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अहमदाबाद। परमात्मा की वाणी स्वरूप उत्तराध्ययन सूत्र हमारी आत्मा में एक महान शांति को प्रदान करती है। पांच प्रकार के स्वाध्याय में धर्मकथा भी एक महत्वपूर्ण अंग है। कहते हंै वाचना-पृच्छना-परावर्तना एवं अनुप्रेक्षा के द्वारा आत्मा को तत्वज्ञान का बोध देकर तत्व में स्थिर करने में आता है। जब तत्व में आत्मा का स्थिरिकरण होता है तभी वह आत्मा धर्मकथा कहने योग्य बनती है धर्मकथा यानि सिर्फ कथा ही कहना ऐसा नहीं बल्कि जानी हुई वस्तु का रहस्य समझना अथवा धर्म का कथन करना वह धर्मोपदेश है। 
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराज श्रोताजनों को संबोधित करते हुए सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है। जिसमें सिर्फ कथाओं का वर्णन बताया है ऐसे आगम का नाम ज्ञाताधर्मकथा है। इसकथाओं में जन सामान्य को जिनेश्वर तक पहुंचाने का तथा जिनेश्वर के शासन को पाने का मार्ग है जिस धर्म में कोई कथा नहीं, जिस धर्म का कोई इतिहास नहीं, जिस देश की कोई कथा नहीं, जिस देशका कोई इतिहास नहीं, तथा जिस राष्ट्र की कोई कथा नहीं, जिस राष्ट्र का कोई इतिहास नहीं उस धर्म का उस देश का तथा उस राष्ट्र की प्रगति कभी नहीं होती है। पूर्व के काल में जो घटना बनी उस इतिहास को धर्मकथा के द्वारा लोगों के समक्ष रखना जरूरी है। पूर्व काल के लोगों में तथा महापुरूषों में जो सात्विकता-सहिष्णुता-सहनशीलता-परहितनिरता विगेरे गुणों थे आजकल के लोगों में वे गुण कम होते जा रहे है ऊंचे आलंबन होंगे तो वैसे गुण लोगों में आएगें। जीवन के महान आदर्शों की गढ़ाई कथा के द्वारा ही होती है।धर्म कथाओं आलंबन रूप है। यदि कोई व्यक्ति गलत रास्ते पर चढ़ा गया हो तो उस व्यक्ति को धर्मकथा के द्वारा परमात्मा के मार्ग पर लाया जा सकता है। नंदिपेण ने अनेक स्त्रीओं को छोड़कर संयम का मार्ग अपनाया परंतु किसी गाढ़ कर्म के उदय से उसका पतन हुआ।जिस तरह घी का प्याला किसी दूसरे बर्तन में खाली करे तो उसमें कुछ घी छिपका हुआ रह जाता है उसी तरह नंदिषेण संसार में आए परंतु उनमें वैराग्य के संस्कार रह गए। उन्होंने निश्चय किया जब तक मैं संयम के मार्ग पर नहीं लाऊंगा तब तक मुंह में अन्न-पाणी का स्वीकार नहीं करूंगा। जरा सोचो कि वेश्या के घर में रहने वाला मनुष्य किस प्रकार का होता है? उनकी धर्मकथा में कितनी ताकात है कि बारह वर्ष तक प्रतिदिन उन्होंने दस लोगों को नाद था मैं भले इस संसार रूपी कीचढ़ में फंस गया लेकिन दूसरों को तो इस संसार रूपी कीचढ़ में पडऩे नहीं दूंगा।
पूज्यश्री फरमाते है कितने लोग समझते है धर्मकथा सभा के बीच ही होती है लेकिन ऐसा नहीं है। हमारे पूज्य वडील श्री जयंत सूरीश्वरजी महाराजा चलते फिरते धर्मकथा के मिशन थे। वे जब उपाश्रय से बाहर निकलते दो-चार पुस्तक अपने साथ लेकर निकलते थे। रास्ते में जो भी लोग उन्हें मिलते कुछ न कुछ धर्म की बातें उन्हें समझाते थे। उनके इस उपदेश से कितने लोगों के जीवन में परिवर्तन आया, कितनों ने आजीवन व्यसन छोड़ दिया। धर्मकथा कहकर लोगों में ज्ञान-दर्शन एवं चारित्र के भाव पैदा करना है।
सत्ती दमयंती परमात्मा के सासन को पाई हुई अपने सत्व से 500 चोरों को धर्मकथा कहकर प्रतिबोध देकर चोरी के मार्ग को छुड़वाया। साध्वीजी भगवंत पाट पर बैठकर व्याख्यान नहीं देते है फिर भी कितनी आत्माओं को धर्मकथा के द्वारा संयम के भाव उनमें प्रगटाते है। वर्तमान में कितने आचार्यों तथा मुनि भगवंत कहते है कि हमें संयम की प्रेरणा साध्वीजी भगवंतो से ही मिली है।
जिन शासन को महान आचार्य भगवंत हरिभद्र सूरिजी म.सा. की भेंट भाकिनी महत्तरा साध्वीजी के धमोंपदेश से ही प्राप्त हुई है।
स्वाध्याय वह तो एक महान वृक्ष है उसमें वाचना वह स्वाध्याय वृक्ष का बीज है पृच्छना वह अंकुर है, परावर्तना वह पेड़ का तना है, अनुप्रेक्षा वह फूल है तो धर्म कथा वह फल है। कहते है ज्ञान जितना पाओंगे उस ज्ञान का परावर्तन जितना बढ़ाओंगे, उस ज्ञान पर चिंतन करोंगे उतना ही उस ज्ञान का फल स्वरूप धर्मकथा मीठा होगा। बस स्वाध्याय के इन पांच प्रकारों को अच्छी तरह से समझकर उसके फल का स्वाद आप भी लेकर ओरों को भी चखाकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।