डॉ. मुकुल श्रीवास्तव
हमारे रोजमर्रा के जीवन में गूगल की बढ़ती घुसपैठ के बीच उसके द्वारा दी जाने वाली बहुत सी सेवाएं अब मुफ्त नहीं रह जाएंगी और उनके लिए हमें निर्धारित मूल्य भी चुकाना होगा। इनमें से एक की शुरुआत तो जून से ही हो रही है।
दुनिया को जोडऩे वाला, इंटरनेट। एक क्लिक पर हमारे हर सवाल के तमाम जवाब देने वाला, इंटरनेट। घर बैठे शॉपिंग और फिर घर बैठे ही डिलीवरी करने वाला, इंटरनेट। आम हो या खास सबकी एक जरूरत बन चुका है यह इंटरनेट। इतनी खूबियों वाले इंटरनेट का फायदा उठाने के लिए एक अदद कंप्यूटर या मोबाइल के साथ जिस चीज की जरूरत होती है वो है एक सर्च इंजन। सारी दुनिया में आज खोज का पर्याय बन चुकी कंपनी का नाम है गूगल।
गूगल इंटरनेट का प्रवेश द्वार है और खोज-विज्ञापन के बाजार में यह विशालकाय है। शुरुआत में इंटरनेट पर उपलब्ध लगभग हर सेवा मुफ्त में ही मिलती थी, फिर धीरे-धीरे इंटरनेट पर उपलब्ध कई सेवाओं की खिड़कियां मुफ्त के लिए बंद होने लगीं, पर ज्यादातर ये मुफ्त सेवाएं विशेषीकृत सेवाओं की थी, जैसे नौकरी तलाशना या फिर अपने लिए जीवनसाथी की तलाश आदि पर गूगल की सेवाएं सब मुफ्त ही रहीं। इस बीच गूगल लगातार हमारे जीवन में घुसपैठ बढ़ाता रहा। सर्च इंजन से शुरू हुआ सफर ई-मेल फोटो वीडियो और न जाने कितनी सेवाओं को जोड़कर हमारे जीवन को आसान करता रहा। यदि उपभोक्ताओं को छूट और बहुत कुछ मुफ्त मिल रहा है तो उन्हें चिंता क्यों करनी चाहिए? इसको समझने के लिए जरूरी है कि वर्ष 2016 में भारत में एक फोन कंपनी ने 4जी सेवा शुरू की जिसमें उपभोक्ताओं को करीब एक वर्ष तक इंटरनेट और कॉलिंग की मुफ्त सेवाएं दी गई।
परिणाम यह हुआ कि एक समय 15 से ज्यादा टेलीकॉम कंपनियां भारत में सेवाएं दे रही थीं, अब महज तीन बची हैं। अब तीनों कंपनियां अपनी दरें बढ़ा रही हैं। बाजार से प्रतिस्पर्धा काफी हद तक खत्म हो गई है। इंटरनेट के व्यवसाय का ढांचा भी बदल रहा है जो अब सिर्फ विज्ञापन आधारित न होकर सेवाओं के सब्सक्रिप्शन शुल्क के रूप में अपना विस्तार कर रहा है। इसी कड़ी में गूगल ने आगामी एक जून से अपनी गूगल फोटो मुफ्त क्लाउड स्टोरेज र्सिवस बंद करने का फैसला किया है। अब गूगल की ओर से गूगल फोटो के क्लाउड स्टोरेज के लिए शुल्क वसूला जाएगा। इसका यह मतलब हुआ कि अगर आप गूगल ड्राइव या फिर किसी अन्य जगह अपनी फोटो और डाटा को 15 जीबी से ज्यादा स्टोर करते हैं, तो इसके लिए आपको चार्ज देना होगा। जो उन्हें प्रतिमाह के हिसाब से 1.99 डॉलर (लगभग 144 रुपये) पड़ेगा। गूगल ने इसे 'गूगल वनÓ नाम दिया गया है। इस तरह का शुल्क जीमेल में पहले से ही लागू है जिसमें कोई भी जीमेल उपभोक्ता 15 पंद्रह जीबी तक का मेल स्टोरेज मुफ्त हासिल कर सकता है, इससे ज्यादा के लिए उसे शुल्क देना होगा। यानी भारत में इंटरनेट समय का एक चक्र पूरा कर चुका है और इस इंटरनेट पर कुछ कंपनियों का एकाधिकार है। बीच में चीन की कुछ कंपनियों ने भारत में पहले से स्थापित गूगल जैसी कंपनियों को चुनौती देने की शुरुआत जरूर की, पर राजनीतिक वजहों से उन कंपनियों को देश से बाहर जाना पड़ा।
