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अहमदाबाद। यह उत्तराध्ययन सूत्र वैराग्य की महान सरिता रूप तथा त्याग की महान प्रतिष्ठा रूप है। महापुरुषों की बात सिर्फ जीभ से नहीं, कंठ से नहीं, नाभि से नहीं मगर ह्रदय से निकलती है। तभी उनकी बात हमारे ह्रदय को जल्दी स्पर्श कर जाती है। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है आपको संस्कृत-प्राकृत-अर्ध मागधी भाषा न आए मगर सूत्र के शब्दों वे मंत्र स्वरूप है मंत्र अपना कार्य किए बिना नहीं रहता है। आपने अपने हाथ में हीरे की अंगूठी पहन रखी है, मगर आपको उसका मूल्य पता नहीं है अचानक किसी ने आपकी अंगूठी का मूल्य बताया। आपको हीरे का मूल्य अब पता चलता है तो आप उस अंगूठी को अच्छी तरह से संभालकर रखोंगे बस इसी तरह सूत्र के अर्थ आप नहीं जानते हो लेकिन सूत्र के भावों जब आपको स्पर्श कर जाते है तब आपको सूत्र के मूल्य की जान हो जाती है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है उत्तराध्ययन सूत्र के एक एक शब्द पर विचार करेंगे तो जिंदगी छोटी पड़ेगी। हमें तो इस छोटी सी जिंदगी में इसका आस्वाद लेना है। इस अध्ययन का नाम समुद्रपालीय है। आपके मन में एक प्रश्न जरूर आएगा कि समुद्र नाम क्यों आया? बात ऐसी है कि संसार में अनेक घटना बनती है जो नाम के साथ जुड़ जाती है। किसी प्रसंग से एक व्यापारी को समुद्र में प्रवास करना पड़ा। उस व्यापारी की पत्नी गर्भवती थी अचानक इस मुसाफिरी के दौरान ही व्यापारी की पत्नी ने जहाज में ही पुत्र को जन्म दिया। कहते है पूर्व के काल में प्रसूति के समय स्त्रीयां स्वस्थ रहती थी उन्हें किसी भी प्रकार की पीड़ा नहीं होती है नोर्मल डीलेश्वरी में मां और बच्चा दोनों ही स्वस्थ रहते थे। अब तो डॉक्टर सीधा ऑपरेशन के लिए आग्रह रखते है।समुद्र में जन्म हुआ इसलिए उस बच्चे का नाम समुद्रापल रखा गया। व्यापारी सोचता है मेरे पास समृद्धि है।
एक बार समुद्रपाल विचार करता है इस दुनिया का स्वरूप ऐसा क्यों है? कि एक व्यक्ति जिस प्रकार चलता है उस प्रकार से दूसरा भी उस भेंड की तरह चलता है। पूरा संसार ही इस ब्रेंड की तरह चलता है। संसार के भोग सुखों में आनंद है ऐसा एक तरह चलता है। संसार के भोग सुखों में आनंद है ऐसा एक व्यक्ति की मान्यता होती है जिसे देखकर दूसरा भी उसी के पीछे चलकर सुख के साधनों को बढ़ाता जा रहा है।
भौतिकवाद बढ़ा। लोक बिना विचार किए चलते है। समुद्रपाल सोचता है विश्व का संचालन किस तरह होता है? मेरे स्वयं का संचालन भी कौन करता है इस तरह का चिंतन उसके मन में चल रहे है। पूज्यश्री फरमाते है कितने लोग अंतर के विचार एवं भावना पर चिंतन करके अपना जीवन जीते है। जब तक सही चीज का ख्याल नहीं आता तब तक हमारा भटकना चालु ही रहेगा। बहुत कम लोग अपनी स्फुरणा के मुताबिक शांति से चलते है बाकी के लोग तो भेंड की तरह एक दूरे के पीछे चलते है।
समुद्रपाल झरोखे में खड़ा मार्ग को निहाल रहा है अचानक उसकी दृष्टि एक भयंकर अपराधी को सजधज कर वध भूमि की ओर ले जा रहे थे उस पर पड़ी। कितने लोग उस व्यक्ति पर पत्थर फेंक रहे थे तो कितने उसे धिक्कार रहे थे। कोई उस व्यक्ति की बात सुनने को तैयार नहीं थे। सब एक ही बात कह रहे थे ये चोर है, बदमाश है इसे खत्म कर दो। हरेक को अपने दोष नहीं दिखते, दूसरों के दोष पहले दिखते है।
पूज्यश्री फरमाते है लोग जितने चोरी करते है हरेक नहीं पकड़ाते कर्मोदय के कारण लोग पकड़ में आते है और सजा लोग देते है। कहते है दुनिया की किसी भी व्यक्ति की ताकात नहीं कि वे हमारा खराब करें सके। हमारा पुण्य अच्छा होगा तो बूरा भी अच्छा हो जाएगा।
समुद्रपाल को विचार आता है मुझे इस दु:कमय संसार से पार पाना है और वहीं उन्हें जाति स्मरण ज्ञान हुआ। और संसार के प्रति उका मन संवेग एवं वैराग्य से भर गया अब साधु का संग करके अतिचार की शुद्धि करके संयम ग्रहण करूं। माता पिता की अनुमति लेकर दीक्षा ली। कभी भी व्यक्ति को यदि निमित्त मिल जाए तो जीवन के रंग का ढंग ही बदल जाता है। समुद्रपाल के जीवन में भी चोर निमित्त मिला और उसका जीवन ही बदल गया श्रावक से मुनि बन गया।
पूज्यश्री फरमाते है संसार का सुख क्षणिक है हरेक को अपने कर्मो का फल भुगतना ही पड़ेगा जैसा करोंगे वैसा पाओंगे। बस, गृहस्थ जीवन में रहकर कर्म से कैसे बच सके इसकी जान गुरूओं से मिलाकर शीघ्र आत्मा के परमात्मा बनें।