ठ्ठ केके पाठक
व्यक्ति खामोश कब होता है, जब उसे लगता है, कि उसकी बात या तो सुनी नहीं जा रही है। या उसकी बात का प्रतिउत्तर नकारात्मक ढंग से मिल रहा है। या उसकी बात पर कोई हंगामा हो, हल्ला और लड़ाई झगड़ा होने की संभावना होती है। अधिकांशत: तब व्यक्ति खामोश हो जाता है। कहा गया है कि, खामोशी की भी अपनी एक जुबान होती है- कभी- किसी खामोशी में नाराजगी और गुस्सा होता है, तो कभी किसी खामोशी में आस्था और प्यार होता है। कभी किसी खामोशी में श्रद्धा और सबुरी होती है। तो कभी किसी खामोशी में जल्दबाजी और आतुरता होती है। कभी यह खामोशी बहुत सारे सवाल और बहुत सारी समस्याओं से बचाने के लिए होती है। इस पर किसी शायर ने कहा है कि- जब से यह अक्ल जवान हो गई-तब से खामोशी ही हमारी जुवान हो गई।
खामोशी भी बहुत कुछ कहती है, पढऩे वाला और समझने वाला चाहिए, यदि आपने समझदारी है, तो आप किसी की खामोशी का मतलब और अर्थ निकाल सकते हैं, और वह भी वही मतलब और वही अर्थ जो वास्तव में सत्य है। पाकीजा फिल्म के गाने में एक लाइन आती है- कि जो कही गई ना हमसे वह जमाना कह रहा है। मतलब आप समझ गए होंगे हमारी उम्र की परिपक्वता, हमारी समझदारी, हमारी शिक्षा, हमारी सोच जब तक अपनों की खामोशी को नहीं पढ़ सकती। तब तक हमारी समझदारी और हमारी शिक्षा व्यर्थ है। जरूरी नहीं कि हर बात लफ्ज़ों की गुलाम हो- खामोशी भी खुद में एक जुवान होती है।। खामोशी किसी बात को समझने का तरीका है, किसी विचार पर किसी समस्या पर चिंतन मनन की अवस्था है, खामोशी एकांत से अकेलेपन की यात्रा भी हो सकती है। जिसमें व्यक्ति कभी भी अपने आप को अकेला नहीं समझता उसका संबंध परमात्मा ईश्वर से जुड़ जाता है। और वह खामोशी के माध्यम से चिंतन मनन और विचारों के माध्यम से अकेलेपन से एकांत की ओर यात्रा करने लगता है। किंतु साधारणतया खामोशी डर के मारे भी होती है, कि हमारे कुछ कहने से कोई- हो, हल्ला और हंगामा ना हो जाए इसलिए चुप चाप रहो। ना सच बोलो ना झूठ सुनो। ना अच्छा बोलो ना बुरा सुनो। ना अच्छी सलाह दो ना बुरी सलाह सुनो, ना अपना अभिमत दो,और ना उसका विरोध सुनो। शायद इसलिए भी कई लोग खामोशी को धारण कर लेते हैं। लेकिन जो लोग खामोश होते हैं, उनके चिंतन मनन और विचारों के घोड़े मन के अंदर दौड़ते रहते हैं...... और वह किसी ना किसी निर्णय पर पहुंचकर सीधे कदम उठाने के लिए तैयार हो जाते हैं। वैसे वास्तविक जीवन में खामोशी का होना भी बहुत जरूरी है, जिसे अंग्रेजी में वॉइस रेस्ट भी कहा जाता है। आप कम से कम बोलें अच्छा, बोलें, मीठा बोलें, काम का बोले तो ज्यादा अच्छा है। अनावश्यक अपशब्दों का, खराब शब्दों का, जो सुनने में बुरे लगे, गाली गलौज जैसे नियम शब्दों का इस्तेमाल ना करें तो ज्यादा अच्छा है। कहा गया है कि मुंह से निकला हुआ शब्द और धनुष से निकला हुआ तीर कभी वापस लौट कर नहीं आता फिर भी हमारे पास एक विकल्प होता है अपने कहे हुए शब्दों के दर्द को कम करने का जिसे हम क्षमा और प्रायश्चित कहते हैं हम इस क्षमा और प्रायश्चित के मलहम से दूसरों को लगे शब्दों के घाव को कम कर सकते हैं। और खामोश रहकर अपने स्वयं के, खुद के क्रियाकलापों पर एक दिन या दो दिन नहीं अपने स्वयं के संपूर्ण जीवन काल पर,अतीत पर चिंतन मनन करें। और आगे की योजनाओं के विषय में सोचे हमने क्या किया, हमने किस टाइप के कर्म किए, हमें ऐसे कर्म करना चाहिए था, कि नहीं हमने किस को व्यर्थ में परेशान किया।
