अहमदाबाद। उत्तराध्ययन सूत्र प्रश्नोत्तरी की हारमाला है। जहां प्रश्न उठता है, वहां सुयोग्य आस्था को पूछकर उसका जवाब मिला लेना चाहिए। जहां शंका है, वहां समाधान अवश्य मिलाना है। आप वांचन करते हो, आप श्रवण करते हो, वांचन एवं श्रवण में श्रोता एवं वक्ता का अनुसंधान शायद हो भी सकता है, शायद नहीं भी होता हो परंतु प्रश्नोत्तर के वक्त श्रोता एवं वक्ता का अनुसंधान जरूर होता है वहां ज्ञान का विनिमय होता है।
अहमदाबाद में विराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराज श्रोताजनों को संबोधित करते हुए सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है। बालक जब एक डेढ़ वर्ष का होता है वह चारों ओर नजर फिराकर देखता रहता है कि ये क्या है? उस बालक के मनोविज्ञान में जानने की कुतुहल वृत्ति रहती है। आज भी जब अनेक वक्ताओं, प्रवचन की धारा को प्रवाहित करते है तब सभा में बैठे अनेक जिज्ञासु प्रश्न पूछते है और वक्ता उन प्रश्नों का समाधान करते है। ये जो प्रश्नोत्तर की पद्धति है इससे लोगों को बहुत कुछ जानने को मिलता है परमात्मा की वाणी रूप प्रवचन का श्रवण हमारे पुण्योदय से ही प्राप्त होता है।
आज का प्रश्न है सुख शात से जीव को क्या मिलता है? सुख शात से जीव को विषयों के प्रति अनुत्सुकता होती है। अनुत्सुकता से जीवन अनुकम्पा करने वाला, अनुद्भट (प्रशांत) शोक रहित होकर चारित्र मोहनीय कर्म का क्षय करता है
कहते है हरेक व्यक्ति सुख के नजदीक जाने की सोचना है कोई सुख से दूर होना नहीं चाहता है। इन्द्रियों से जो सुख मिलता है वह सुख तो बाह्म सुख है हम सिर्फ शरीर को आराम देते है और इन्द्रियों से सुख सुख मिलाना है। लोग ओलोम्पिक रेस में भाग लेते है। उस रेस में सिर्फ 5-10 मिनिट दौडऩे का होता है मगर स्पर्धा में प्रथम आने के लिए उसे रोज प्रोक्टि करनी ही पड़ती है नियमितता से प्रेक्टिस करने से ही जीत होती है। प्रेक्टिस करते है शरीर को श्रम तो पड़ेगा ही तभी रेस में जीत होगी।
पूज्यश्री फरमाते है सुख एक ऐसी चीज है जो आपको दौड़ाती है। आप उसके पीछे दौडऩे के बजाय आपके पीछे उसे दौड़ाना चाहिए। इसका कारण आप जितनी सुविधाएं देते रहेंगे शरीर कोमल बनता जाएगा। दस दिन तक हाथ एक ही शॉफ में रहे उसे ऊंचा नीचा न करो तो हाथ मूवमेंट नहीं करेगा जिस शॉप में था वैसा ही रहेगा इसी तरह शरीर को भी तालीम देनी ही पड़ेगी उस शरीर को कठोर, संयम में रखना पड़ेगा, कष्ट भी देना पड़ेगा तभी आप सुख से दूर रह पाओंगे वरना बाह्म सुख की प्राप्ति हुई आत्मिक सुख से वांछित रह जाओंगे।
महापुरुषों के चरित्र बढ़ते समय ऐसे महापुरूष भी हुए जो अठारह घंटो तक काम में व्यस्त रहने से कभी खाने का, कभी पीने का उन्हें याद नहीं आता था। किसी ने उनको पूछा आपको अपने काम के समय कभी खाना-पीना अथवा आराम याद नहीं आया? वे कहते है यदि याद को फरियाद के रूप में करेंगे दु:खी हुए बिना नहीं रहेंगे। जिन्हें अपने लक्ष्य की सिद्धि करनी है उन्हें बाह्म सुख की चिन्ता न करके आंतरिक सुख की प्राप्ति के लिए ध्यान देना होगा।
मोक्षमार्ग के पथिक को अपना लक्ष्य पाने हेतु सम्यग् दर्शन सम्यग् ज्ञान एवं सम्यग् चारित्र के साथ अनुसंधान करना पड़ेगा। परमात्मा भी यही कहते है कि एक बार इन तीन रत्नों से अनुसंधान जिसे हो गया उसे सुख के पीछे नहीं जाने का है बल्कि सुख से दूर रहने का प्रयत्न करता है उसकी उत्सुकता का नाश हो जाता है। ये क्या चीज है? ऐसी कुतूहलता उसमें नहीं रहती है, पढऩे लिखने में व्यस्त है तो उसे खाने-पीने की याद नहीं आती है। दशवैकालिक सूत्र में बताया, साधु जब आतापना लेना है धूप में खड़ा रहता है तब वह सामने से प्रतिकूल संयोगों को ललकारता है। प्रतिकूल संयोगो को ललकार करने वाले में उत्सुकता नहीं होती है। जो आत्म विश्वास से कार्य करता है उसकी प्रगति होगी ही।
दुर्बल व्यक्ति परीक्षा का रिसल्ट आता है तब वह ऊंचा नीचा हो जाता है क्योंकि उसमें आत्मविश्वास पूण4 विश्वास है कि किसी की ताकात नहीं उसे फेल कर सके। कहते है सुख को दूर करने की जिनमें ताकात है, वह धैर्यवान् बनता है। धैर्यवालों को कुतूहल नहीं होता है धैर्य वालों को विश्व दर्शन होता है।
मोक्ष मार्ग की साधना के लिए कितनी आत्मां प्रारंभ करती है परंतु आगे नहीं बढ़ पाती है वह पीचे हट जाती है। मोक्ष मार्ग के सफल पथिक को ऐसी आत्माओं पर करुणा आती है। शास्त्र में मेघकुमार का दृष्टांत प्रसिद्ध है। मेघकुमार राज्य सुख को छोड़कर संयम लिया। पहली ही रात को दरवाजे पर संथारा होने से मुनिओं के आगमन निर्गमन से संवारे पर धूल आई। पूरी रात नींद नहीं आ। संयम से मन उठ गया। वीर ने मेघकुमार को समझाया कि वत्स। संयम से वापिस संसार में लौटना है? प्रभु वीर ने उनका पूर्वभव सुनाकर संयम में स्थिर किया। यह प्रभु की भाव अनुकंपा है। उनके मधुर वचन मेघकुमार में भाव को प्रकट किया। छोटा बच्चा कड़वी दवा पीने के लिए रोता है मां जब उसके मुंह में दवा डालती है तो वह लाते मारता है फिर भी मां जबरदस्ती उसे पीलाकर रहती है बस, प्रभु और गुरू भी कडुआ घूंट पिलाते है।
पूज्यश्री फरमाते है सभी संयोगों एक सरीखे नहीं होते है। जिसने जो सोच कर रखा वह कभी होता नहीं है तथा होने वाला भी नहीं। आज सत्ता लेकर बैठने वालों को कल भिखारी भी बनना पड़ता है। सत्ताधीश को सरकारी बंगला मिलता परंतु जब छोडऩे का समय आता है उसे दु:ख होता है। जो सुख में फंसे है उनको एक दिन दु:ख में भी गरकाब होगा। बस सुख से दूर होकर चारित्र मोहनीय का क्षय करके आत्मा से परमात्मा बनें।
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