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अहमदाबाद। उत्तराध्ययन सूत्र के महान सूत्रों एवं शास्त्रों जीवन को पावन बनाता है। इसीलिए श्रावकों के कत्र्तव्य में एक कत्र्तव्य प्रतिदिन शास्त्र का श्रवण करना कहा है। उत्तराध्ययन सूत्र की वाचना चिंतन एवं मनन से हमें इन महापुरुषों की बातों को हमारे जीवन में उतारकर आगे बढऩा है। आज के अध्ययन में प्राचाच्छित से जीव क्या प्राप्त करता है?
शास्त्रकार महर्षि फरमाते है प्रायच्छित से जीव पाप कर्मो को दूर करता है तथा धर्म साथना को निरतिचार बनाता है। कहते है सम्यक प्रकार से प्रायाच्छित्त करने वाला साधक मार्ग ( सम्यक्त्व) एवं मार्ग फल (ज्ञान) को निर्मला करता है तथा आचार एवं आचार फल (मोवा) की आराधना करता है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है अंग्रेजी में एक कहावत है च्च्ञ्जश द्गह्म्शह्म् द्बह्य द्धह्वद्वड्डठ्ठज्ज् भूल होना मानव की स्वभाविक प्रकृति है। दुनिया का ऐसा कोई व्यक्ति नहीं कि जिससे भूल न होती हो, हम छझमस्थ है भूल हरेक से होती है भूल को सुधारने में ही दिव्यता है। कलापी ने अपनी कृति में बताया हा पछतावो विपुल झरणुं स्वर्ग थी उतरे छे पापी अेमां डूबकी दई ने पुण्यशाली बने छे। जिस व्यक्ति को अपनी भूल का पछचाताप होता है वह व्यक्ति इस निर्मल झरणा में डूबकी लगाकर अपने पापों को धोकर पुण्यशाली बनता है। सरल मानवी को अपनी भूल का जैसे ही एहसास होता है वह तुरंत ही जागृत बनकर प्रायाच्छित कर लेता है। कितने मानवी अपनी भूल का सुधारा करके अपने में दिव्यता का प्रकट करते है। 
बालमुनि अईमुत्ता दीक्षा लेकर अपने गुरू के साथ गोचरी वहोरने गए। रास्ते में बालमुनि ने अपने ही उम्र के बच्चों को कागज की नौका बनाकर पानी में तिराते हुए देखा। अईमुत्ता का बचपन था भूल गए कि वे साधु वेष में है और पात्रा को नौका के रूप में पानी में तिराते लगे। स्थविरों का ध्यान गया तुरंत बालमुनि को याद दिलाया कि वें मुनि है और साधु कभी कच्चे पाणी का संघट्टा नहीं करते है। जाने अनजाने भूल हुई हो और आप उसका पछचाताप करके प्रायाच्छित कर लो तो आपकी आत्मा निर्मल बन जाती है। तता दिव्य शक्ति आपमें प्रकट होती है। अईमुत्ता मुनि को अपनी भूल का एहसास हुआ उन्होंने तुरंत ही भूल को सुधारने ईरिवहियं का पाठ किया और उस पाप का प्रायाच्छित करते हुए उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई।
शास्त्रकार महर्षि फरमाते है प्रायाच्छित से आत्मा की विशुद्धि तथा पूर्व के कर्मो का नाश होता है। गहरा चिंतन करने की जरूरत है कि किसी भी व्यक्ति ने भूल होतो उस भूल का स्थूल (लम्बा) करने के बजाय उसका कबूल कर लो आपके चित्त की विशुद्धि हो जाएगी। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है प्रायाच्छित करके पूर्व जिस प्रकार आपकी आत्मा निर्मल थी उस प्रकार से भूल का प्रायाच्छित करके आत्मा को शुद्ध बनाना है
कहते है दर्शन ज्ञान एवं चारित्र ये तीन मोक्ष के मार्ग है प्रायाच्छित का फल ज्ञान बताया है तो खास ख्याल रखना है कि भूल करके प्रायाच्छित नहीं किया तो आप अपने मार्ग को नहीं मिला पाओंगे। भूल हुई शुद्धि कर ली तो मार्ग नजदीक है वरना भूल की शुद्धि नहीं हुई तो आप मोक्ष मार्ग को नहीं मिला पाओंगे।
एक भाई को पूछा गया, जीवन में सबसे बड़ा मंत्र कौन सा है? उसने जवाब दिया नवकार तत्वज्ञानी ने कहा नवकार की तुलना में आए ऐसा कोई मंत्र हो तो वह है मिच्छामि टुकड्डं। चित्त की शुद्धि करनी है भूल का गिच्छामि  टुकड्डं दे दो। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है कोई चीज विचारने की नहीं होती बूरे विचार अपने आप आ ही जाते है इसी तरह हम बोलना नहीं चाहते मगर मुंह से खराब निकल ही जाता है आत्मा की विशुद्धि चाहते हो तो श्रेष्ठ मंत्र मिच्छामि टुकड्डं को याद करो। भाव से तस्स उत्तरी सूत्र बोलो। भूल हुई शुद्धि लानी है। जड़ से ही दोष को उखेडऩा है। शल्य रहित बनाना है तो प्रायाच्छित करो।
मृगावती साध्वी परमात्मा की देशना सुनने गई थी आने में देर हुई तो गुरूणी चंदनबाला ने उसे अपनी भूल बताई। साध्वीजी ने अपनी भूल का प्रायाच्छित्त किया तो केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। चंदनबाला साध्वीजी को जब पता चला कि  मृगावती साध्वी को केवलज्ञान हुआ तब उन्होंने भी अपने बोले गए कड़क शब्दों का प्रायाच्छित्त किया उन्हें भी केवल ज्ञान हुआ।
पूज्यश्री फरमाते है अक्सर मित्रों के साथ परिवार वालों के साथ कुछ न कुछ भूल हो जाती है जीवन को सुधारना है मोक्ष मार्ग को पाना है तो अपनी भूलों का प्रायाच्छित्त करके आत्मा को निर्मल बनाओं। प्रायाच्छित याने -च्च्क्रद्गष्शठ्ठह्यह्लह्म्ह्वष्ह्लद्बशठ्ठ शद्घ ह्लद्धद्ग ह्यशह्वद्यज्ज् बस, भूलों का सुधार करके आत्मा को शुद्ध एवं पवित्र  बनाकर शीघ्र परमात्मा पद को पाए यही शुभाभिलाप।