हमने किसके प्रति व्यर्थ के शब्दों के दुरुपयोग द्वारा चोट पहुंचाई, जो हमें नहीं करना चाहिए था,या हम ने सही किया। हमारे साथ लोगों ने क्या किया, हमारे साथ लोगों का व्यवहार कैसा रहा, हमें अपने आप को किस प्रकार से आने वाले जीवन में सावधानीपूर्वक और स्थिर रहने की आवश्यकता है। यही चिंतन मनन हमारे भविष्य के सुधार की औषधि है। कहा गया है कि हथियारों के घाव तो भर जाते हैं किंतु शब्दों के घाव जीवन भर रह रह कर दर्द देते है, हमें शब्दों और विचारों की दरिद्रता से बचना चाहिए, इसलिए अपने शब्दों को सोच समझकर बोलें, अनावश्यक शब्दों का इस्तेमाल ना करें, क्योंकि यदि आप अनावश्यक शब्दों का इस्तेमाल करेंगे, तो उसके प्रतिउत्तर में आपको भी अनावश्यक शब्द सुनने को मिल सकते हैं। यह सामने वाले की समझदारी पर निर्भर करता है, हम जो कहते हैं, उस पर जो प्रतिक्रियाएं होती हैं, उनसे हमारा जीवन प्रभावित होता है। हम जो कहते हैं और हम जो करते हैं इसी से हमारे आचरण का भी निर्माण होता है। कहा गया है कि जो व्यक्ति जैसा सोचता है, और अगर वह वैसा ही करता है, तो वह वैसा ही बन जाता है। इसलिए हमें खामोशी में भी सकारात्मकता का ध्यान रखना अति आवश्यक है, वरना हमारी खामोशी भी विध्वंस,और नकारात्मक को परिणाम दे सकती है। हमारे मन में क्या चल रहा है, इस पर भी हमें ध्यान देने की आवश्यकता है। हमारी खामोशी भी सदैव सकारात्मक हो और हमारा चिंतन मनन सदैव दूसरों की भलाई के लिए हो, सबों की भलाई के लिए हो। अच्छाई के लिए हो, इसीलिए कहा गया है कि सोच अच्छी रखो यदि हम अपने खामोशी में अपनी सोच को अच्छा रखेंगे, तो हम जब भी बोलेंगे वह सकारात्मक ही होगा नकारात्मक नहीं, आओ अपनी खामोशी का सदुपयोग मानवता और प्राणियों के हित में करें। समाज में फैली बुराइयों और कुरीतियों के विरुद्ध में करें। आओ अपनी खामोशी को बुराई से दूर भलाई की ओर ले चलें। आओ अपनी खामोशी को अकेलेपन से एकांत की ओर ले चलें। आओ अपनी खामोशी को परमपिता ईश्वर के श्री चरणों में ले चलें। आओ अपनी खामोशी को नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर ले चलें। आओ अपनी खामोशी को प्रार्थना दुआ और निवेदन की ओर ले चलें।
खामोशी की भी आवाज होती है जो सबको सुनाई नहीं देती। किंतु उसका परिणाम दिखाई देता है आओ अपने खामोशी के परिणाम को सकारात्मक बनाएं, ताकि लोगों का भला हो सके मानव जाति और समस्त जीव-जंतुओं की भलाई के लिए घर परिवार वालों, बच्चों की भलाई के लिए ईश्वर के श्री चरणों से अपनी खामोशी के द्वारा प्रार्थना करें। यही हमारे जीवन की सच्चाई हो और यही हमारी खामोशी की सच्ची आवाज हो। जो किसी को सुनाई दे या ना दे लेकिन उसके परिणाम हमेशा सकारात्मक और धनात्मक हो। यही हमारी हमारे समाज की हमारे घर परिवार की हमारे देश की, और सारे विश्व की भलाई की ओर एक तुच्छ सेवा है। आओ छोटा ही सही नन्हा ही सही एक प्रयास तो करें।
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