अहमदाबाद। दुनिया का हरेक जीव अपने-अपने कार्य के मुताबिक गति को प्राप्त करता है। प्रमाद आलस करने वाला निर्यंच गति को पाता है तो सुकृत-परोपकार आदि करने वाला मनु्ष्यपर होता है मगर पुण्य की बात है कि मनुष्य मेहनत एवं पुरूषार्थ से रोज रोटी मिलाता है और पशु लाचार है उसे तो इधर-उधर भटककर ही अन्न का दाणा मिलता है कोई ऐसे पुण्यशाली भी होते है कि जिनका पालन बड़े-बड़े घराणे में होता है। मानव और पशुओं का जन्म एक ही धरती पर होता है। मानव और पशुओं का जन्म एक ही धरती पर होता है फिर भी मानव स्वतंत्रता से अपना जीवन जीना है और पशु मानव के बंधन में रहकर अपनी जिंदगी पूरी करता है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है अंग्रेजी में कहावत है ्ररुरु रुद्ब1द्बठ्ठद्द क्चद्गद्बठ्ठद्दह्य ॥ड्ड1द्ग ड्डह्म्द्बद्दद्धह्ल ह्लश द्यद्बठ्ठद्ग पशुओं को भी इस धरती पर स्वतंत्रता से जीने का अधिकार है मगर मानव उसे जीने नहीं देती है। उसी पशुों का भोज बनाकर खाती है। आज का मानव बड़ी, कूरता से अपने पेट के लिए पशुओं को मारकर उसका भक्षण करता है मानव में दया-करूणा नाम की चीज ही नहीं।
पूज्यश्री फरमाते है आप को जरा सी ठोकर लगती है कितनी वेदना होनी है। जरा सा कांटा भी लग जाए तो उसका दर्द सहनकरने में समर्थ नहीं होते और एक निर्दोष प्राणी की हत्या करते मन में जरा सी भी पीड़ा नहीं होती? जिस तरह आपको अपना जीवन प्यारा है उसी तरह पुशओं को भी अपना जीवन प्यारा होता है मगर वें अबोल प्राणी अपनी व्यथा प्रकट नहीं कर सकते है इसी कारण मानवी गेरफायदा, उठाकर पशुओं की क्रूरता पूर्वक हत्या करता है। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है महापुरूषों के जीवन चरित्र को पढ़ो नेमिनाथ भगवान ने प्राणीओं पर दया करके ही अपना विवाद को रोक लिया और संयम जीवन को अपनाया। आज का अध्ययन रथनेमीय अध्ययन है।
प्रस्तुत उत्तराध्ययन सूत्र एक महान इतिहास को बताता है यह सूत्र एक महान प्रेरणा का स्त्रोत है तथा मानव के मन को वैराग्य से भर द ेऐसा सूत्र है। विरागी नेम शादी के लिए तैयार नहीं होते है बड़ी मुश्किल से भाभीयों के मननो पर नेमजी राजुल के साथ विवाह करने को तैयार हुए। नेमजी की रथयात्रा उग्रसेन राजा के दरबार तक पहोंची है। राजुल-नेम से शादी करने के लिए उतावली बनी हुई नेम की राह देख रही है। इस ओर वार्डों एवं पिंजरों में अवरूद्ध पशु-पक्षियों का करुण क्रन्दन सुनाई दे रहा है।
कहते है पूर्व के काल में एक विचित्र क्रुप्रथा चलती थी। शादी में आए हुए मेहमानों को मांस का भोजन पीरसा जाता था। इन पशुओं की करुण आवाज को सुनकर नेमजी ने अपने सारथी से पूछा, ये पशु इतना, क्रन्दन क्यों कर रहे है तब सारथी ने बताया स्वामि! आपके विवाह के उपलक्ष्य में जितने भी मेहमान आए है उन सभी को अग्रसेन राजा की तरफ से इन पशुओं को मारकर उसका मांस भोज के रूप में दिया जाएगा।
नेमजी ने सोचा, किसी का अपमंगल करके शादी का सुख क्यों मिलाना? यह सोचकर विरक्त बनकर गिरनार पर्वत पर जाकर प्रभु ने दीक्षा ले ली। इस ओर जब राजुल को समाचार मिले कि प्रभु वापिस लौट गए है और दीक्षा ले ली है। राजुल ने भी प्रभु के मार्ग को अपनाने का निर्णय लिया।
एक बार राजुल साध्वी समुदाय के साथ रैवतक पर्वत पर भगवान नेमि को वंदन करने के लिए जा रही थी। अचानक जोर से बारिस हुई और राजुल साध्वी अपकाय जीवों की विराधना करने से बचने के लिए किसी गुफा में गई। इत्तफाक से उसी गुफ में रहनेमि काउसग्ग ध्यान में खड़े थे। साध्वी अपने वस्त्रों को सूखा रही थी रहनेमि ने मौका देकर राजुल से भोग की प्रार्थना की। राजुल ने समझाया, मैं तो आपके भाई की परित्यक्ता हूं
जिस प्रकार एक बार किसी ने उल्टी की हो दुबारा उस उल्टी को नहीं पीया जाता इसी तरह आप भी मुझे स्वीकार करने से भूल जाए और अपने मार्ग पर अडग रहे। कहते है जिस तरह लोग प्रभु की वाणी सुनकर प्रतिबोध पाते है इसी तरह राजुल की बात का असर रहनेमि पर पड़ा है। कभी भी किसी भी व्यक्ति पर तिरस्कार नहीं करना चाहिए। यदि वह व्यक्ति अपने मार्ग को भूल गया हो तो उसे सही दिशा दिखाकर फिर से उसे मार्ग पर लाना चाहिए।
रहनेमि प्रतिबोध पाकर दृष्कृत की गर्हा करके मोक्ष में गए। परमात्मा ने महान जीवन दया का डंका बजाया इसी तरह आप लोगों को भी ख्याल रखना है शादी अथवा किसी भी प्रसंग में रात्रि भोजन न हो इसका ख्याल रखना। साधु एवं समझदार श्रावक इस चीज का खास आंदोलन चला रहो है। पूज्यश्री फरमाते है आप सभी का सहार मिलेगा तो वे इस काम में जरूर सफलता पाएगे। रहनेमि अध्ययन हमें एक संदेश देता है कि कभी भी पतन हो तो पुनरूत्थान करो। उत्थान से ज्यादा पुनरूत्थान की कीमत है, महत्ता है। कर्म भलभले को नचाता है अच्छे को कभी उल्टे मार्ग में ले जाता है। पूज्यश्री फरमाते है मन से यदि पतन हुआ वह क्षणिक बार टिकेगा उसे सुधारा जा सकता है लेकिन यदि पतन तन से हुआ तो उसे सुधारना खूब मुश्किल है। शास्त्र का कहना है उत्तराध्ययन सूत्र सुनकर जीवन में आपसे कभी कुछ भूल हुई हो तो प्रायच्छित करके तन एवं मन को पवित्र एवं शुद्ध बनाकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।
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