प्रह्लाद सबनानी
चारों तिमाहियों में कृषि क्षेत्र एवं मछली पालन इत्यादि क्षेत्रों में विकास दर सकारात्मक रही है। यह प्रथम तिमाही में 3.3 प्रतिशत, द्वितीय तिमाही में 3.0 प्रतिशत, तृतीय तिमाही में 3.9 प्रतिशत एवं चतुर्थ तिमाही में 1.9 प्रतिशत रही थी।
भारत में मौसम सम्बंधी विभिन्न संस्थानों द्वारा वर्ष 2021 में मानसून के सामान्य से कुछ अधिक बने रहने की उम्मीद जताई गई है। देश के ज़्यादातर भागों में सामान्य से अधिक बारिश होने की सम्भावना व्यक्त की गई है। देश में कृषि क्षेत्र के लिए यह एक शुभ संकेत है। बाकी क्षेत्रों (सेवा एवं उद्योग) पर कोविड महामारी का लगातार विपरीत असर पड़ रहा है। पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष भी कृषि क्षेत्र ही देश के आर्थिक विकास को गति देने में अपनी अग्रणी भूमिका निभाता नजर आ रहा है। पिछले वर्ष भी केवल कृषि क्षेत्र में ही वृद्धि दर्ज की गई थी। जबकि देश के सकल घरेलू उत्पाद में ऋणात्मक वृद्धि दर्ज हुई थी। दरअसल, केंद्र सरकार की कृषि नीति सम्बंधी उपायों का असर अब देश के कृषि विकास पर स्पष्ट रूप से देखने में आ रहा है।
वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान चारों तिमाहियों में कृषि क्षेत्र एवं मछली पालन इत्यादि क्षेत्रों में विकास दर सकारात्मक रही है। यह प्रथम तिमाही में 3.3 प्रतिशत, द्वितीय तिमाही में 3.0 प्रतिशत, तृतीय तिमाही में 3.9 प्रतिशत एवं चतुर्थ तिमाही में 1.9 प्रतिशत रही थी। सकल मूल्य योग (ग्रोस वैल्यू एडिशन- विकास का आकलन करने के लिए सकल घरेलू उत्पाद की तरह का एक पैमाना) में कृषि क्षेत्र का योगदान वर्ष 2015-16 में 17.7 प्रतिशत, 2016-17 में 18 प्रतिशत, 2018-19 में 18 प्रतिशत, 2018-19 में 17.1 प्रतिशत एवं 2019-20 में 17.8 प्रतिशत रहा है, वह 2020-21 में बढ़कर 18 प्रतिशत से कहीं अधिक रहने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।
अनाज के उत्पादन में भी लगातार वृद्धि दृष्टिगोचर हो रही है। अनाज का उत्पादन वर्ष 2017-18 में 28.5 करोड़ टन एवं 2018-19 में 28.52 करोड़ टन था जो वर्ष 2019-20 में बढ़कर 29.66 करोड़ टन हो गया। गेहूं और चावल के उत्पादन में भी लगातार बढ़त देखने को मिली है। गेहूं का उत्पादन वर्ष 2017-18 में 9.99 करोड़ टन, 2018-19 में 10.36 करोड़ टन एवं 2019-20 में बढ़कर 10.76 करोड़ टन का हो गया है। वहीं चावल का उत्पादन भी वर्ष 2017-18 में 11.28 करोड़ टन, 2018-19 में 11.65 करोड़ टन एवं 2019-20 में बढ़कर 11.84 करोड़ टन का हो गया है।
मौसम सम्बंधी संस्थानों के अनुमानों के अनुसार इस वर्ष केवल जम्मू एवं कश्मीर, उत्तर-पूर्व का कुछ भाग, हरियाणा, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे कुछ इलाकों में सामान्य से कुछ कम बारिश हो सकती है। मानसून सम्बंधी इन मिले जुले पूर्वानुमानों का देश की अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से कृषि क्षेत्र पर कोई बुरा प्रभाव पडऩे की सम्भावना नहीं के बराबर ही है, क्योंकि उक्त वर्णित क्षेत्रों जहां मानसून की तुलनात्मक रूप से कम वर्षा होने का अनुमान लगाया गया है। इन क्षेत्रों में खरीफ मौसम की मुख्य फसल धान की पैदावार कम ही होती है। हां, इन इलाकों में मानसून के कमजोर रहने के कारण कृषि क्षेत्र की गतिविधियों में कमी आने से मजदूरों के लिए बेरोजगारी में वृद्धि देखने में आ सकती है। परंतु, मनरेगा योजना के अंतर्गत रोजगार के अधिक अवसर निर्मित कर इन क्षेत्रों में बेरोजगारी सम्बंधी परेशानी को कम किया जा सकता है।
