अहमदाबाद। आभूषणों से शरीर के सौंदर्य में निखार आता है, इसीलिए शरीर सुंदर दिखाई देता है। कहते हैं जिस तरह अलंकारों से शरीर की शोभा बढ़ती है, उसी तरह सद्गुणों से आत्मा की शोभा बढ़ती है। श्रावक भी यदि अपने जीवन में विवेक रूप अलंकार को धारण करें तो उसका जीव सफल बन जाता है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ. देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है सबसे पहले विवेक का अर्थ क्या है ये जानना जरूरी है विवेक अर्थात् कत्र्तव्य-अकत्र्तव्य की भेद रेखा को जानकर कत्र्तव्य का स्वीकार एवं अकत्र्तव्य का त्याग करना। हरेक मानवी को किस समय क्या करना चाहिए एवं किस समय क्या नहीं करना चाहिए इस प्रकार का भेदज्ञान विवेक तो होना ही चाहिए। मानवी को हरेक चीज में विवेक होना जरूरी है जैसे कि खाने-पीने-बोलने-चलने-रहन सहन वगैरह में विवेक चाहिए।
बीएमडब्लू कार 100 की गति के साथ दौड़ती है परंतु उसका ब्रेक ही फैल हो तो उसकी गति की क्या कीमत है। वह कार तुम्हें सूरत नहीं पहुंचाएगी, बल्कि तुम्हारी जान जरूर लेकर रहेगी, इसीलिए उस कार में ब्रेक का होना जरूरी है। तभी हम कभी गति ज्यादा भी हो गई तो उस पर कंट्रोल कर सकते है इसी तरह जीवन के हर क्षेत्र में विवेक जरूरी है।
मानवी को गाड़ी चलाना है तो गाड़ी को चलाने के लिए पेट्रोल की जरूरत रहती है उसी प्रकार शरीर को टिकाने के लिए आहार की जरूर रहती है। आहार के बिना शरीर टिक नहीं सकता है परंतु मानवी को आहार ग्रहण करने में भी विवेक तो होना ही चाहिए अगर तुम्हारा विवेक न रहा ये आहार तुम्हारे शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है।
दो मित्र घूमने गए 500 रूप के लिए दोनों के बीच शर्त लगी। सबसे ज्यादा बूंदी के लड्डू कौन खाता है। तीन मिनिट का टाईम दिया गया। दोनों शर्त के मुताबिक लड्डू खाना शुरू किया। एक मित्र तो मजे से खाता गया लेकिन दूसरे को चने का लड्डू सूट नहीं हुआ। उसके शरीर पर बड़े बड़े फोड़े होने लगे वह तो दो लड्डू में ही रूक गया। आखिर में डॉक्टर के पास जाना पड़ा। शर्त तो हार गया लेकिन हमेशा के लिए अलर्ट के कारण डॉक्टर ने चने की सभी चीज बंद करवा दी।
पूज्यश्री फरमाते है आदमी को विवेक चाहिए। शर्त किस में लगाई जाती है ये भी एक विवेक की बात है पैसों के लालच में खाने का विवेक न रखा तो नुकसान भुगतना पड़ता है। मानवी को बोलने में भी विवेक रखना जरूरी है। व्यापार करते वक्त ग्राहक के साथ विवेक से बात न किया तो धंधा बंद हो सकता है। आप जैसी वाणी बोलेंगे वैसे वैसे ग्राहक बढ़ेंगे। कहते है बातों में हिंसक शब्दों का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए। आम चीर दो ऐसा न बोलकर आम सुधार दो ऐसा बोलना चाहिए। मंदिर बंद कर दो ऐसा न बोलकर मंदिर मांगालिक करो ऐसा बोलना चाहिए। प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाकर पूज्यश्री फरमाते है जिस आदमी में विवेक आ जाता है उसे कत्र्तव्य अकत्र्तव्य का भान है ही इसीलिए उसे समझाना नहीं पड़ता है वह व्यक्ति अकत्र्तव्य को त्याग कर कत्र्तव्य के लिए हमेशा प्रयत्यशील रहता है।मानलो, आपको जोर से भूख लगी हो, उस समय कोई व्यक्ति आपको पांच पक्वान्न के साथ अच्छा भोजन पीरसे और आप खाने की तैयारी में हो उसी समय कोई आकर चिल्लाए कि यह मिठाई मत खाना इन पांच में से एक मिठाई में जहर है। उस समय आप क्या करोंगे? क्या एक मिठाई छोड़कर चार मिठाई खाओंगे या सभी मिठाई का त्याग कर दोंगे? सभा में से जवाब सभी मिठाई छोड़ देंगे। ऐसा क्यों? क्योंकि स्पष्ट मालूम नहीं है कि किस मिठाई में जहर है अत: आप एक भी न खाकर सभी छोड़ दोंगे। बस, जो व्यक्ति विवेकी होगा उसे कहने की जरूरत नहीं पड़ती कि तुम यह करो, तुम वो करो। वह अपनी विवेक चक्षु से बात समझ जाता है।
पूज्यश्री फरमाते हैं कि जब तक आत्मा मोह एवं अज्ञानता के जाल में फंसी है तब तक उसके विवेक रूपी चक्षु खुले नहीं है। बालक के हाथ में हीरा दिया जाय तो वह उसे पत्थर समझकर फैंक देगा क्योंकि उसे हीरे के कीमत का अंदाजा नहीं है परंतु यही हीरा किसी बुद्धिशाली के हाथ लगे तो वह उस हीरे की कीमत समझकर उस हीरे की रक्षण के लिए प्रयत्न करेगा। बस, इसी तरह जीवन में विवेक आने के साथ ही व्यक्ति, आत्मा के लिए अहित प्रवृत्तिओं का त्याग करके हितकारी कत्र्तव्य करके जीवन में आगे बढ़कर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनेगा।
Head Office
SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH