तन दिखाई भी पडऩा चाहिए।
भारत उत्सव प्रिय देश है। उत्सवों पर भारी भीड़ जुटती है। ऐसी भीड़ कोरोना अनुशासन को तार-तार करती है। पूर्वजों ने गहन अध्ययन के बाद ही उत्सवों और तीर्थाटन की रचना की थी। तब परिस्थितियां भिन्न थीं। अब परिस्थितियां भिन्न हैं। हम सबको भी उसी सजगता के साथ भीड़ न जुडऩे की जीवनशैली का विस्तार करना चाहिए। यह कोई बड़ा काम नहीं है, लेकिन इस संकल्प से प्राण रक्षा है। लखनऊ में मुस्लिम विद्वानों ने ईद पर पांच लोगों को ही मस्जिद में नमाज पढऩे का निर्देश दिया है। यह स्वागतयोग्य है। सरकारों ने विवाह समारोहों में भी उपस्थिति घटाई है, लेकिन राजनीतिक कार्यक्रमों और प्रदर्शनों में जुटने वाली भीड़ निराशाजनक है। दलों ने आत्म-अनुशासन विकसित नहीं किया। परंपरागत भारतीय जीवनशैली स्वास्थ्य केंद्रित है। महामारी ने वैसे भी जीवनशैली को काफी कुछ बदल दिया है, लेकिन यह बदलाव भय आधारित है। हम सबको स्वयं जरूरी बदलाव करने चाहिए। आपदा बड़ी है। सबने अपने मित्र और आत्मीय खोए हैं और अनेकों ने परिजन भी। राष्ट्रीय संकट की घड़ी है, लेकिन कथित उदारवादियों के लिए यह केंद्र की आलोचना का मुफीद मौका है। वे प्रधानमंत्री को ही मुख्य अभियुक्त सिद्ध करने पर आमादा हैं। मोदी विरोधी दलतंत्र भी इसी रास्ते पर है। ऐसा रवैया दुखद है। आपदा में मतभेद भुलाकर सबको एकजुट होना चाहिए। दुर्भाग्य से ऐसे लोग जीवनशैली के भारतीय स्वरूप एवं संस्कृति के विरोधी है। संकट के समय सारे मतभेद भुलाकर मिल-जुलकर ही इस आपदा से लडऩा चाहिए। वे इतने भर से ही देश का बहुत भला कर सकते हैं। अनेक गैर-राजनीतिक संगठन व उद्यमी इस संकट में लगातार सहायता कर रहे हैं। आपदा में सहायता भारतीय जीवन शैली का अंग है। यह आपदा जानलेवा है तो भी चिकित्सक और पुलिस बल के लोग जिंदगी की परवाह न करते हुए युद्धरत हैं। जीवनशैली में बदलाव भारत के प्रत्येक जन का कर्तव्य है।
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