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विनीता श्रीवास्तव
आज अधिकांश कोरोना संक्रमितों के इलाज में मेडिकल आक्सीजन की महत्वपूर्ण भूमिका सामने आई है। कोरोना संक्रमण में सांस की नली से वायु फेफड़ों तक पहुंचती तो है, पर आगे प्राणवायु बन कर शरीर में संचारित नहीं हो पाती। ऐसे में आक्सीजन सिलेंडर की मदद से सांस लेकर लगभग दो सप्ताह तक इस भीषण संक्रमण से लड़ा जा सकता है, जिसके पश्चात फेफड़े फिर से सामान्य तरीके से सांस लेने के काबिल हो जाते हैं।
देश की समग्र स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराने लगी: आमतौर पर मेडिकल आक्सीजन के माध्यम से सांस को सुचारु तरीके से संचालित रखने की व्यवस्था अस्पताल में गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति के लिए या फिर किसी शल्यक्रिया (ऑपरेशन) के समय काम आती है। बड़े से बड़े अस्पतालों में भी मेडिकल आक्सीजन की सीमित व्यवस्था ही होती है। इसके लिए या तो प्लांट लगा दिया जाता है, या फिर किसी स्रोत से टैंकर द्वारा नियमित रूप से मेडिकल आक्सीजन की खरीद होती है। आज जब हर बेड पर आक्सीजन सिलेंडर और हर आइसीयू में वेंटिलेटर जरूरी हो गया, तो स्वाभाविक रूप से देश की समग्र स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराने लगी। कहीं सिलेंडर खत्म, तो कहीं टैंकर की कमी, या फिर अस्पतालों में बनाए गए आक्सीजन टैंक खाली! 
आक्सीजन एक्सप्रेस रेलगाडिय़ां: ऐसे में भारतीय रेल ने आक्सीजन की परिवहन व्यवस्था को संभव बनाया। आक्सीजन एक्सप्रेस रेलगाडिय़ां केंद्र सरकार एवं राज्यों के बीच तालमेल से चल रही हैं, जो आज कोरोना मरीजों के लिए जीवनदायिनी बन गई हैं। 19 अप्रैल से नौ मई 2021 तक भारतीय रेल ने 268 आक्सीजन से भरे टैंकर विभिन्न राज्यों तक पहुंची है। भारतीय रेल में पहली बार आक्सीजन के टैंकरों को कंटेनर में रखकर, ट्रेलर पर सेट किया गया। इसे कार्य को इस प्रकार से अंजाम दिया गया, ताकि इसे कहीं भी उतारा जा सके और फिर सड़क मार्ग से कहीं भी पहुंचाया जा सके। 
आक्सीजन के टैंक को वेंट करना भी आवश्यक: सुरक्षा की दृष्टि से तरल आक्सीजन बहुत ही खतरनाक पदार्थ है। हाई प्रेशर पर तरल पदार्थ के रूप में पाइप द्वारा यह टैंक में भरा जाता है। सुरक्षा से संबंधित सभी पहलुओं का आक्सीजन एक्सप्रेस रेलगाडिय़ों में खास ध्यान रखा गया है। कई नए प्रयोग भी इस्तेमाल में लाने पड़े हैं। पहले ट्रेलर के पहियों की हवा को नियंत्रित किया जाता था, ताकि ट्रेलर के ऊंचे हिस्से सुरंग, मास्ट इत्यादि से टकराए नहीं। आक्सीजन के टैंक को वेंट करना भी जगह जगह पर आवश्यक है, ताकि अंदर हवा का दबाव अत्याधिक नहीं बढ़े। ज्वलनशीलता की दृष्टि से आक्सीजन की ढुलाई में कई चेतावनी है जिनका पालन करना पड़ता है।
