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अहमदाबाद। महापुरुष हमें अपनी आराधना एवं साधना से एक पवित्रता का झरना बहाते हैं। जिस तरह हिमालय से पवित्र गंगा का सरणा बहता है। काल कुछ ऐसा आ गया कि जो आगम महापुरूषों ने बनाये हथे। वे आगम हमें संपूण4 नहीं मिल रहे है। कहते है ज्ञान के अभिलाषी के लिए अमृत का एक बिंदु भी यदि मिल जाए तो पर्याप्त है। ज्ञान रूपी अमृत का सागर हम नहीं मिला पाए हमें तो सिर्फ इस सागर से एक बिंदु जितने ज्ञान की ही प्राप्ति हुई है। अमृत के एक बिंदु से ही कायाकल्प हो जाता है, काया में परिवर्तन आ जाता है। अनादिकाल से मन में जो मिध्या विचारों का आग्रह एवं संस्कार जमे है। वे शिथिल हो जाते हंै। खास ख्याल परवकर उत्तराध्ययन सूत्र के चिंतन एवं मनन से महापुरूषों की बातों को जीवन में उतारना है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराज श्रोताजनों को संबोधित करते हुए सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है। सम्यक्त्व पराक्रम में जीवन श्रुत की आराधना से क्या प्राप्ता करता है? श्रुत की आराधना से जीव अज्ञान का क्षय करता है एवं क्लेश को प्राप्त नहीं करता है। कहते है, हमारे पूर्वजों में कितने लोगों को पढऩा नहीं आता था। ऐसे लोगों के साथ जब हम बात करते है अथवा तो उनके साथ चर्चा करते है तब पता चलता है कि उनके पास जबरदस्त ज्ञान का खजाना है तथा वे बुद्धिशाली भी होते है। कभी कभी हमें प्रश्न होता है कि ये लोग पढ़े लिखे नहीं है तो इनके पास थे ज्ञान कहां से मिलाया? तब कोई एक बुद्धिशाली कहता है जिसे सुनते है उस पर विचार करने से वह बात दिमाग में फीट हो जाती है। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है सुनकर उस पर विचार करना वह श्रुत की महिमा है।
कितने व्यक्ति बात को एकाग्रता से सुनते है। भले वह पढ़ा लिखा न हो उसके दिमाग में बात फीट हो जाती है और वह पंडित कहलाता है। जैन शास्त्र में एक अच्छी प्रणाली  है कि गुरू के मुख से शास्त्रों का श्रवण करना चाहिए। अन्य भी कई प्रकार की क्रियाएं होती है शास्त्रकार महर्षि फरमाते है अन्य क्रिया को गौण करके गुरू के मुख से शास्त्रों का श्रवण जरूर करना चाहिए। आपको किसी गुरू के साथ संपर्क है आप उन्हें मिलने गए आपकी बात सुनाई आनंद हुआ और वापिस घर लौट जाते हो। आपको आपकी बात उनको सुनाने के बजाय उनके मुख से कुछ न  कुछ बात सुननी चाहिए। संसारी की बातें सुख के बजाय दु:ख की अधिक होती है। गुरूओं के पास अनाधि काल से फरियादे करते रहे है एवं ये फरियाद अनंतकाल तक चलेगी।
पूज्यश्री फरमाते है, गुरूओं के पास उनकी हमेशा यही फरियाद होती है कि मेरे पास इतनी संपत्ति है इतनी मिलानी बाकी है, मेरे शरीर में कुछ न कुछ रोग चालु है स्वस्थता ही नहीं है अब अपने आप में परिवर्तन लाकर कहो कि कुछ ऐसा सुनाओं जिससे श्रुत रूपी कान में वे शब्द पड़े और जीवन का नक्सा ही बदल जाए।
एक घर में सासु-बहु का रोज झघड़ा होता था। उसी दौरान उस गांव में किसी गुरू भगवंत का आगमन हुआ। सासु बहु की फरियाद लेकर गुरू भगवंत के पास गई। साहेब! ऐसा कोई मंत्र दो जिससे बहु झघडऩा बंद कर दे पूज्यश्री फरमाते है जब तक व्यक्ति की मान्यता नहीं बदलाती तब तक समाधान नहीं होता है। साधु ने सासु को मंत्र के रूप में सचित जल का प्रयोग करने को कहा। वह इस तरह करना कि जब बहु का बोलना चालु हो मुंह में पानी रख लेना। एक बात का ख्याल रखना, जवाब देना चालु करोंगे तो पानी गले में उतर जाएगा और झगड़ा होगा। सासु ने तीन-चार दिन तक बिना कुछ बोले मुंह में पानी रखा। पूज्यश्री फरमाते है एक सुधरा हुआ दूसरों को सुधारता है। बहु ने झघडऩा बंद कर दिया। सासु खुश होकर गुरू भगवंत के पास गई और कहा, गुरू महाराज कमाल हो बहु सुधर गई। ये तो एक झांकी थी, कि गुरू की बात से झघड़ा खत्म हुआ। आप यदि गुरू के मुख से शास्त्र का श्रवण करेंगे जीवन में बहुत कक्षा पाओंगे।
कितने श्रावक गुरू भगवंत के पास जाकर कहते है साहे, मांगलिक सुनाओं। मांगलिक में श्लोक आता है उस श्लोक के अर्थ को कोई नहीं पूछता है यदि आप श्लोक के अर्थ को गुरू से पूछोंगे सच्चे श्रुत की आराधना के दो फल बताए है अज्ञान का क्षय एवं संक्लेश का अभाव। कहते है व्यक्ति जब श्रुत की आराधना करता है तब उसके सारे संशय मिट जाते है दूसरे शब्दों में कहे तो अज्ञान नष्ट हो जाता है। क्योंकि निरंतर स्वाध्याय करने से तथा शब्दों की मिमांसा एवं विमर्श करते रहने से विशिष्ट तत्वों की उपलब्धि यानि जानकारियां बढ़ती है। कितनी बार देखते है कि अज्ञान के कारण आग्रह एवं एवं राग द्वेष रहता है। चित्त संक्लिष्ट रहता है। जब तक व्यक्ति को तत्व की प्राप्ति नहीं हो जाती तब तक संक्लिष्टता नहीं मिटती है। संक्लिष्ट व्यक्ति बैचेन रहता है मुख पर व्यग्रता काया में विकार एवं दिखने में भयानक दिखता है इस प्रकार के व्यक्ति को कोई देखना भी पसंद नहीं करते है
पूज्यश्री फरमाते है जब व्यक्ति अक्लेश में आएगी उसके मुख पर ज्ञान की परिणति दिखेगी तथा उसकी प्रतिभा ही कुछ अलग नजर आएगी।
आपके साथ कोई कैसा भी व्यवहार क्युं न करे टेक आईटी ईजी सहजता से स्वीकारो। किसी ने गाली दी। बस क्लेश का वातावरण मत बनाओ। गुरू की वाणी का श्रवण किया है तो आपमें क्लेश नहीं सोना चाहिए। बस, क्लेश बगैर का जीवन जीओं। आपभी क्लेश में न रहो ओरो को भी क्लेश में न रखकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।