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हिंदी पंचाग के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के प्रत्येक ग्यारहवीं तिथि को एकाशी कहते हैं। एक वर्ष में कुल 24 एकादशी पड़ते हैं। वहीं, मलमास होने पर इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा पूरे श्रद्धाभाव से की जाती है। मान्यताओं के अनुसार, जिस तरह प्रदोष व्रत भगवान शिव को प्रिय है, उसी तरह एकादशी भगवान विष्णु को पंसद है। ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में पडऩे वाले एकादशी तिथि को अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और पूजा करते हैं। पूजा के समय अपरा एकादशी व्रत की कथा सुनी जाती है, इससे पूजा पूर्ण होती है और पाप से मुक्ति भी मिलती है।
अपरा एकादशी व्रत कथा : प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर और अधर्मी था। छोटा भाई बड़े भाई को मारना चाहता था। एक दिन रात्रि में उस पापी ने बड़े भाई महीध्वज की हत्या कर दी। उसने शव को जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा।
प्रेतात्मा होने की वजह से वह वहां उत्पात करने लगा। एक दिन धौम्य नामक ऋषि पीपल के समीप से गुजरे, तो उन्होंने प्रेत को देखा। ऋषि ने अपने तपोबल से प्रेत के उत्पात का कारण समझा। सबकुछ जान लेने के बाद ॠषि ने उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। दयालु ऋषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए स्वयं ही अपरा एकादशी का व्रत किया, जिसके पुण्य के परिणाम स्वरूप राजा को प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई। वह ॠषि को धन्यवाद देकर स्वर्ग को चला गया। अपरा एकादशी की कथा पढऩे अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है।