दुनिया में दूसरे स्थान पर इंटरनेट उपभोक्ताओं वाला देश ऐसी कोई स्वदेशी कंपनी विकसित नहीं कर पाया, नतीजा गूगल जैसी कंपनियों का एकाधिकार हमारे जीवन का अंग बन चुका है। कंपनी मुनाफा बढ़ाने के लिए ऑनलाइन सर्च कारोबार में अपने प्रभुत्व का दुरुपयोग कर रही है। गूगल की मूल कंपनी अल्फाबेट इंक है और इसका बाजार मूल्य एक हजार अरब डॉलर से अधिक है। गूगल से टक्कर लेना इसलिए भी आसान नहीं है, क्योंकि उसने सर्च के मामले में एकाधिकार कायम कर रखा है। लगभग 92 प्रतिशत सर्च को गूगल नियंत्रित करता है, जो उसके सबसे बड़े प्रतिस्पर्धी माइक्रोसॉफ्ट बिंग की हिस्सेदारी महज ढाई प्रतिशत से बहुत ज्यादा है।
फिलहाल गूगल की आय का सबसे बड़ा स्रोत विज्ञापनों से होने वाली आय से आता है जो कि गूगल केवल उपभोक्ताओं को अपने सर्च इंजन पर ही नहीं, बल्कि यूट्यूब, जी मेल, क्रोम, एंड्रायड, मैप और अन्य सभी सेवाओं पर भी ट्रैक करते हैं। गूगल ट्रैकर्स वास्तव में 75 प्रतिशत शीर्ष वेबसाइटों पर लगे होते हैं। गूगल एनालिटिक्स को अधिकांश साइटों पर इंस्टॉल किया गया है, जिससे वेबसाइट मालिकों और गूगल को पता चलता है कि उपभोक्ता कौन सी साइट पर कब और कितने देर के लिए जाता है। जो विज्ञापन हर जगह आपका पीछा करते हैं, उनमें से अधिकांश वास्तव में इन गूगल विज्ञापन नेटवर्क के माध्यम से चलाए जाते हैं।अपनी सेवाओं के लिए शुल्क लेना या नहीं लेना किसी भी कंपनी का विशेषाधिकार है, पर यहां स्थिति थोड़ी अलग है।
उपभोक्ताओं के पास ऐसा कोई सशक्त विकल्प है ही नहीं कि वो इंटरनेट की कुछ सेवाओं के लिए किसी अन्य कंपनी के बारे में विचार कर सके। ऐसे में जहां हम अपने ही आंकड़ों से कमाए गए मुनाफे से गूगल जैसी कंपनियों को विशाल बनाने में मदद करते हैं, जबकि उस मुनाफे का कोई भी हिस्सा उस उपभोक्ता तक नहीं पहुंचता जिसके कारण मुनाफा कमाया जा रहा है, वहीं मुनाफे को अधिकतम करने के लिए अब उन्हीं उपभोक्ताओं से शुल्क भी वसूला जा रहा है। मुनाफा कमाने की ये होड़ वास्तव में कहां जाकर रुकेगी इसका फैसला अभी होना बाकी है, परंतु यह सच है कि इंटरनेट का यह दावा कि वह हमारा समय बचा कर हमारे जीवन को आसान बनाता है, कहीं से भी सच नहीं प्रतीत होता, बल्कि यह उस बचे हुए समय को उसी इंटरनेट की अंधी सुरंगों में बिताने के लिए प्रेरित करता है।
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