जस्टिस (रि.) मार्कण्डेेय काटजू
भारत कभी विज्ञान की दुनिया में अग्रणी था। इसी कारण भारत का सकल घरेलू उत्पाद, जीडीपी दुनिया के जीडीपी का लगभग तीस प्रतिशत हुआ करता था। यह वह वक्त था जब इसे सोने की चिडिय़ा कहा जाता था। आज हमारा जीडीपी दुनिया के जीडीपी का मात्र दो या तीन प्रतिशत है।हजारों साल पहले जब दुनिया के अधिकांश लोग (ग्रीस और रोम के अलावा) जंगल में रह रहे थे, उस वक्त हमने विज्ञान की सहायता से शक्तिशाली सभ्यताओं का निर्माण किया था। लेकिन बाद में हमने अंधविश्वासों और कर्मकांडों के अवैज्ञानिक रास्ते को अपना लिया। नतीजतन, देश आपदा की तरफ बढऩे लगा। हमें अब आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त, सुश्रुत और चरक, पाणिनि, पतंजलि, रामानुजन और रमन जैसे पुरखों के बताए वैज्ञानिक मार्ग पर ही चलना होगा।
देश की विशाल समस्याओं को हल करने का एकमात्र साधन विज्ञान है। विज्ञान से मेरा मतलब भौतिकी, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान आदि की सिर्फ पढ़ाई से नहीं है वरन् संपूर्ण वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने से है। हमें एक तर्कसंगत और जिग्यासु दृष्टिकोण विकसित करना होगा और इस दृष्टिकोण को लोगों के बीच व्यापक रूप से फैलाना भी होगा। दुर्भाग्य यह कि हम अब भी ज्योतिष जैसे अंधविश्वास और जातिवादी, सांप्रदायिक एवं सामंती प्रथाओं में डूबे हुए हैं।
ब्रिटिश शासकों की नीति भारत को सामंती और पिछड़ा रखने की थी। वे चाहते थे कि गरीब आदमी लकड़हारा बने या पानी भरने वाला कहार। तभी तो उन्होंने हमें भारी उद्योग स्थापित करने की अनुमति नहीं दी। डरते थे कि कि अगर भारत का औद्योगीकरण हो गया तो वह ब्रिटिश उद्योगों का एक बड़ा प्रतिद्वंद्वी बन जाएगा। प्रधानमंत्री नेहरू जी एक आधुनिक सोच वाले आदमी थे। 1947 में स्वतंत्रता पाने के बाद उनके नेतृत्व में देश में जो औद्योगीकरण हुआ और कई इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थापना हुई, आज उसी का नतीजा है कि हमारे पास उद्योगों और इंजीनियरों का भंडार है। हमारे आईटी इंजीनियर बड़े पैमाने पर कैलिफोर्निया में सिलिकॉन वैली का प्रबंधन कर रहे हैं।अमेरिकी विश्वविद्यालयों में कई भारतीय प्रोफेसर विज्ञान, इंजीनियरिंग और गणित पढ़ा रहे हैं। इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की इस बड़ी संख्या के बदौलत हम भी चीन की तरह भारत को बड़ी आसानी से चीन की तरह एक अत्यधिक विकसित और औद्योगिक देश में बदल सकते हैं। हालाँकि, त्रासदी यह है कि आज भारत प्रतिक्रियावादी, अवैज्ञानिक नेताओं के चंगुल में पड़ गया है। इन नेताओँ ने नेहरू के दिखाए मार्ग को उलट दिया है और देश को मध्य युग में वापस लिए जा रहे हैं। हमारे पास एक प्रधानमंत्री है जिन्?होंने यह हास्यास्पद दावा कर रखा है कि प्राचीन भारत के शल्य चिकित्सक सिर प्रत्यारोपण करने में सक्षम थे। यह भी कि आनुवंशिक इंजीनियरिंग की शुरुआत भी भारत ने ही की थी। शायद यह प्रधानमंत्री के संकेत का परिणाम था कि बाद में भारतीय विज्ञान कांग्रेस में भाग लेने वाले कई तथाकथित 'वैज्ञानिकोंÓ ने भी उस तरह के हास्यास्पद दावे किए जैसे हिटलर के नस्ली वैज्ञानिक किया करते थे। यही नहीं, कई मंत्री भी प्रधानमंत्री का अनुसरण करते हैं।
यह सच है कि प्राचीन भारतीयों ने गणित में दशमलव प्रणाली का आविष्कार किया था। चिकित्?सा विज्ञान में प्लास्टिक सर्जरी का प्रारंभ भी हमारे पुरखों ने किया था। लेकिन आज तो कतई बेतुके और झूठे दावे किए जा रहे हैं। मसलन, योग से कैंसर का ठीक हो सकता है, या यह कि प्राचीन भारतीयों ने लाखों साल पहले परमाणु परीक्षण किए थे और हवाई जहाज का आविष्कार किया था। यह भी कि न्यूटन और आइंस्टीन से बहुत पहले गुरुत्वाकर्षण के नियमों की खोज भी भारत ने कर ली थी।
दावा तो यहां तक कि महाभारत काल में भारतीयों द्वारा इंटरनेट का उपयोग किया जाता था। यह दावा भी कम दिलचस्प नहीं कि गाय ही ऐसा जानवर है जो ऑक्सीजन छोड़ता है और गोमूत्र कोविड समेत कई बीमारियों को ठीक कर सकता है। यह दावा भी सुनाई दे जाता है कि योगिक खेती से कृषि उपज बढ़ सकती है। लेकिन यह योगिक खेती होती क्या है।
कुल मिला कर वर्तमान नेतृत्व में भारत में विज्ञान और तार्किकता पर हमला किया जा रहा है। भारत में अंधकार का युग आ गया है। वैसे ही जैसे 1933 में जर्मनी अंधकार भरे काल में समा गया था।
आप लोग पाइड पाइपर की परी कथा जानते होंगे। पाइड पाइपर इतनी बढिय़ा बांसुरी बजाता था कि उस शहर के तमाम बच्चे उसकी बजाई धुन में मस्त होकर उसके पीछे चलते-चलते एक गुफा में घुस गए थे। पाइड पाइपर ने अगले ही पल गुफा का द्वार बंद कर दिया था। अब हमको भी पाइड पाइपर के पीछे चलने की कीमत चुकानी होगी।
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