जब से मानव ने समूह में रहना शुरू किया, तब से ही उसने कृषि और पशुपालन प्रारंभ कर दिया। भारत के वांग्मय में खेती और पशुपालन का महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधियों के रूप में वर्णन आता है। वेदों में भी विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों, कृषि आदि का वर्णन है। खेती से जुड़ी हर गतिविधि को भारत में उत्सव के रूप में मनाने की परंपरा है। ऋतुओं के अनुसार खेती की वैज्ञानिक परंपरा भी है।
अन्न से कार्बोहाइड्रेट, दालों से प्रोटीन, फल-सब्जियों से विटामिन सभी भारत की भोजन की थाली में मिलता है। और यह सब मेहनतकश किसानों द्वारा देश को उपलब्ध करवाया जाता है। उत्तम खेती, मध्यम व्यापार और नीच चाकरी (यानी नौकरी) ऐसी कहावत देश में प्रचलित रही है। किसान खेती में नयी-नयी खोजें करते हुए उत्पादन बढ़ाता रहा है। साथ ही पशुपालन, डेयरी, मुर्गी पालन, मत्स्य पालन, बागवानी समेत कई गतिविधियां गांव में चलती हैं।
गांव के कारीगर अपने हुनर से गांव और शहरों के लिए कपड़ा, बर्तन, लोहे एवं अन्य धातुओं के सामान आदि की पूर्ति करते रहे हैं। अंग्रेजों के जमाने में उद्योगों के पतन, किसानों के शोषण और आर्थिक पतन के चलते खेती- किसानी का क्षरण इतिहास के पन्नों में दर्ज है। किसान की हालत कैसी भी रही हो, खेती को आज भी एक पवित्र व्यवसाय माना जाता है। लेकिन, आजकल औद्योगिक कृषि के पैरोकार उसी जीवनदायिनी खाद्य एवं पौष्टिकर्तापूरक परंपरागत कृषि पर ही प्रश्न उठा रहे हैं। वैश्विक कॉरपोरेट बिल गेट्स परंपरागत कृषि को पर्यावरण के लिए अत्यंत घातक बता रहे हैं। वे चाहते हैं कि कृषि के तौर-तरीकों में परिवर्तन किये जायें, ताकि पर्यावरण पर उसके दुष्प्रभाव को न्यूनतम किया जा सके। हाल ही में 'लांसेटÓ में प्रकाशित एक शोध के अनुसार पिछले 25 वर्षों में दुनिया के एक प्रतिशत धनी लोगों ने करीब 310 करोड़ लोगों की तुलना में दोगुने से ज्यादा प्रदूषण फैलाया है। बिल गेट्स यह नहीं बताते कि दुनिया में मात्र 11-15 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कृषि से होता है। वनों के कटने से 15-18 प्रतिशत और खाद्य प्रसंस्करण, ट्रांसपोर्ट, पैकिंग और रिटेल से 15-20 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता है। शेष 45-56 प्रतिशत उत्सर्जन खाद्य के अतिरिक्त गतिविधियों से होता है। बिल गेट्स का सुझाव है कि ऐसे बीज, कीटनाशक, खरपतवार नाशक, इस्तेमाल किये जायें, जिससे छोटे किसान ज्यादा से ज्यादा उपज ले सकें और आमदनी बढ़ा सकें। वे ज्यादा उपज के लिए जीएम फसलों, राउंडअप सरीखे खतरनाक खरपतवार नाशक और कीटनाशकों की वकालत करते हुए दिखाई देते हैं। दुनिया में खाद्य पदार्थों के उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत छोटे किसानों से आता है। अमेरिका में बड़े भूभाग पर बड़े-बड़े खेतों पर खेती होती है। मीलों तक फैले इन खेतों में काफी कृषि उत्पादन होता है। लेकिन वह उत्पादन लोगों के खाने के लिए नहीं, बल्कि एथेनॉल या बायो ईंधन बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।
यह औद्योगिक कृषि दुनिया के 75 प्रतिशत भूभाग पर की जाती है, लेकिन वह दुनिया की खाद्य आवश्यकताओं का 20 प्रतिशत ही उपलब्ध कराती है। ऐसे में छोटे किसानों के द्वारा दुनिया के 80 प्रतिशत खाद्य पदार्थों की आपूर्ति होती है, वह दुनिया में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का चार प्रतिशत भी नहीं है। बिल गेट्स छोटे किसानों द्वारा पशुपालन और गोपालन को भी पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन मानते हैं।
वास्तव में पर्यावरण का तर्क गलत स्थान पर प्रयोग किया जा रहा है। छोटे किसानों द्वारा प्रकृति के साथ सामंजस्य से खेती होती है। उनके द्वारा पशुपालन से प्राकृतिक तरीके से लोगों की पौष्टिकता की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। उस व्यवस्था में खलल हमारी खाद्य शृंखला को बाधित कर सकती है, जो दुनिया में खाद्य संकट का कारण बन सकता है। जीएम बीजों और राउंडअप सरीखे खरपतवार नाशकों के कारण वास्तव में पर्यावरण और जैव विविधता और प्रकृति चक्र संकट में है।
जहां अमीर देशों में लोग ऑर्गेनिक खाद्य पदार्थों की तरफ बढ़ रहे हैं, वहीं गरीब मुल्कों में खतरनाक फसलों को पर्यावरण के नाम पर बढ़ावा देना कहां तक उचित है? धर्मात्मा और दानवीरता का चेहरा लेकर बिल गेट्स दुनिया में खास तौर पर गरीब मुल्कों की स्वास्थ्य नीति, टीकाकरण नीति, कृषि नीति समेत कई प्रकार की नीतियों में दखल दे रहे हैं। पर्यावरणीय संकट से पार पाने के लिए जो उनका सुझाव कि छोटे किसान परंपरागत खेती और पशुपालन त्याग कर उनके सुझाये गये उपायों, बीजों, कीटनाशकों और खरपतवार नाशकों को अपनायें, यह किसी भी हालत में कल्याणकारी नहीं है।
यह 80 प्रतिशत खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति करनेवाली खेती पर कुठाराघात करने वाला है। इससे किसानों की निर्भरता कंपनियों के बीजों और रसायनों पर बढ़ जायेगी। समझा जा रहा है कि बिल गेट्स कंपनियों की बिक्री बढ़ाने के लिए जीएम बीजों और खरपतवार नाशकों की वकालत कर रहे हैं। विभिन्न देशों के नीति-निर्माण में बिल गेट्स का दखल है।
लेकिन हमें समझना होगा कि दुनिया में पर्यावरण संकट अमीर मुल्कों द्वारा अत्यधिक ऊर्जा और वस्तुओं की खपत और उससे होनेवाले उत्सर्जन के कारण है। अमीर मुल्कों को बाध्य कर उनके द्वारा उत्सर्जन को न्यूनतम करवाते हुए पर्यावरणीय संकट का हल खोजना जरूरी है। छोटे किसानों को दोषी मानकर गलत दिशा में कृषि को मोडऩा दुनिया के लिए भारी संकट का कारण बन सकता है।