रिजवान अंसारी
मिड-डे मील योजना को भ्रष्टाचार से मुक्त करने की दिशा में केंद्र सरकार ने एक बेहतर पहल की है। दरअसल, कोरोना काल में करीब एक साल से देश भर में स्कूल बंद हैं। ऐसे में, छात्रों को स्कूल जाने का मौका नहीं मिल रहा है। नतीजतन, बच्चों के पोषण स्तर को सुरक्षित रखने वाली मिड-डे मिल योजना एक साल से ठप पड़ी है। सरकार ने एलान किया है कि इस योजना के पात्र सभी बच्चों के खाने की लागत के बराबर पैसा उनके खातों में भेजा जाएगा। इस फैसले से देश भर के 11.20 लाख सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में पहली से आठवीं कक्षा में पढऩे वाले लगभग 11.8 करोड़ छात्र लाभान्वित होंगे।
इसके लिए सरकार ने 1,200 करोड़ रुपये का अतिरिक्त फंड जारी करने की बात कही है। ऐसा माना जा रहा है कि इससे योजना को गति मिलेगी। सीधे छात्रों के खाते में पैसे जमा होने से न केवल विद्यालयों में होने वाले भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी, बल्कि बच्चों के पोषण में भी आशातीत सुधार होगा। मिड-डे मिल स्कीम एक ऐसा कार्यक्रम है, जो हमेशा ही नकारात्मक खबरों के चलते चर्चा में रहता है। अभी भले ही कोरोना काल के चलते सरकार ने यह कदम उठाया हो, लेकिन इस नियम को हमेशा के लिए लागू कर देना ज्यादा लाभकारी साबित हो सकता है। इसकी दो बड़ी वजहें हैं। पहली वजह है कि इससे भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगा। मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल ने 2019 में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में मिड-डे मिल योजना में 52 भ्रष्टाचार के मामलों के सामने आने की बात कही थी। इसमें मुख्य रूप से हिंदी पट्टी के राज्यों की चर्चा थी। नियमित रूप से छात्रों को भोजन न देने और भोजन की गुणवत्ता दिनोंदिन खराब होने से इस योजना की विफलता की पटकथा लिखी जा रही है।
जबकि शिक्षा से जुड़ी ऐसी योजनाओं की सफलता के लिए हर संभव कोशिश होनी चाहिए, क्योंकि, इस योजना से स्कूलों में दाखिले का फीसदी तो बढ़ा ही है, साथ ही देश की साक्षरता दर में भी इजाफा हुआ। हालांकि सीधे छात्रों के खाते में पैसे भेजने में एक चुनौती है कि स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति में कमी आ सकती है। लेकिन, हर महीने छात्रों की एक न्यूनतम उपस्थिति को अनिवार्य बनाने जैसे कदम उठाए जा सकते हैं। भ्रष्टाचार एक समस्या तो है ही, विद्यालयों में स्वच्छता के साथ भोजन तैयार करना और बच्चों को सुरक्षित खाना परोसना भी एक चुनौती है। ऐसी कई तस्वीरें सामने आई हैं, जिसमें बिना साफ-सफाई का खयाल रखे बच्चों के लिए खाना बनाते देखा गया है। ऐसे में सीधे उनके खाते में रकम जाने से इन सभी पचड़ों से बच्चों को निजात मिलेगी। दरअसल 'डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफरÓ ने कई योजनाओं में बिचौलियों को खत्म किया है। कृषि से लेकर कल्याणकारी योजनाओं तक में सरकार ने इस स्कीम को लागू किया, जिससे भ्रष्टाचार में कमी हुई है।
दिसंबर, 2018 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के प्रोग्राम अप्रूवल बोर्ड ने बताया कि बिहार और उत्तर प्रदेश में लगभग आधे बच्चों को मिड-डे मील नहीं मिल पाता है। बिहार में प्राथमिक स्तर पर 39 फीसदी और उच्च प्राथमिक स्कूलों में 44 फीसदी बच्चे, जबकि उत्तर प्रदेश में क्रमश: 41 और 47 फीसदी बच्चे मिड-डे मील से वंचित रह जाते हैं। साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर भी लगभग आधे बच्चों को मिड-डे मील नसीब नहीं होने की बात कही गई। यानी अगर लॉकडाउन न हो और स्कूल खुले भी रहें, तो लगभग आधे बच्चे इस स्कीम से लाभान्वित नहीं हो पा रहे हैं। ऐसे में, सीधे बच्चों के खातों में रकम भेजने के फैसले को दीर्घकालिक बनाने की जरूरत है। यह कतई नहीं भूला जाना चाहिए कि इस योजना को शुरू क्यों किया गया था? इसके पीछे मकसद था कि स्कूल में पढ़ रहे छोटी आयु के बच्चों को पोषणयुक्त भोजन मुहैया कराया जाए। कुपोषित, अविकसित और कमजोर व्यक्ति समाज में पीछे छूट जाते हैं और राष्ट्र निर्माण में उनका बहुत कम या कोई योगदान नहीं होता है। इसलिए, गरीब तबके के बच्चों को कुपोषण से बचाने वाली मिड-डे मील जैसी योजना का प्रगति करना बेहद जरूरी है।
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