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अहमदाबाद। प्रख्यात राष्ट्र सेवक श्री ढेबर भाई का स्वतंत्र संग्राम के लिए प्रवचन चल रहा था। अचानक श्री ढेबर भाई को खांसी आई उसी समय एक छोटी सी नौ बजे की बालिका स्वयं सेवक के रूप में पानी लेकर आई। पानी पीने के बाद भी ढेबर भाई की खांसी रूकी नहीं सभा डिस्टर्व होने लगी ये देखकर वसु नाम की बालिका ने ढेबर भाई से कहा, साहेब! कुछ देर के लिए मैं सभा को संभाल लेती हू आप चिंता न करना। ढेबर भाई उस छोटी वसु को देखते ही रह गए। सिर पर हाथ रखकर कहा, बेटा, मैं कुछ ही समय में स्वस्थ हो जाऊंगा। तुझे लाख-लाख धन्यवाद है। ऐसी छोटी उम्र में देश भक्ति के प्रति प्रेम-हिंमत एवं सभा का अक्षोभ ये भावि की महानता का सूचक था।
छोटी उम्र में वसु में कुछ कर दिखाने की तीव्र चपटी थी। उसी अरसे में अपनी बड़ी बेन की दीक्षा की बात चली। वसु को भी वह मार्ग पसंद आया। परंतु किसी ने टोका कि तुं दीक्षा के बारे में क्या जानती है? क्या तुं दीक्षा का पालन कर सकेगी? वसु को चैलेन्ज लगाने की आदत थी एक ही झटके में कह दिया कि मैं बड़ी बेन के साथ मैं भी दीक्षा लूंगी। वसु की मजाक उड़ाने वाले फीके पड़े। और इसी वसु ने देशभक्ति के साथ विश्व मानव की भक्ति हो, प्राणी मात्र की भक्ति हो ऐसी दीक्षा के लिए तैयार हुई। और शीघ्र ही संयम को स्वीकारा। वही वसु आज 72 वर्ष के संयम पर्याय में प्रवेश कर रहे है और उनका नाम सा. क्र्या वाचंयमाश्री (पू.बेन.म.सा) उनका नाम पर कोई नहीं जानते है परंतु बेन म.सा. के नाम से वें पहचाने जाते है।
वि.सं. 2006 वै.वद.6 को 11 वर्ष की फूल जैसी चरबांक तथा शिस्तबंध वस्त्र को सुशोभित इस बालिका को पालिताणा जैसे जैन तीर्थ धाम में कोई भी आचार्य पहले भी उन्होंने पू.आचार्य लब्धि सूरीश्वरजी म. और पू. आचार्य विक्रय सूरीश्वरजी म.के मनोगत को समझकर उसे पूर्ण करते थे इस उम्र में भी वे इसी दौड़ से शास्त्र प्रभावना कर रहे है। सिर्फ 10 वर्ष की उम्र में संयम जीवन अंगीकार करके अध्ययन तथा अध्यापन क्षेत्र में अच्छे अच्छे धुरंधर एवं विद्वानों को आश्चर्य चकित करे ऐसे साध्वीजी श्री वाचंयमाश्रीजी है
वक्तृत्व शक्ति अद्भुत तो लेखन शक्ति तो उससे भी अद्भुत। अध्ययन का क्षयोपशम जोरदार तो अध्यापन की कला तो उससे भी जोरदार। ग्रहण शक्ति आश्चर्य जनक तो आदान प्रदान शक्ति विस्मय जनक। संयम शुद्धि मस्त तो अध्यवसाय शुद्धि सुन्दर। कला की।
अपनी जात के लिए वे कठोर होने के बावजूद किसी के दु:ख दर्द को देखकर वें जल्दी पिघल जाते है। प्रभु शंखेश्वर एवं मां पझा का ध्यान करके वे सभी को आशीवार्द देते है। दु:ख एवं दर्द से घिरे हुए साधु-साध्वी-श्रावक श्राविकाएं स्वस्थ बनकर प्रसन्न मुद्रा से वापिस उनके पास आते है। तब वे सभी को एक ही बात समझाते थे कि जब तक हम कर्मो से मुक्त नहीं होंगे तब त दु:ख दर्द आते रहेंगे। भले आप रोगी से निरोगी बनें, भले आप आर्थिक संकट में से दूर हुए। भले मां पझावती ने आपके परिवार में शांति का माहौल बनाया परंतु याद रखना सम्यक् दर्शन-ज्ञान एवं चारित्र की आराधना से ही आपके तमाम प्रश्नों का समाधान हो सकेगा।आप आजकल वे कुछ शारीरिक अस्वस्थ है फिर भी उनकी चिंतन धारा-लेखन धारा चालु ही है। सभी को ने प्रतीती करा रहे है कि मैं सब की हूं और सभी मेरे है। बस हम सभी यही कामना करते है कि वे 100 वर्ष का संयम जीवन पाकर विश्व का कल्याण करें।
दीक्षा देने के लिए हिंमत नहीं कर पा रहे थे। उस समय बाल दीक्षा का विरोध भी था परंतु वे निडर थी। वसु का निर्धार था भले मेरे आराध्य दादा गुरूदेव पूना में बैठे है परंतु उन्होंने मेरी माता को आज्ञा शान्ताबेन भी दृढ़ निश्चत व्यक्तित्ववाली भाई थी। वसु ने तो एक बात ठान ली थी कि मेरी दीक्षा किसी भी संयोग में होनी ही चाहिए। मुझे रथयात्रा की जरूरत नहीं, मुझे मान-सम्मान की जरूरत नहीं और आखिर में पालिताणा के साहित्य मंदिर की एक छोटी सी रूम में वसु एवं वसु की बड़ी बेन राजुल की दीक्षा हुई। इसी दिन पालिताणी में धजा चढ़ी। राजुल सा. रत्नचूलाश्रीजी बने और वसु सा. वर्या वाचंयमाश्री (वर्तमान काल के सभी के लाडीले बेन मं.) दीक्षा दाता कोई बड़े आचार्य नहीं थे सामान्य साधु थे वैसी नहीं थी। दीक्षा दाता क्रांति विजय ने भी विजय की क्रांति की थी।
सा. वाचंयमाश्री ने अनेक प्रकार का ज्ञान मिलाया। अजात शत्रु पू.दाता गुरूदेव लब्दि सूरीश्वरजी म.सा की साहित्य यात्रा में भी वे जुड़े बड़ी लीनता से शास्त्राभ्यास किया। तप के क्षेत्र में भी अपना पुरूषार्थ बढ़ाया। परंतु उनकी नजर शासन के देश के, विश्व के विशाल पट पर ही केन्द्रित थी। उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर पू.आ. लब्धि सूरीश्वरजी म.ने कहा, अगर तुं लड़का होता तो मैं तुझे आचार्य बना लेता। उन्होंने अनेक महान शासन सेविका जैसी साध्वीओं का निर्माण किया। अभी भी वें 70 साध्वीओं का नेतृत्व कर रहे है। उनके द्वारा लेखित पुस्तक दशवैकालिक चिंतनिका, उत्तराध्ययन सूत्र चिंतनिका ने जैन चिंतक वर्ग में नई परंपरा चलाई। तीर्थंकरो की वाणी के रहस्यों को बताया।
 हाल में साध्वी वर्या गीतार्थ गच्छाधिपति पू. आचार्य राजयश सूरीश्वरजी म.की आज्ञा में अपना धर्म अभियान चला रहे है।