
अहमदाबाद। कोई व्यक्ति गन्ने का रस पीता है तो वह रस उसे मधुर एवं कुछ अलग ही आनंद की अनुभूति कराता है। ठीक इसी तरह उत्तराध्ययन सूत्र के एक-एक शब्द के चिंतन एवं मनन से परिणत आत्मा मजबूत एवं वैरागी बनती है। आज के इस अध्ययन में सवाल उठा है सर्व गुण संपन्नता से जीव क्या प्राप्त करता है?
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ. देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते हैं कि हरेक व्यक्ति में भी अलग अलग गुण है। मानवी जब एक ही गुण की तालीम अच्छी तरह से लेता है तब अन्य गुण आटोमेटिकली उसके पीचे खींचे चले जाते है। एक महान चोर था। किसी सद्गुरू का योग हुआ और वे, चोर को पसंद आ गए। चोर व्यसनी था। फिर भी वह साधु को भाव से नमस्कार किया। साधु को उस चोर के नमस्कार में कुछ अलग ही भाव नजर आए। ये चोर भले है, परंतु कोई महान आत्मा का जीव है। साधु ने उस चोर से कहा, भैया! कुछ नियम ले लो। संतजी मैं हिंसा नहीं करने का नियम, नहीं ले सकता क्योंकि जब मैं चोरी करने जाता हूं कोई न कोई मेरे बीच में टांग अडाता है तो उसका गला कांट देता हूं। दूसरी बात मैज शोक कम नहीं कर सकता क्योंकि चोरी का माल कौन भुगतेगा। तीसरी बात मांसाहार छोड़ नहीं सकता क्योंकि उसका टेस्ट इतना जीभ को लग गया कि छोडऩे को दिल नहीं करता है। फिर भी आप की इच्छा है तो कुछ नियम देकर जाएगा। साधु ने कहा, भैया! मेरी सिर्फ इतनी बात रखो कभी झूठ नहीं बोलना। अरे! ये नियम होने लिए ठीक रहेगा। झूठ बोलने का मौका ही कहां मिलेगा। ये सोचकर चोर से नियम ले लिया।
एक दिन चोर चोरी करने निकला। उसे रास्ते में किसी ने पकड़कर पूछा, भाई साहेब! कहां जा रहे हो? गुरू ने झूठ बोलने को मना किया था तो कह दिया कि चोरी करने जा रहा हूं। किसी जगह पर चोरी करने जा रहे हो? राजा के दरबार में। उस आदमी ने कहा, चलो मैं भी तुम्हारे साथ आ जाता हूं। दोनों चोरी के लिए निकले हैं बीच में जो भी मिलते है चोर उसे किसी भी तरह से पटाकर आगे निकल जाता था. दोनों राजदरबार में जहां तिजोरी थी वहां गए। तिजोरी में से हीरा निकालकर एक खुद ने लिया और दूसरा अपने साथ जो आदमी आया था उसे दे दिया और अपने घर गया।
दूसरे दिन प्रधान मे शोर मचाकर सभी को इकट्ठा करके चोरी के बारे में बताया। चोर को ढूंढने राजा के आदमी चोर की झौंपडी में जाकर चोर को पकड़कर राजदरबार में ले आए। चोर ने सत्य कह दिया और अपनी हीरा दे दिया। हीरे तीन थे एक तुम्हारे पास है दूसरा कहां गया? प्रधान के पास एवं तीसरे आपके पास है। राजा चोर की सत्य बात सुनकर प्रसन्न हो गया। कहते है एक अच्छा गुण दूसरे गुणों को लेकर आता है इसी तरह एक आराधना दूसरी आराधना को खींच लाती है। सर्व गुण संपन्नता याने गुणों का परस्पर मिलन। एक गुणों अनेक गुणों को अपने साथ खींच लाता है। राजा चोर की प्रामाणिकता पर प्रसन्न हुआ। पूज्यश्री फरमाते हैं राजा चोर को पूछता है चोरी किस लिए करता है? राजन्। धंधे की तलाश के लिए। प्रधान को पूछा गया चोरी किसलिए की, तो कहां मुझे संतो नहीं है। राजा ने चोर को प्रधान बनाया एवं प्रधान को नौकरी से निकालकर देश-विदेश जाने की आज्ञा की।
कहते हैं कि एक नम्रता गुण तमाम गुणों को लाता है इसी तरह सत्व गुण अनेक गुणों को लाता है औचित्य गुण भी अपने साथ अनेक गुणों को लाएगी। कहते है आत्मा की मुक्ति के लिए ज्ञान-दर्शन-चारित्र ये तीनों गुण जरूरी है एक गुण होगा दूसरा गुण नहीं होगा तो मोक्ष संभव नहीं है दर्शन ज्ञान चारित्र थे तीन गुण से ही मोक्ष की प्राप्ति होगी। सर्वगुण संपन्नता से जीव अपुनरावृत्ति को प्राप्त करता है अपुनरावृत्ति को प्राप्त जीव को शारीरिक एवं मानसिक दु:ख प्राप्त नहीं होता है सदाकाल के लिए सर्व दु:खो को नाश करता है।
आज आचार्य श्री वीतरागयश सूरि का 29 वर्ष में संयम का मंगल प्रवेश हुआ। पूज्यश्री फरमाते है जो गुरू की सेवा करते है उन्हें आशीर्वाद अपने आप फलते है शिष्य वो है जो गुरू कहे वहीं करे ऐसा नहीं बल्कि शिष्य वो है जो गुरू के आंख के ईशारों को समझकर कार्य करते है जीवन में कभी मुश्किले आए पीचे हर नहीं करना अपनी शक्ति एवं सामथ्र्य से जीवन में आगे बढ़ते रहना है यही शुभाशिष गुरूदेव ने आचार्य श्री वीतरागयश सूरि को दिए।