अली खान
हिमाचल के नेताओं में आजकल एक-दूसरे को चि_ी पत्री का दौर चल रहा है। यहां से दो राज्यसभा सांसद हैं। इनमें से एक आनंद शर्मा तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के कभी बहुत करीब हुआ करते थे, लेकिन इन दिनों वे एकांतवास में हैं। इन्हें जी-23 में भी शामिल माना जाता है। जबकि दूसरे इन दिनों दिल्ली दरबार के बेहद करीबी हैं और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। पश्चिम बंगाल में भाजपा की बुरी गत होने के बाद इन्हें कोरोना महामारी की याद हो आई और इन्होंने केंद्र सरकार के बजाए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चि_ी लिख डाली। अभी यह नहीं पता कि यह चि_ी इन्होंने खुद ही पहल कर लिखी या इन पर कोई दबाव था। ट्वीटर पर तो किसी ने चहकते हुए लिखा भी है कि अगर नड्डा ने यह चि_ी खुद ही लिखी है तो उन्हें कोप का भाजन बनना पड़ सकता है। दिलचस्प यह है कि नड्डा की ओर से सोनिया गांधी को चि_ी लिखने पर हिमाचल कांग्रेस के अध्यक्ष कुलदीप राठौर को भी गुस्सा आ गया। उन्होंने भी आनन-फानन में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को चि_ी लिख मारी। कई सवाल पूछ डाले कि हिमाचल में कोरोना का कहर चल रहा है और नड्डा ने एक बार भी अपने प्रदेश के लोगों की सुध नहीं ली। बस बंगाल में ही 200 सीटों का नारा लगाते रहे।
अब ये चि_ियां क्या गुल खिलाएंगी कुछ पता नहीं। राठौर प्रदेश से कांग्रेस के राज्यसभा सांसद आनंद शर्मा के बेहद करीबी हैं। वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे ही आनंद शर्मा की वजह से हैं। ऐसे में नड्डा की चि_ी के बदले में चि_ी लिख कर खुद को आलाकमान की नजरों में आगे की कतार में तो खड़ा कर ही दिया है। यह दूसरी बात है कि जब देश की जनता अपनी जिंदगी के लिए ऑक्सीजन की जंग लड़ रही थी तब देश के नेताओं को एक-दूसरे को चि_ी लिखने की सुध आई। इसके पहले विधानसभा चुनावों में सभी दलों की ओर से जमकर कोरोना दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया गया। सबको सिर्फ अपनी जीत की पड़ी थी। और चुनावों के बाद जनता की फिक्र हो आई तो खत भी लिख दिया। पुराने समय में एक जुमला हुआ करता था, चि_ी को तार समझना यानी जल्दी प्रतिक्रिया देना। लेकिन आज ट्वीट के जमाने में भी चि_ी वाली राजनीति की अपनी अहमियत है।
उत्तराखंड पुलिस का धेय वाक्य है, 'मित्र पुलिसÓ। उत्तराखंड पुलिस के पिछले दिनों बने नए महानिदेशक अशोक कुमार इस वाक्य के साथ कदमताल करने की कोशिश में हैं। पुलिस महानिदेशक बनने से पहले भी वे पुलिस की छवि सुधारने के लिए कई मानवीय प्रयोग करते रहते थे। भिक्षा, नई शिक्षा जैसे अभियान के तहत उन्होंने उत्तराखंड के सभी धार्मिक स्थलों में भीख मांग कर गुजारा कर रहे युवाओं और अन्य व्यक्तियों को भिक्षुक गृह में बंद करने के बजाए उन्हें पढ़ाई-लिखाई करने और स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया। उनका यह अभियान सफल भी दिख रहा। कुंभ मेले में उन्होंने इस अभियान को जमीन पर उतारा। भिक्षा मांग रहे युवकों की पहचान कर उन्हें नए कपड़े दिए और उनकी सेहत ठीक करने पर ध्यान दिया।
उन्हें हरिद्वार के बड़े होटलों में खानसामे का प्रशिक्षण दिया गया। कुंभ मेले में पुलिस की रसोइयों में उन्हें बकायदा नौकरी दी गई। इसके साथ ही पुलिस ने कोरोना मरीजों की मदद के लिए 'मिशन हौसलाÓ अभियान की शुरुआत की। उन्होंने पूरे प्रदेश में हर जिले में पुलिस के शिविर लगवाए और एंटीबॉडी जन टेस्ट करवाए। पुलिसवालों का प्लाज्मा कोरोना के जरूरतमंद मरीजों को देने का अभियान शुरू किया गया। जो मरीज घर में ऑक्सीजन की जरूरत महसूस कर रहे हैं पुलिस उन तक ऑक्सीजन पहुंचा रही है। जरूरतमंद गरीबों को घर-घर जाकर खाना भी पहुंचाया जा रहा है। अशोक कुमार ने 'खाकी में इंसानÓ नामक किताब भी लिखी है जो पुलिस के मानवीय पक्ष को सामने लाता है।
आपदा में अवसर का डर
हिमाचल में पहली बार मुख्यमंत्री बने जयराम ठाकुर इस समय कई मुश्किलों से जूझ रहे हैं। ऐसे संकट के मौके पर नौकरशाही चुपचाप बैठ गई है। प्रदेश में आधा दर्जन के करीब अतिरिक्त मुख्य सचिव हैं। जयराम ठाकुर ने इनमें से किसी को भी कोरोना से निपटने के काम में नहीं लगाया है। कोरोना से निपटने के लिए स्वास्थ्य सचिव के पद पर सचिव स्तर के अधिकारी अमिताभ अवस्थी को लगाया गया है। वह कोशिश तो कर रहे हैं लेकिन कोरोना की रफ्तार रुकने का नाम नहीं ले रही है। सरकार के एक मंत्री से किसी ने पूछा भी कि वरिष्ठ अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी को स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा क्यों नहीं दिया है। जवाब मिला कि सरकार में बहुत कुछ करना पड़ता है। कहीं मुख्यमंत्री को यह संदेह तो नहीं हो गया है कि अगर किसी अतिरिक्त मुख्य सचिव को स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा सौंप दिया जाए तो वह आपदा में अवसर ही न ढूंढ ले। यह तो जयराम ही जाने कि सच क्या है लेकिन कोरोना काल में स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा कनिष्ठ अधिकारी के हाथ में होना अच्छी सरकार का अच्छा लक्षण नहीं है।
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