देश के अन्य भागों में यदि मानसून की बारिश अनुमान के अनुसार अच्छी रहती है तो बारिश का समग्र कृषि क्षेत्र पर भी अच्छा असर देखने में आ सकता है, किसानों की आय बढ़ सकती है। यह देश के लिए राहत भारी खबर हो सकती है वह भी ऐसे माहौल में जब कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने पूरे देश को अपनी चपेट में ले लिया है एवं जिसके चलते सेवा एवं उद्योग के क्षेत्र पहले से ही दबाव में है।
खरीफ मौसम में फसल की पैदावार में, धान की पैदावार में, वृद्धि देखने को मिलेगी। लगभग 15.4 करोड़ टन की पैदावार खरीफ मौसम की फसल से हो सकती है जो वर्ष भर में होने वाले अनुमानित 30.3 करोड़ टन पैदावार का 50 प्रतिशत से कुछ अधिक ही है। जून माह में खरीफ का मौसम शुरू होता है। इसके साथ ही यदि पानी का अच्छा संग्रहण करने में सफलता हासिल कर ली जाती है तो रबी मौसम की फसल के स्तर में भी अच्छी वृद्धि होने की सम्भावनाएं बढ़ जाएंगीं। केंद्र सरकार द्वारा ग्रामीण इलाकों में स्वच्छ जल पहुंचाने एवं पानी के संग्रहण के लिए जल शक्ति अभियान की शुरुआत दिनांक 1 जुलाई 2019 से की जा चुकी है। यह अभियान देश में स्वच्छ भारत अभियान की तर्ज पर जन भागीदारी के साथ चलाया जा रहा है।
देश में प्रति वर्ष पानी के कुल उपयोग का 89 प्रतिशत हिस्सा कृषि की सिंचाई के लिए खर्च होता है, 9 प्रतिशत हिस्सा घरेलू कामों में खर्च होता है तथा शेष 2 प्रतिशत हिस्सा उद्योगों द्वारा खर्च किया जाता है। इस लिहाज से देश के ग्रामीण इलाकों में पानी के संचय की आज आवश्यकता अधिक है। क्योंकि ग्रामीण इलाकों में हमारी माताएं एवं बहनें तो कई इलाकों में 2-3 किलोमीटर पैदल चल कर केवल एक घड़ा भर पानी लाती देखी जाती हैं। अत: खेत में उपयोग होने हेतु पानी का संचय खेत में ही किया जाना चाहिए एवं गांव में उपयोग होने हेतु पानी का संचय गांव में ही किया जाना चाहिए। केंद्र सरकार द्वारा एवं स्थानीय स्तर पर आवश्यकता अनुरूप कई कार्यक्रमों को लागू कर इन जिलों के भूजल स्तर में वृद्धि करने हेतु विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। पानी के संचय हेतु विभिन्न संरचनाएं यथा तालाब, चेकडेम, रोबियन स्ट्रक्चर, स्टॉप डेम, पेरकोलेशन टैंक जमीन के ऊपर या नीचे बड़ी मात्रा में, जल शक्ति अभियान के अंतर्गत भी बनाए जा रहे हैं। इसी कारण से यह उम्मीद की जा रही है कि इस वर्ष रबी की फसल भी अच्छी मात्रा में हो सकती है।
