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अहमदाबाद। उत्तराध्ययन सूत्र का एक एक अध्ययन नवीन ज्ञान की प्राप्ति कराता है। जो व्यक्ति ज्ञान में मस्त बन जाता है उसको समस्त संसार के सुख की कीमत नहीं होती। वह तो अपने ज्ञान की मस्ती में ही सुख का अनुभव करता है, प्रसन्नता को पाता है तथा उसका मन भी शांति का अनुभव करता है। कहते हैं ऐसे सुखों की अनुभूति सिर्फ ज्ञान में डूब जाने से ही होती है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू. आ. देव राजयश सूरीस्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है आज तक विषयवासना, मोह-लोभ और परिग्रह इन सब कुछ को प्राप्त करने की ललक में हमेशा खोये रहे लेकिन उन सबसे आपने क्या पाया? सिर्फ अशांति-संताप क्लेश और कलह-उद्वेग एवं उदासीनता ही।
शास्त्रकार महर्षि फरमाते है जिनेश्वर के वचनों का श्रवण करो-गुरू भगवंतों के उपदेश का श्रवण करो उत्तराध्ययन सूत्र जैसे महान ग्रंथों का श्रवण करो आपको इन सबसे ऐसे सुख की अुनूभूति होगी कि आप बाह्म सुख को ही भूल जाओंगे। परम आनंद की मस्ती में मस्त बन जाओंगे।
जल क्रीड़ा करने के लिए आपने कभी तूफानी दरिये में छलांग लगाई? तैरने के ईरादे से किसी जल प्रवाह अथवा नदी में कूद हो? स्वीमींग बाथ में कभी प्रवेश किया? तैरने के शौकीन-जल क्रीड़ा के रसिये को समुद्र-सरोवर-नदी या स्वीमींग बाथ में नहाने का आनंद लूटते समय यदि कोई आकर बीच में ही रोक दे अथवा उसकी क्रिया में बाधा डालने उस वक्त उस व्यक्ति को जहर सा लगता है ठीक उसी तरह जीवात्मा जब अपने स्वाभाविक ज्ञानानन्द में सराबोर के, पूर्ण रूप से लीन बनकर आनंद में डूबा हो ऐसे प्रसंग पर यदि बीच में ही पौदगलिक विषय उसे डिस्टर्ब करें तब उसे वे विषय जहर से लगते है। क्योंकि ज्ञानानन्द की तुलना में उसके लिए पौद्गलिक आकर्षण सुख समृद्धि और विषय की वें कीमत नहीं रखते है। 
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है कोई भी जीव स्तुति-स्तवन से क्या प्राप्त करता है कहते है स्तवन-स्तुति से जीव को ज्ञान-दर्शन-चारित्र स्वरूप बोधि का लाभ प्राप्त करता है। ज्ञान-दर्शन-चारित्र स्वरूप बोधि के लाभ से संपन्न जीव अन्त क्रिया(मोक्ष) के योग्य अथवा वैमानिक देवों में उत्पन्न होने के योग्य आराधना करता है।
कोई कितना भी बूरा कहे या बूरा करे ज्ञान की मग्नता के कारण तमाम प्रतिकूलता का अनंत आता है। ज्ञान में मस्त रहने वाले को कोई कितनी भी सुख साहिबी दे उसे उसमें रस नहीं आता है।
एक ऋषि को अपनाभरण पोषण करने केलिए अनाज की जरूरत थी। ऋषि किसी जीव को तकलीफ देकर अनाज नहीं मिलाना चाहते थे इसलिए ऋषि ने देखा किसान जब अपनी खेती से अनाज ले जाता है तो कुछ न कुछ दाने बीच गिर ही जाते है ऋषि उन दानों को उठाकर अपना भरण पोषण कर लेता था। स्वाद से मुक् त हो गए हो उस प्रकार से वह अपना जीवन जीता था। ऋषि की महानता की खबर राजा तक बात गई। राजा ने सोचा ऋषि की कुछ सहायता करू इसलिए अपने सेवक को ऋषि के पास भेजकर ऋषि को महल में बुलवाया लेकिन ऋषि आए नहीं लेकिन ऋषि फिर भी न आए सेवक ने कहां वे तो मन के राजा है।
राजा ने सोचा ऋषि की सहाय करनी है तो मुझे ही जाना पड़ेगा। कहते है करोडपति को भी यदि रास्ते में सोनामहोर मिले तो वह झुककर उठा लेता है। राजा को हुआ ये ऋषि ज्ञान में इतने मस्त है कुछ देने पर भी ग्रहण नहीं करते है। राजा स्वयं गए। ऋषि को पूछा, आपके पास सुख चैन नहीं फिर भी आप इतने आनंद में किस तरह रहते हो। ऋषि ने कहा, राजन्। आप यहां कुछ दिनों के लिए रहिए। यहां पर ज्ञानाभ्यास चलता है तथा शास्त्र के पाठ भी होते है। राजा ने कहां, मैं तो झंझटों में फंस गया हूं मेरे बगैर राज्य का संचालन किस तरह होगा? आप को ज्ञान में मस्त रहने वाले हो आपको मेरी भेंट स्वीकारनी ही पड़ेगी। राजा ने जबरदस्ती करके उस ऋषि को सोनमहोर भिजवाये। ऋषि ने कहा, आप यदि आग्रह करके मुझे धन दोंगे तो मैं ये शहर छोड़कर अन्य कहीं पर चला जाऊंगा।
राजा समझ गए प्रभु भक्ति में मस्त रहने वाले को बाह्म सुख से कुछ लेना देना नहीं होता। राजा ने ऋषि से क्षमा मांगी। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है एक भी चीज बिन जरूरी आए महात्माओ को प्रभु की स्तुति एवं स्तवन में विक्षेप रूप बनती है। फकीरों का जीवन इसी प्रकार का होता है कि वे अपनी मस्ती में मस्त उन्हें दुनिया के किसी सुख से लेना देना नहीं होता।
पूज्यश्री फरमाते हैं दीर्घ विचार में रहा करो। कोई व्यक्ति कैसा भी खराब हो उनमें रहे गुण को ढूंढो लोगों में गुण को ढूंढने की दृटि रखकर आप भी महागुणी बनो। ह्रदय पूर्वक प्रभु की स्तुति एवं स्तवना करके शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनने का लक्ष्य पूरा करो।