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विश्व प्रसिद्ध ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग भगवान केदारनाथ धाम के कपाट विधि- विधान और पूजा अर्चना के बाद आज सुबह 5 बजे मेष लग्न, पुनर्वसु नक्षत्र में खोल दिए गए। पूरे केदारनाथ मंदिर को 11 कुंतल फूलों से सजाया गया था। शीतकाल के छह महीनों तक पंचगद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में विश्राम करने के बाद गत 14 मई को केदार बाबा की उत्सव डोली धाम के लिए रवाना हुई थी। अब आने वाले छह महीनों तक केदारबाबा यहीं पर विराजमान रहेंगे। 
उत्तराखंड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंग में शामिल होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। यहां की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मंदिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्?य ही दर्शन के लिए खुलता है। पौराणिक कथा के अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान दिया। पत्थरों से बने कत्यूरी शैली से बने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडव वंशी जनमेजय ने कराया था। यहां स्थित स्वयंभू शिवलिंग अति प्राचीन है। साथ ही आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
केदारनाथ हिमालय के केदार पर्वत पर अवस्थित है। केदारनाथ धाम और मंदिर तीनों तरफ पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्च कुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरत कुंड नाम का पहाड़ है। केदारनाथ धाम में पांच ?नदियों का संगम भी है यहां- मं?दाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी नदी हैं। साथ ही इन नदियों में से कुछ का अब अस्तित्व नहीं रहा लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी नदी आज भी मौजूद है। 
इसी के किनारे केदारेश्वर धाम स्थित है। यहां सर्दियों में भारी बर्फ और बारिश में जबरदस्त पानी रहता है। समुद्रतल से केदारनाथ धाम 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
अद्भुत है मंदिर की वास्तुकला
यह मंदिर छह फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। मंदिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा पथ है। बाहर प्रांगण में नंदी बैल भगवान शिव के वाहन के रूप में विराजमान हैं। जिनकी श्रद्धालु पूजा भी करते हैं।
17 किलोमीटर की है पैदल यात्रा
आपदा के बाद केदारबाबा के धाम की दूरी तीन किमी बढ़ गई है। पहले यात्रियों को गौरीकुंड से धाम तक पहुंचने के लिए 14 किमी तक का पैदल सफर करना पड़ता था। लेकिन अब यह दूरी 17 किमी हो गई है। कुछ यात्री घोड़े और खच्चर पर बैठकर भी यात्रा करते हैं।
जानिए, कैसे हुई पंचकेदार की स्थापना
महाभारत युद्ध में विजय पाने के बाद पांडवों को ऐसा लगा कि उन्होंने अपने भाइयों की हत्या की है और अब उन्हें इस पाप का प्राश्चित करना चाहिए। साथ ही इस पाप से मुक्त होने उपाय सोचना चाहिए। इसलिए पांडव भगवान शिव को खोजते हुए हिमालय पर पहुंचे। लेकिन उनको भगवान शिव ने दर्शन नहीं दिए और वो अंतरध्यान होकर केदार में चले गए। वहीं पांडवों ने भी हार नहीं मानी और वो भगवान शिव को खोजते हुए केदार तक पहुंच गए।