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शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत प्रत्येक मास के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को रखने का विधान है। प्रदोष का व्रत भोलेनाथ भगवान शिव शंकर को समर्पित है। शास्त्रों के अनुसार, मंगलवार को प्रदोष का व्रत पडऩे पर इसे भौम प्रदोष कहा जाता है। हनुमान जी को भगवान शिव का ही रूद्रावतार माना जाता है, इसलिए मान्यता है कि भौम प्रदोष का व्रत करने से हनुमान जी भी प्रसन्न होते हैं। इसके साथ ही व्यक्ति के मंगल ग्रह संबंधी दोष भी समाप्त हो जाते हैं। 22 जून को पडऩे वाला भौम प्रदोष का संयोग अति शुभ फलदायी है। यहां हम विस्तार से भौम प्रदोष की तिथि, मुहूर्त तथा पूजा विधि के बारे में जानेंगे...
शास्त्रों में बताये नियमानुसार, मंगलवार को पडऩे वाला प्रदोष व्रत, भौम प्रदोष कहलाता है। यह संयोग इस वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को पड़ रहा है। यह तिथि 22 जून को 10 बजकर 22 मिनट से प्रारंभ होकर 23 जून को प्रात: 6 बजकर 59 मिनट तक रहेगी। हालांकि भौम प्रदोष काल 22 जून को शाम 07 बजकर 22 मिनट से रात्रि 09 बजकर 23 मिनट तक रहेगा।इस समय में प्रदोष व्रत की पूजा करें। इस दिन भक्तिभाव से भगवान शिव की आराधना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा रोग-दोष से मुक्ति मिलती है।
भौम प्रदोष व्रत की पूजन विधि : भगवान शिव अपने भक्तों से अतिशीघ्र प्रसन्न होते हैं, इसलिए ही उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है। प्रदोष के दिन भोलेनाथ को भक्तिभाव से बेल पत्र और जल चढ़ाने मात्र से भी प्रसन्न किया जा सकता है। शास्त्र सम्मत विधि से पूजन करने के लिए व्यक्ति को प्रदोष के दिन प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त होकर रेशमी कपड़ों से भगवान शिव के मण्डप का निर्माण करना चाहिए। इसके बाद शिवलिंग को स्थापित कर, आटे और हल्दी से स्वास्तिक बनाएं तथा भगवान शिव को प्रिय बेलपत्र, भांग, धतूरा, मदार पुष्प, पंचगव्य का भोग लगाना चाहिए। 
भगवान शिव के पंचाक्षर मंत्र से आराधना करें तथा संकल्प लेकर फलाहार व्रत रखना चाहिए। व्रत का पारण अगले दिन चतुर्दशी को स्नान – दान के साथ करना चाहिए।