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अहमदाबाद। सम्युक्त्व पराक्रमों सत्य की एक महान खोज है। सत्य को मिलाने के लिए आत्म साधना करके प्रत्यक्ष करना पड़ेगा आत्म साधना किस तरह होती है इसकी जानकारी हमें गुरु से मिलानी पड़ेगी। गुरू के पास जाएगें तभी हमें आत्म साधना का मार्ग मिलेगा। उत्तराध्ययन सूत्र के एक एक प्रश्न आश्चर्यकारी है। इसके जवाब भी दिलस्पर्शी एवं हितकारी है। आज के अध्ययन का प्रश्न है योग के प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है?
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ. देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है जैन धर्म में योग तीन प्रकार के बताए है मन-वचन एवं काया योग। सामान्य धर्म वाले योग याने किसी भी प्रकार का आसन करना ऐसा मानते है। शास्त्रकार महर्षि योग के अंग आठ प्रकार के बताते है वे इस प्रकार है यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि योग की सरल व्याख्या मोक्षेन योजनात् योगों जो चीज मोक्ष के साथ जोड़ता है उसे योग कहते है। आत्मा को किसी भी प्रकार की प्रवृत्ति करनी हो तो उसे शरीरवाणी एवं मन का सहारा, उसका आधार लेना पड़ता है। हमेशा प्रयत्न यही रहता है कि सहकार लेना पड़े तो वह पूरी तरह से ही लेना चाहिए। संपूर्ण आत्मा जिस प्रकार से कहे वैसा ही करना चाहिए। पूर्व भी अनेक साधु हो गए, वर्तमान में भी हजारों साधु भवगंत है वे जब भी अपने प्रवचन की धारा बहाते है जब वें यही कहते है कि मैं जो कुछ कह रहा हूं वह भगवान ने जो फरमाया है वहीं कह रहा हूं। इसी तरह खुद तीर्थंकर परमात्मा भी अपनी देशना दरम्यान यही फरमाते है कि जो अनंत तीर्थंकर परमात्मा ने कहा है वहीं वचन कह रहा हूं।
योग शब्द का अर्थ जिस प्रकार उपयोग में लिया है वह इस प्रकार है मन-वचन-काया तीन योग है जिसके द्वारा विचार किया जाता है वह मन योग, जिसके द्वारा किसी को बुला सकते है अथवा किसी के आगे अपनी बात रखना वह वचन योग है तथा जिससे एक स्थान से दूसरे स्थान जाने की क्रिया कर सके अथवा एक स्थान पर रहकर आसन विगेरे क्रिया कर सके जिससे, वह काया योग है।
पूज्यश्री फरमाते है मन योग से कितने विचार कर सकते है मानलो, कभी खराब विचार आए तो कभी अच्छे विचार भी मन से ही आते है इसीलिए मनयोग की महत्ता है। उत्तराध्ययन सूत्र में बताया मन-वचन-काया का पच्चक्खाण करूं याने इन तीन योगों को दूर करूं उसके बल को खत्म कर दूं जिस प्रकार युद्ध के मैदान में दो योद्धा लड़ रहे है। एक योद्धा, दूसरे योद्धा को बंदूक अथवा बाण से उसे मार देता है सिर्फ दुश्मन को खत्म करने तक ही वह चैन से नहीं बैठता है बल्कि जब तक उस मुर्दे के शव पर थूंककर उसे नालायक जैसी गालियां देकर उसे कहे कि ये गया तो अच्छा हुआ ऐसा कहकर ही अज्ञानी जीव जैन से बैठता है।
जैन शास्त्र में योग का अर्थ मन-वचन-काया का व्यापार, मन-वचन-काया की प्रवृत्ति मन-वचन-काया का व्यापार। बन को सेट करो वह मन योग, वचन को सेट करो वह वचन योग तथा काया का सेट वह काय योग। ये एक बड़ा साइंस है इसे सिद्ध करना है आत्मा अनादिकाल से भले ही छोटी कीड़ी के शरीर में हो अथवा हाथी के शरीर में हो उसकी प्रवृत्ति चालु ही है। कभी शांत नहीं हुआ। कहते है मन-वचन एवं काया भी कर्मबंध का एक प्रकार से मुख्य कारण है। इन तीनों पर काबू मिलाना है। आसन करके एक स्थान पर बैठा है काय योग, एक घंटा लगातार बोल सकते है वह वचन योग तथा अच्छेविचारों में रहना वह मन योग। जब इन तीनों पर काबू पाकर आत्मा का स्फंदन रूक जाता है। परंतु आत्मा को जब केवल ज्ञान की प्राप्ति होती है। केवल ज्ञान के बाद आगे के गुणस्थान में जब वह आता है तब अंतिम एक ऐसी फल आती है वह क्रम से काया योग वचन योग एवं मन योग को स्थिर करके कर्मों की निर्जरा करके आत्मा में अनंत सुख की प्राप्ति करता है।
पूज्यश्री फरमाते हंै योगों को स्थिर किए बगैर मोक्ष की प्राप्ति नहीं होतीहै। अथ: इन मन-वचन-काया के योगों को स्थिर करने की शक्ति प्राप्त करके शीघ्र कर्मों की निर्जरा करके हम भी मुक्ति सुख को पाए यहीं शुभेच्छा।