भारतीय रेल और उद्योग जगत के साझा प्रयास: आक्सीजन स्पेशल ट्रेन चलाने का प्रयोग सबसे पहले देश के पूर्वी इलाकों में किया गया और पहली बार उत्तर मध्य रेलवे द्वारा यह सेवा प्रारंभ की गई। प्रत्येक रेलवे जोन स्तर पर केंद्रीय निगरानी के माध्यम से आक्सीजन स्पेशल ट्रेन हजारों किलोमीटर की दूरी तय करके अपने अपने गंतव्य तक पहुंच रही हैं। इस प्रकार इंडस्ट्रियल आक्सीजन के बड़े बड़े स्रोत जैसे कि विशाखापट्टनम, बोकारो और जामनगर की फैक्ट्री से आक्सीजन को देश के कई शहरों तक बड़ी मात्रा में पहुंचा पाना संभव हो रहा है। सड़क मार्ग के मुकाबले आक्सीजन एक्सप्रेस अधिक गतिशील है। शायद यह पहली बार है जब सैन्य आपातकाल को यदि छोड़ दें तो किसी मालगाड़ी को राजधानी एक्सप्रेस जैसी ट्रेन से भी ज्यादा प्राथमिकता दी जा रही है। भारतीय रेल और उद्योग जगत के साझा प्रयास से आक्सीजन एक्सप्रेस का परिचालन संभव हुआ है। हर यात्रा के लिए आक्सीजन बनाने वाली इंडस्ट्रियल फैक्ट्री संबंधित टैंकर के एक ड्राइवर को भी इस ट्रेन के साथ जाने की अनुमति दी जाती है, क्योंकि इस टैंकर के ड्राइवर को रेलगाड़ी के ड्राइवर और गार्ड से तालमेल बनाकर रखना पड़ता है। यात्रा के दौरान इनके बीच आवश्यक संवाद बना रहता है जिससे निर्धारित गंतव्य तक टैंकर सुगमता से पहुंच सके। 
भारतीय रेल की धरोहर: अंग्रेज शासित भारत में रेल मार्ग का उपयोग मुख्य रूप से मिलिट्री और शासकीय प्रबंधन के काम में लाया जाता था। फिर आजाद भारत में बंटवारे के दौरान भारतीय रेल ने दुखभरे दिन भी देखे, जब भारत और पाकिस्तान में हिंसा का दौर आरंभ हुआ। लेकिन देखते ही देखते भारतीय रेल बहुत आगे निकल गई और इसके माध्यम से अनगिनत वस्तुओं की आर्पूित देश के कोने कोने में सुनिश्चित की जाने लगी। वास्तव में भारतीय रेल आज एक नई धरोहर का निर्माण कर रही है। आक्सीजन एक्सप्रेस चलाकर राष्ट्र सेवा और मानवीयता के नए आयाम स्थापित कर रही है। 
उल्लेखनीय यह भी है कि भारतीय रेल की कल्याणकारी भूमिका एक बार फिर से उभर कर सामने आई है। आजादी के बाद भारतीय रेल की ओर से की गई अनेक कल्याणकारी पहल के तहत आपदा में राहत कार्य, अर्थव्यवस्था में योगदान और सबसे महत्वपूर्ण समूचे देश को एकसूत्र में पिरोने में अहम भूमिका निभाई है। प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से भारतीय रेल की पटरी और स्टेशन सभी को आपस में जोड़ते हैं। पिछली सदी के आखिरी दशक में ओडिशा समेत बंगाल की खाड़ी के एक बड़े इलाके में महाविनाशकारी चक्रवात ने हाहाकार मचाया था। राहत कार्यों को तेज करने के लिए भारतीय रेल की पटरी, स्टेशन, ट्रैक, डिपो आदि की तेजी से मरम्मत करते हुए ट्रेनों के संचालन को सुनिश्चित किया गया और उसके जरिये वस्तुओं की आवाजाही को तत्काल संभव बनाया गया। इसके अलावा, अन्य कई आपदा के अवसर पर भारतीय रेल की कल्याणकारी भूमिका सामने आई है। समग्रता में देखा जाए तो भारतीय रेल नेटवर्क पहले से ही देश की प्राणवायु के संचार के रूप में सर्मिपत है।