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अहमदाबाद। उत्तराध्ययन सूत्र का सम्यकत्व पराक्रम अध्ययन एक महान से महान सूत्र है। मानव को जब संवेग आता है तब ऑटोमेटिकली निर्वेद आ ही जाता है। एक बात का ख्याल रखना है कि एक ओर स्व है तो दूसरी ओर पर है। स्व यानी स्वयं पर याने स्व सिवाय की पूरी दुनिया। स्व यानी अपनी स्वयं की आत्मा, पर यानी समस्त विश्व। कहते हैं कि स्व के आत्मगुणों का विकास पर से नहीं होगा। आप अपने विकास के लिए पर की अपेक्षा नहीं रख सकते हो। आपको अपना पराक्रम करना होगा। आप यदि सोचते हो कि पर से मेरा विकास हो तो ये आपका भ्रम है। कभी भी स्व का विकास पर से नहीं होता है। इस विकास के लिए आपको अपना प्रयत्न ही काम आएगा। अपेक्षा से कोई तलब नहीं।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है पर का आ क्रम याने पर का उल्लंघन करके स्वयं ही अपना विकास करें। पूज्यश्री दूसरे दृष्टांत से समझाते है स्व याने अनंत मुखवाली आत्मा, पर याने संसार के तमाम प्रकार के पदार्थ एवं बंधन। कोई भी पदार्थ हम स्व रूप में नहीं बना सकते। स्व के ऊपर ही हमारा अधिकार है पर की किसी भी चीज को हम अपना नहीं बना सकते। हां यदि आपको वह चीज मिलानी हो तो आप अपने प्रयत्न से ही मिला सकते हो। मैं अकेला हूं सबको मैं अपना बना हूं। सब तुम्हारे बनकर रहेंगे ये मिथ्या प्रयत्न है पर को विनाश शक्य नहीं। आप दूसरों के जूर बन सकोंगे वे आपके बनकर रहे ये मिथ्या भ्रम है।
हम पैदल यात्रा के लिए निकले रास्ता में नाला आया। उस नाले को पार करना है तो या तो हमें कूदना पड़ेगा या हमें कोई पटिया लगाकर उस ओर जाना होगा या फिर पुल बनाकर भी उस पार जाना होगा बस इसी तरह स्व के अंदर मस्त रहने वाले को पर का उल्लंघन करना चाहिए, पर की अपेक्षा नहीं रखनी। संवेग जैसे ही आएगा अपने आप सभी चीज हमसे दूर होती जाएगी। कहते है संवेग आता है पर से कंटाला करने की जरूरत नहीं। निर्वेद यानि कंटाला है कंटाला का अर्थ चीज अपने आप से छूट जाना जैसे कि किसी ने आपको केला खाने के लिए दिया केला खाने वाले व्यक्ति को कहना नहीं पड़ता है कि केले के अंदर का खाकर छिलका फेंक देना उसके हाथ में जैसे ही केला आया खाने योग्य चीज खाकर छिलका फेंक देता है बस, निर्वेद यही बताता है कि जो असार है उसे निकाल देना उसे पेंक देना।
आपने अपने पिताजी के जन्मदिन पर गिफ्त पेपर पैक करके कोई भेंट दी। वह भेंट आपके पिताजी के हाथ में आई। जैसे ही गिफ्ट हाथ में आई है आपके पिताजी उसे खोल देते है और बाहर का गिफ्ट पेपर कहीं डाल देते है अंदर चीज क्या उसका आकर्षणहै मगर गिफ्ट पेपर कहां डाला उसकी परवाह नहीं करते है सम्यक्त्व में पराक्रम की वृत्ति आई खराब अपने आप छूट जाता है। जो छूट गया उसका दु:ख नहीं होता है।
गाड़ी में बैठकर प्रवास कर रहे हो गार्ड आगे के स्टेशन पर जाने के करने वाला यात्री पीछे के स्टेशन छूट गए उसका दु:ख नहीं करता क्योंकि उसे पता है पीछे के स्टेशन छूटेंगे तभी वह यात्री अपनी आगे की मंजिल तक पहुंचेंगा। निर्वेद स्वयं हो जाता है छूड़वाना नहीं पड़ता है बस इसी तरह मोक्ष रूपी मंडिल तक जिसे पहुंचना है वह व्यक्ति भी संसार से विरक्त बनकर की ही साधन में लग जाता है पीछे की जिंदगी में उसने क्या बूरे काम किए उसकी ओर न देखकर आगे ऐसी क्या आराधना करूं जिससे शीघ्र मोक्ष मिले बस उसी में लग जाता है।
मनुष्य के सुख कैसे भी हो, देवों का मुख कैसा भी हो शास्त्रकार महर्षि फरमाते है तिर्यंच के सुख के पीछे कितने पागल व्यक्ति उनका सुख देखकर ईष्र्या करते हंै। एक बार चूहा शांति से बैठा हुआ मजा ले रहा था। किसी संयमी का उस पर ध्यान गया उन्होंने मन ही मन सोचा यह चूहा कितना सुखी है। ऐसा सुख मुझे भी मिले तो और वह संयम कालधर्म पाकर चूहे का अवतार पाया। शास्त्रकार महर्षि फरमाते हैं कि संयमी संयम लेने के बाद भी दूसरों के सुख की ईष्र्या करता है। आत्मा के सुख ही उसे पता नहीं है तभी तो उसे दूसरों का सुख-देवों का सुख तथा तिर्यंच के सुख की ओर खींचा चला जाता है।
मानवी को जब सच्चे आत्मा सुख की अनुभूति होती है तब अंतर आत्मा में क्रोध के बदले क्षमा की भावना, मान के बदले नम्रता की भावना, माया के बदले सरलता की भावना तथा लोभ के बदले अपनी आत्म लक्ष्मी को मिलाने की भावना होती है। तब बाल सुख अपने आप छूट जाता है। पूज्यश्री फरमाते है नाक में से सेढ़ा  निकला ये एक प्रक्रिया है किन्तु छोडऩे का दुख नहीं हुआ इसी तरह संसार छूटा निर्वेद आया आत्मा को दु:ख नहीं होता है। कितने लोग इस आरंभ के साथ समारम्भ अपने सुख मिलाने के लिए करते हं,ै जिससे कितने प्राणी दु:खी होते हैं, कितने हताश होते हैं तो कितने प्राणी की हिंसा भी हो जाता है। मान लिया कि संसारी आत्मा को समारम्भ ही उनका शरण है समारम्भ करना उनका कत्र्तव्य भी होगा जब संवेग आएगा निर्वेद आए बिना नहीं रहेगा अपने आप ये पाप छूट जाएगें चक्रवर्ती हो या कोई बड़ा राजा भी हो राज्य लेकर बैठा है युद्ध के लिए शत्रु आया तो आक्रमण भी करना पड़ता है, लेकिन वहीं राजा संयम के पंथ पर निकल गए और कोई उन्हें जाकर कहे कि मिथिला जल रही है संयमी यही कहेगा मिथिला जल रही है लेकिन मेरा कुछ नहीं जल रहा है, क्योंकि वह अपनी साधना में मस्त है। बस आप और हम में भी ऐसी ही मस्ती पैदा तो आप शीघ्र संवेगी बनकर निर्वेद पाकर आत्मा से परमात्मा बनें।