देश में बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए केंद्र सरकार लगातार काम कर रही है। जिसके चलते आज यातायात की मजबूत चेन देश में उपलब्ध हो गई है। अत: देश के किसी भी क्षेत्र में यदि मानसून के कमजोर होने से अनाज की पैदावार कम होती है तो एक स्थान से दूसरे स्थान पर खाद्य पदार्थों को आसानी से पहुंचाया जा सकता है। इसके साथ ही सप्लाई चेन भी यदि ठीक काम करती है, जैसा कि कोरोना महामारी के पहिले दौर के दौरान सप्लाई चैन मजबूत बनी रही थी, ऐसी स्थिति में खाद्य पदार्थों की कीमतों के बढऩे की कम सम्भावना रहेगी। केंद्र एवं राज्य सरकारों के संयुक्त प्रयासों से देश में आजकल कृषि क्षेत्र में यंत्रीकरण भी तेजी से बढ़ रहा है। अत: श्रम पर निर्भरता लगातार कम हो रही है। ट्रैक्टर, हार्वेस्टर जैसे संयत्रों का उपयोग तो अब छोटे एवं मंझोले किसान भी करने लगे हैं। इस तरह के संयंत्र आज गांवों में उपलब्ध हैं, गांवों में मशीन बैंक बनाए गए हैं। छोटे एवं मंझोले किसान इन संयंत्रों को किराए पर लेकर कृषि कार्यों के लिए इन संयंत्रों का उपयोग अब आसानी से करने लगे है। जिसके चलते कृषि क्षेत्र में उत्पादकता में भी वृद्धि देखने में आ रही है। देश में अब ऐसे बीजों का उपयोग होने लगा है जिसमें पानी के कम उपयोग से भी अच्छी पैदावार ली जा सकती है। आज देश में आवश्यकता इस बात की है कि देश के किसान अब केवल धान एवं गेहूं की पैदावार से कुछ हटकर सोचें। बागवानी एवं उद्यान कृषि (फल एवं सब्जी) की पैदावार को अब बाजार से जोडऩा आवश्यक है क्योंकि इस तरह की फसलें बहुत जल्दी खराब हो जाने वाली पैदावार हैं।
सप्लाई चेन को और भी मजबूती प्रदान करने की आज आवश्यकता है। यह हर्ष का विषय है कि आज देश में छोटे एवं मंझोले किसानों का योगदान, बड़े किसानों की तुलना में, बागवानी एवं उद्यान कृषि क्षेत्र में धीरे-धीरे बढ़ रहा है। बागवानी एवं उद्यान कृषि में सूक्ष्म सिंचाई पद्धति का उपयोग कर कृषि की पैदावार में पानी के उपयोग को कम किया जा सकता है।
मौसम सम्बंधी संस्थानों द्वारा वर्ष 2021 के लिए जारी किए गए मानसून संबंधी अनुमानों में बाद केंद्र सरकार ने देश के 661 जिलों के लिए आपात योजना बना ली है। देश के कुछ भागों में यदि मानसून की वर्षा कम होती है तो इन जिलों में उक्त योजनाओं को तुरंत लागू किया जाएगा। इन जिलों की फसलों में विविधता लाने की भी योजना है। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि देश में खरीफ के मौसम में मुख्यत: धान की फसल ली जाती है एवं वर्तमान में देश में धान का लगभग 200 लाख टन का आधिक्य है। यदि धान उगाने वाले इलाकों में मानसून की वर्षा कमजोर होती है तो ऐसी स्थिति में इन इलाकों/जिलों में धान के स्थान पर अन्य उत्पादों की फसलों, जिनमें कम पानी की आवश्यकता पड़ती है, को लिया जा सकता है। इस प्रकार यदि आवश्यकता पड़ी तो धान की फसल लेने वाले लगभग 60 लाख हेक्टर क्षेत्र को अन्य कृषि उत्पादों की फसलों में परिवर्तिति किया जा सकता है। इन फसलों में मुख्यत: सब्जियां एवं मक्का आदि जैसी फसलों को चुना गया है। इस प्रकार की योजनाएं देश के कृषि विभाग द्वारा तैयार कर ली गई है एवं जरूरत के अनुसार इन योजनाओं को उचित समय पर लागू कर लिया जाएगा।
-प्रहलाद सबनानी
सेवानिवृत उप-महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक