मिथुन संक्रांति को देश के हर हिस्से में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। हालांकि, उड़ीसा में इस त्योहार का विशेष महत्व है। इस दिन लोग अच्छी खेती के लिए बारिश की मनोकामना भगवान सूर्य से करते हैं
हिंदू धर्म में सूर्य का राशि परिवर्तन संक्रांति कहलाता है। सूर्य जिस भी राशि में गोचर करते हैं, उसे उसी राशि की संक्रांति माना जाता है। साल भर में 12 संक्रांतियां आती हैं। जिनमें से मिथुन संक्रांति भी एक है। इस दिन दान और पुण्य करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। जेष्ठ के महीने में सूर्य देव मिथुन राशि में प्रवेश करते हैं, जिसके कारण इसे मिथुन संक्रांति कहा जाता है।
बता दें, इस साल 15 जून को मिथुन संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन सूर्य देव वृषभ राशि को छोड़कर मिथुन राशि में प्रवेश करते हैं। सूर्य के गोचर के बाद सभी नक्षत्रों में राशियों की दिशा भी बदल जाती है, इसलिए इस बदलाव को बेहद ही बड़ा माना जाता है। इस दिन भगवान सूर्यदेव की विशेष रूप से पूजा की जाती है।मिथुन संक्रांति को देश के हर हिस्से में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। हालांकि, उड़ीसा में इस त्योहार का विशेष महत्व है। इस दिन लोग अच्छी खेती के लिए बारिश की मनोकामना भगवान सूर्य से करते हैं। मिथुन संक्रांति को रज पर्व भी कहा जाता है। रज पर्व के दिन भगवान सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए कई जगहों पर तो व्रत करे का भी चलन है।
मिथुन संक्रांति की पूजा-विधि: मिथुन संक्रांति का पर्व चार दिनों तक पूरे श्रद्धा-भाव और हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन सिलबट्टे की पूजा की जाती है। सिलबट्टे को लोग भूदेवी मानकर इसकी पूजा करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन सिलबट्टे को दूध और पानी से पहले स्नान कराया जाता है।
फिर सिलबट्टे को सिंदूर, चंदन लगाकर उस पर फूल और हल्दी चढ़ाई जाती है। मिथुन संक्रांति के दिन दान देने का भी बड़ा महत्व है। इस दिन ब्राह्मणों, गरीबों और जरूरतमंदों को दान देने से भगवान सूर्य प्रसन्न होते हैं।
बता दें, मिथुन संक्रांति के बाद से ही वर्षा ऋतु की शुरुआत होती है। इस दिन स्नान और दान करने से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं। ज्योतिष के नजरिये से यह त्योहार काफी महत्वपूर्ण होता है। अगर भगवान सूर्यदेव प्रसन्न हो जाएं, तो शुभ फल की प्राप्ति होती है। सभी त्योहारों में यह पर्व बेहद ही खास होता है।