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अहमदाबाद। महापुरूषों ने उत्तराध्ययन सूत्र के माध्यम से शास्त्र के अहम रहस्यों की जो अमृत धारा बहाई है वे शुभ विचारों वे शुभ कथाओं को हमें, हमारे जीवन में उतारने जैसा है कहते है जिन लोगों को आत्मा की तरफ अपना लक्ष्य नहीं वे अपने जीवन में किसी भी चीज की प्राप्ति नहीं कर सकता है। आपके पास चीज होने मात्र से कुछ नहीं होता उस चीज का उपयोग किस तरह किया लाय उसका भी तरीका आना चाहिए।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है जौहरी की दुकान खुल्ली है और जौहरी लोगों के बीच जाहिरात करता है कि इस दुकान से आपको जो चीज पसंद है वह चीज बिना किसी मूल्य से आप खुशी से उसे अपने घर ले जा सकते हो परंतु एक शर्त पर कि आप जिस चीज को अपने घर ले जाओंगे उस चीज का यकीनन आप सही उपयोग करोंगे कहते है इस प्रकार की सूचना के बाद जेवरात ले जाने वालों की संख्या से ज्यादा नहीं ने जाने वालों की संख्या ज्यादा हो गई।
पूज्यश्री फरमाते है महापुरूषों के एक एक वचन महामूल्यवान है कीमती हीरा, कीमती मोती, कीमती माणेक तुल्य है। इन वचनों का सही तरीके से उपयोग करना चाहिए तब जवाब मिलता है इसका उपयोग मुश्किल है इसलिए हमें नहीं ग्रहण करना है कहते है जिन्हें इन वचनों का सही उपयोग करना आया उनके जीवन से ्अज्ञान का पटल दूर हुआ और उनका जीवन ही बदल गया। जिन्होंने महापुरूषों के वचनों का मूल्य समझा ह उन्होंने तो अपने जीवन का परिवर्तन कर दिया। अनेक आत्माओं के जीवन में छोटी छोटी घटना निमित बनकर जीवन का रंग बदल देती है। कितने लोगों का जीवन चिंतन एवं मनन से भी परिवर्तन हुआ है। कितने के महापुरूषों का वचन सुनकर भी जीवन को बदला है।
जीवन में तीन चीज विचारने योग्य है जो एक दूसरे के साथ संकलिप है। आलोचना, निंदा, गर्हा आपको जीवन में यदि आगे बढऩा हो तो आत्मा निरीक्षण सतत करना जरूरी है। रोज चोर चोरी करने आता नहीं है फिर भी सतत ध्यान तो सवना ही पड़ता है कि कभी वह अचानक आ न जाए इसके लिए हम गेट पर चौकीदार अथवा तो सेक्यूरिटी को रखते है कि वह बंगले का ध्यान रखे बस इसी तरह आत्मा में सग-द्वेष-काम-कषाय रूपी कचरा आत्मा को न लगे उसका सतत निरीक्षण करना है। घर बंध करके आप बाहर गांव गए। गांव से लौटे आपको प्रतीति होती है कि कोई साफ करने वाला नहीं था तो घर कचरे से भर गया उसको साफ करना ही पड़ेगा। घर की स्वच्छता रखनी ही पड़ेगी। हवा से कचरा आ गया तो किसी की ताकत नहीं कि वें इस कचरे को रोके।
पूज्यश्री फरमाते है आत्मा साधना की ने प्रक्रिया है स्वच्छता की ये प्रक्रिया है आत्मा निरीक्षण करके आलोचना में वहे दोषों का निरीक्षण करके गुरू के पास प्रकट करें। हो सकता है साधना करते वक्त कोई भूल हुई हो तो गुरू के समक्ष कहकर उसकी आलोचना करनी। गुरू के आशीर्वाद से वे भूल सुधरू जाए। आलोचना यही है कि अपने दोषों को गुरू के समझ प्रकट करके प्रायाच्छित लेना।
महान ग्रन्थकार-सूत्रकार विगेरे भी जब वे अपनी कृति बनाते है कृति बनने के बाद अपनी भूल की क्षमायाचना करते है और साथ में ये भी लिखते है कि भूल सुधारकर पढऩा। भूल होना स्वभाविक है भूल को कबूल करना एक बड़ी बात है।
कितने लोगों को कुछ आता नहीं फिर भी अभिमान करते है। कितने को ऐसा भी अभिमान होता है कि भूल तो मुझसे कभी होती ही नहीं। गर्व करने जैसा नहीं है आत्म निरीक्षण करके गुरू के आगे अपने दोषों को कहो शुद्ध बन जाओंगे। कहते है आलोचना से दोषों नजर के समक्ष आते है और बहुत बार तो नजर के समक्ष दोष आने के साथ दोषों से दोस्ती हो जाती है। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है आत्म निरीक्षण एवं आलोचना के फलस्वरूप आप अपने दोषों की निंदा करो। पुराने जमाने के किसानों की बात आपने सुनी होगी। वे अपनी खेती में चिखुरन करते थे। अपनी खेती में निरी हुई निकम्मी घास को मूल सहित उखेड़ देते थे। इसी तरह अपने दोषों का भी चिखुरन करना है। दोषों को दूर करना है।
पूज्यश्री फरमाते है स्वनिंदा वह दोष नहीं गुण है जबकि पर निंदा वह दोष है। दूसरों के समक्ष अपने दोषों की आहिरात करना वह गर्हा। आपके दो,ों को यदि कहना हो तो किसी गंभीर व्यक्ति के समक्ष कहना सामान्य व्यक्ति के आगे नहीं। गुरूओं में ऐसी ताकात है वे आपने दोषों को कभी किसी के आगे प्रकट नहीं करते है। 
अनादि काल से हमारे में शल्य रहे हुई है इन शल्यों को दूर करना है और हमारे में प्रसन्नता प्रगटाना है। माया-कपट-दंभ ये खराब दोष है इनसे दूर रहना है। दूसरों के आगे अच्छा दिखाना वह गड़ा धर्म नहीं, अच्छा बनना ही धर्म है। अच्छा दिखावा करने की वजह अच्छा बनने का प्रयत्न करो। सरलता का साम्राज्य जहां होगा उनके लिए मोक्ष नजदीक बनेगा बस आत्म निरीक्षण करके दोषों को दूर करके आत्मा से परमात्मा बनों।