अहमदाबाद। उत्तराध्ययन सूत्र की वैराग्यमय धारा प्रवाहित हो रही है। कितने जिज्ञासु सवाल पूछते हैं तो महापुरूषों उन सवालों का जवाब भगवान महावीर से मिलाते हंै। कहते हैं समस्या वैश्यिक है जबकि समाधान वीतरागिक है। महापुरूषों के वचनों पर जब विश्वास आता है तब जाकर शास्त्रों पर बहुमान पैदा होता है।
अहमदाबाद में विराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ. देव राजयश सूरीश्वर जी महाराज श्रोताजनों को संबोधित करते हुए सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते हैं। उत्तराध्ययन सूत्र के सम्यक्त्व पराक्रम अध्ययन में आज का प्रश्न है, जीव उपधि से क्या प्राप्त करता है? पहले उपधि का अर्थ जान लेते हंै। उप-नजदीक धि-धारण करना। कम से कम चीजों को अपने हाथ में धारण करना, नजदीक में रहने वाली चीज उपधि है। दूर सुदूर जो चीज है वह उपधि है। साधु को अपने पास जितना बने उतनी कम चीज रखनी चाहिए। जितनी आवश्यकता है उतनी ही चीज रखता है वह उपधि है।
संत की एक चीज खो गई। पुलिस को समाचार मिले। वे संत के पास आकर पूछा। आपका क्या खो गया है? तब संत ने कहा, मेरा बिछौना-साफा-रस्सी और चद्दर खो गई है तभी दूसरा पुलिस अंदर आया और कहा मुझे तो सिर्फ एक धोतिया ही मिला है और आप चार-चार चीज खो गई है ऐसा क्यों बता रहे हैं। देखो मैया, जब मैं चलते हुए थक जाता हूं, तो इस धोती को बिछाकर उस पर सो जाता हूं, ठंडी के मौसम में ठंडी ज्यादा लगे तब ओढ़कर सो जाता हूं, पानी की प्यास लगे तब उस धोतिये को डोरी बनाकर पानी खींच लेता हूं, धूप में जब चलकर जाता हैूं, गर्मी लगती है तो उस धोतिए का फेंटा बनाकर पहना, इसलिए मैंने चार चीज खो गई ऐसा कहा।
बात सिर्फ इतनी है जितनी चीज ज्यादा रखेंगे। उतनी ज्यादा तकलीफ ज्यादा होती है। हम ऐसा सोचते हैं कि चीज जितनी ज्यादा हमारे पास होगी इतनी व्यवस्था बराबर रहेगी, मगर व्यवस्था के बदले दिक्कत खड़ी हो जाती है। इसीलिए उत्तराध्ययन सूत्र में बताया उपधि के पच्चक्खाण से भीव कशा प्राप्त करता है? सुन्दर जवाब बताया है अपरिमंथन। परिमंथन आने विध्न। उपधि ज्यादा होगी तो उसका रक्षण भी करना पड़ेगा?
शास्त्र के नियम के मुताबिक साधु को शेष उपधि का प्रतिलेखन करने को कहा है। चीज जितनी ज्यादा होगी प्रतिलेखन में समय अधिक जाएगा जिसके कारण स्वाध्याय करने के लिए कम समय मिलेगा। ज्यादा उपधि होगी स्वाध्याय में नुकसान होगा।
पूज्यश्री फरमाते है बिहार का हमारा अनुभव है चरबांक नजर वाले जब साधुओं की दिनचर्या देखते है उन्हें आश्चर्य होता है। एक बार बिहार करके किसी घर में रूकने का हुआ। पात्रा उपधि विगेरे छोड़कर रखा था। दस मिनिट के बाद विहार है, ऐसी जाहिरात किसी साधु ने की। घर मालिक सोच में पड़ गया इतना बिखेरा किया है कब समेटेंगे लेकिन उनको आश्चर्य हुआ कि उपधि कम होने से दस मिनिट में सब कुछ समेट कर विहार करके निकल गए। भाई साहेब विहार में साथ चले तो कहां, साहेब! एक बात पूछुं। आप लोग कुछ देर पहले इतना सारा बिखेर कर बैठे थे और जैसे ही विहार का टाईम हुआ सब कुछ समेट लिया थे किस प्रकार हुआ? तब हमने कहां हम कम साधन से ज्यादा उपयोग करते है। साधु मुखपाठ स्वाध्याय करता है पोथी नहीं रखते है। पुस्तक रखना चालु करेंगे चीज बढ़ जाएगी। उपधि बढ़ न जाए इसीलिए कम चीज रखते है। उपधि जितनी कम उतना भगवान का ध्यान आत्मा का ध्यान तथा संयम का पालन अच्छी तरह से हो सकेगा। कहते है उत्तराध्ययन सूत्र में बताया उपधि का पच्चक्खाण करेंगे तो आकांक्षा पैदा नहीं होगी। कितने भक्ति करने वाले श्रावक चौमासा शुरू होने के पूर्व साधुओं के लिए अनेक चीज इकट्ठी करके रखते है है एक भी चीज गुरूमहाराज लाभ दे तो अच्छा है। हमने उन श्रावकों को कहां आप ये सब क्या कर रहे हो? साहेब आपको चीज वहोराके हम मुक्त बन जाए इसमें, मुक्त आप बन जाओंगे, लेकिन आप से चीज लेकर हम बंध जाएगे इससे अच्छा है, कम चीज रखना है।
कितने श्रीमंत एवं श्रावकों को देखा है, चीज की मर्यादा हेतु चौदह चौदह नियम का पालन करते है इतनी चीज से ज्यादा चीज नहीं रखना मर्यादा में रहते है। बस, उपधि रहित जीवन आकांक्षा से मुक्त होकर उपधि के अभव में क्लेश को प्राप्त नहीं करता है।
दूसरा प्रश्न आहार के प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है? आहार जरूरी है। ऋषभदेव भगवान ने 13 महिने 13 दिन उपवास करके पारणा किया ही था। दशवैकालिक सूत्र में बताया, साधु को आहार मिला तो संयम की वृद्धि जानना, आहार ने मिले तो तप की वृद्धि हुई। इस तरह आहार के प्रत्याख्यान से जीव जीवन की आशंसा-कामना के प्रयत्नों को विच्छिन्न कर देता है। जीवन की कामना के प्रयत्नों को छोड़कर वह आहार के अभाव में भी संक्लेश नहीं करता है। बस, संक्लेश बगैर का जीवन जीकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।
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